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नक्सली हिंसा पीड़ित बच्चों को पढ़ा रहे मधुकर
रायपुर : नक्सलियों के गढ़ में कुछ लोगों ने शांति का बिगुल बजाने की हिम्मत दिखायी है और तमाम दुश्वारियों के बावजूद शिक्षा का दीपक जला कर माओवाद के अंधकार को खत्म करने की जिद ठाने हैं. छत्तीसगढ़ के बीजापुर में पंचशील आश्रम ने नक्सली हिंसा के शिकार बच्चों की शिक्षा का बीड़ा उठाया है. […]
रायपुर : नक्सलियों के गढ़ में कुछ लोगों ने शांति का बिगुल बजाने की हिम्मत दिखायी है और तमाम दुश्वारियों के बावजूद शिक्षा का दीपक जला कर माओवाद के अंधकार को खत्म करने की जिद ठाने हैं. छत्तीसगढ़ के बीजापुर में पंचशील आश्रम ने नक्सली हिंसा के शिकार बच्चों की शिक्षा का बीड़ा उठाया है. आश्रम की स्थापना मधुकर राव ने की और उनके प्रयासों से आज यहां बहुत से बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर नक्सलवाद को खत्म करने में शरीक हैं.
दरअसल, नक्सलियों के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हुए सलवा जुडूम आंदोलन की जून, 2005 में शुरुआत करने वालों में एक मधुकर राव भी थे, जिन्होंने इस संकल्प के साथ लोगों को खुद से जोड़ा कि अगर इस दौरान वह नक्सली हिंसा का शिकार हुए, तो उनके बच्चों की देखभाल और शिक्षा की जिम्मेदारी मधुकर राव खुद निभायेंगे. वर्तमान में आश्रम में 61 छात्र और 71 छात्राएं हैं.
आश्रम में 12वीं कक्षा तक के छात्र निवास करते हैं. आठवीं कक्षा तक की शिक्षा आश्रम में दी जाती है और बड़ी कक्षा के लिए कुटरू और अन्य स्थानों के स्कूलों में भेजा जाता है. आश्रम में सुरक्षा की व्यवस्था है. गणित, विज्ञान और अंग्रेजी जैसे कठिन विषयों में समस्या आने पर पुलिस अधिकारी मदद करते हैं. राव के अनुसार, कई बच्चे तीरंदाजी, एथलेटिक्स, कबड्डी, खो-खो, वॉलीबॉल में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं.
सलवा जुडूम आंदोलन कमजोर पड़ने के बाद शुरू किया आश्रम
मधुकर राव (49) बीजापुर जिले के कुटरू के रहने वाले हैं. उन्होंने 1993 में बालक आश्रम नेलसनार केंद्र के पल्लेवाया गांव में सहायक शिक्षक के रूप में सरकारी नौकरी की शुरुआत की थी. बाद में उनकी नियुक्ति बालक आश्रम बेदरे में हो गयी. इस दौरान क्षेत्र में नक्सली अपनी गतिविधि बढ़ा रहे थे. राव बताते हैं कि नक्सली गतिविधियों और ज्यादतियों से लोगों के मन में उनके खिलाफ आक्रोश बढ़ने लगा.
आदिवासी उनके खिलाफ असहयोग का रवैया अपनाने लगे. चार जून, 2005 को नक्सलियों के खिलाफ सलवा जुडूम आंदोलन की घोषणा की गयी. नक्सलियों द्वारा सलवा जुडूम नेता, कार्यकर्ता और अन्य ग्रामीणों की हत्या करने और आंदोलन के कमजोर पड़ने के बाद फैसला किया गया कि यहां रहने वाले अनाथ और नक्सलियों से पीड़ित बच्चों को शिक्षा देकर उन्हें सबल बनाया जाये. इसी उद्देश्य से 2008 में पंचशील आश्रम की शुरुआत की गयी.
बिना वेतन पढ़ाते हैं शिक्षक
शुरुआत में संस्था का संचालन पंचायत भवन में 25 बच्चे से किया. अब 132 बच्चों का पालन पोषण किया जा रहा है. क्षेत्र के व्यापारी, शिक्षक, पुलिस और अन्य लोग सहयोग करते हैं. स्कूल में बिना वेतन के सेवा दे रहे शिक्षक मंजू लकड़ा, कंचन लकड़ा, ममता कोरसा, राजेश मड़े और कीर्ति कुजूर ने बताया कि वे राशि की अपेक्षा नहीं रखते, क्योंकि इन बच्चों को शिक्षा देकर उन्हें काफी गौरवान्वित महसूस होता है.
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