नयी दिल्ली : भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के पूर्व प्रमुख विक्रम सूद ने सुझाव दिया है कि समूचे खुफिया तंत्र को नौकरशाही के नियंत्रण से मुक्त करना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि खुफिया एजेंसियों के प्रमुखों को लंबे कार्यकाल मिलने चाहिए और उनका चयन सिर्फ वरिष्ठता के आधार पर नहीं, बल्कि करियर में प्रदर्शन के आधार पर होना चाहिए.
रॉ के पूर्व प्रमुख का मानना है कि कुछ-कुछ अंतराल पर सुधार होते रहने चाहिए ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि देश का खुफिया तंत्र ज्यादा से ज्यादा ठोस एवं प्रभावी हो. सूद ने ‘द अनएंडिंग गेम : ए फॉर्मर रॉ चीफ्स इनसाइट्स इनटू एस्पियोनाज’ नाम की एक नयी किताब लिखी है. इस किताब में उन्होंने जासूसों की दुनिया, शीत युद्ध के समय से लेकर वैश्विक जिहाद, निगरानी करनेवाली सरकारों से लेकर मनोवैज्ञानिक युद्ध और साइबर युद्ध, खुफिया सूचनाएं इकट्ठा करने से लेकर इसे विश्वसनीय खुफिया सूचना में तब्दील करने जैसी चीजों पर विस्तार से लिखा है.
उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्रियों को अपने खुफिया प्रमुखों को काफी सावधानी से चुनना चाहिए. सिर्फ वरिष्ठता नहीं, बल्कि पिछला अनुभव, रॉ में करियर प्रदर्शन और निष्ठा अहम पहलू होने चाहिए.’ साल 1990 और 1999 के बीच रॉ के सात प्रमुख बदलने के मुद्दे पर सूद ने लिखा, ‘निश्चित तौर पर यह एक ऐसी विशेषज्ञता प्राप्त एजेंसी के लिए अच्छा प्रचार नहीं था जिसे शीर्ष स्तर पर निरंतरता और स्थिरता की जरूरत होती है.’ करीब 31 साल तक खुफिया अधिकारी के तौर पर सेवाएं दे चुके सूद मार्च 2003 में सेवानिवृत्त हुए. वह अपनी सरकारी सेवा के भारत की बाहरी खुफिया एजेंसी रॉ के प्रमुख भी रहे.
सूद की नयी किताब पेंग्विन रैंडम हाउस इंडिया ने प्रकाशित की है. उन्होंने सुझाव दिया, ‘खुफिया संगठनों के प्रमुखों के कार्यकाल लंबे होने चाहिए, आदर्श रूप से पांच साल. चयन संगठन के भीतर से किया जाना चाहिए और यह करियर में प्रदर्शन पर आधारित होना चाहिए.’ सूद ने अपनी किताब में यह भी कहा कि उनके सुझाव को नौकरशाही ‘ईशनिंदा’ करार देगी. उन्होंने कहा, ‘यहां प्रमुख दलील है कि समूचे खुफिया तंत्र को परंपरागत नौकरशाही के नियंत्रण और निगरानी से मुक्त करना चाहिए और तरक्की, करियर की संभावनाओं या अन्य प्रोत्साहनों पर स्वतंत्र रूप से फैसला किया जाना चाहिए.’