आज का दिन भारतीय महिलाओं के लिए बहुत खास है, क्योंकि आज ही के दिन इतिहास में महिलाओं को सतीप्रथा जैसी कुप्रथा से आजादी मिली थी. चार दिसंबर 1829 को अंग्रेज वायसराय विलियम बेंटिक ने सती प्रथा को अवैध घोषित करते हुए इसपर प्रतिबंध लगा दी थी. विलियम बेंटिक ने कन्या वध की कुप्रथा का भी अंत किया था.
राजा राम मोहन राय को अगर भारतीय महिलाओं का तारणहार कहा जाये तो गलत नहीं होगा. उन्होंने महिला अधिकारों की रक्षा के लिए पुरजोर कोशिश की और सतीप्रथा और बाल विवाह के विरोध में आंदोलन चलाया. वे महिला शिक्षा के हिमायती थे इसके लिए उन्होंने काफी प्रयास भी किये. कट्टरपंथी राजा राम मोहन राय के धुर विरोधी थे, बावजूद इसके राजा राम मोहन राय ने अपना आंदोलन चलाया और अंग्रेज सरकार का ध्यान इन कुप्रथाओं की ओर दिलाया और इनपर प्रतिबंध लगवाने में सफल हुए.
सती का अभी भी किया जाता है महिमा मंडन
हमारे देश से एक तरह से सती प्रथा तो समाप्त हो गयी है, लेकिन गाहे-बगाहे ऐसी घटनाएं होती हैं, जो सती का महिमा मंडन करने वाली भावना से प्रेरित होती हैं. इसी वर्ष उत्तर प्रदेश के मैनपुरी से एक खबर आयी थी जिसमें एक वृद्ध महिला पति के निधन के बाद सती होना चाहती थी, हालांकि पुलिस ने उसे ऐसा करने से रोक दिया, लेकिन देश भर में मौजूद सती मंदिर इसी सोच का परिणाम हैं.
1987 में अंतिम बार सुना गया था सती होने का मामला
राजस्थान के देवराला में आजादी के बाद सती होने का अंतिम मामला सामने आया था, जहां 18 साल की रूप कंवर को उसके पति की चिता के साथ जिंदा जला दिया था. इस पूरे घटनाक्रम में गांव के दबंग लोग शामिल थे और इस घटना को कुछ इस तरह प्रचारित किया गया था मानों कोई करिश्मा हुआ और रूप कंवर पति की चिता पर जल गयी. उसकी मुस्कुराती तसवीर को जारी किया गया था, जिसमें वह सजी-धजी नजर आ रही थी. आंकड़ों के अनुसार आजादी के बाद देश में 29 महिलाएं सती हो चुकी हैं, जिसमें रूप कंवर को अंतिम सती माना जा सकता है.