नयी दिल्ली : बीएस येदियुरप्पा, ‘जी हां’ यह वो नाम है जिसपर भाजपा ने भरोसा जताया जो सही साबित हुआ. येदियुरप्पा कर्नाटक में भाजपा के सबसे बड़े चेहरे हैं और वे सूबे में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार भी हैं. आइए हम यहां आपको येदियुरप्पा के संबंध में कुछ खास बात बताते हैं. येदियुरप्पा चावल मिल के क्लर्क और एक किसान नेता से आगे बढ़कर दक्षिण में पहली बार कर्नाटक में भाजपा की सरकार के रूप में कमल खिलाने वाले नायक बने थे लेकिन पांच साल के बाद जब दोबारा से 2013 में विधानसभा चुनाव हुए तो भाजपा के लिए वही खलनायक बन चुके थे. अब एक बार फिर से भाजपा के लिए वह नायक साबित हो चुके हैं.
इस बार भी कर्नाटक में भाजपा येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर चुनावी मैदान में उतरी थी. उन्होंने राज्य में दूसरी बार कमल खिलाने के लिए जमकर मेहनत की और इसमें वे सफल भी हुए. येदियुरप्पा अपनी पुरानी परंपरागत शिकारीपुरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़े थे जो लिंगायत बहुल सीट मानी जाती है. यहां खास बात यह है कि येदियुरप्पा खुद लिंगायत समुदाय से आते हैं और सूबे में कांग्रेस ने लिंगायत कार्ड खेलकर भाजपा को मात देने की कोशिश की. यहां कांग्रेस ने उनके खिलाफ जीबी मालतेश को मैदान में उतारा था. वहीं जेडीएस ने एचटी बालिगर पर यहां दांव खेला था.
बीएस येदियुरप्पा 75 बसंत देख चुके हैं. उनका जन्म 27 फरवरी 1943 को राज्य के मांड्या जिले के बुकानाकेरे में सिद्धलिंगप्पा और पुत्तथयम्मा के घर हुआ था. चार साल की उम्र में ही उनकी मां का निधन हो गया. 1972 में उन्हें शिकारीपुरा तालुका जनसंघ का अध्यक्ष चुना गया और उन्होंने राजनीति में कदम रखा. 1977 में जनता पार्टी के सचिव पद पर काबिज होने के साथ ही राजनीति में उनका कद और बढ़ा.
येदियुरप्पा के वास्तविक राजनीतिक करियर की बात करें तो उसकी शुरुआत 1983 में हुई जब वह पहली बार विधानसभा में पहुंचे और तब से अब तक 7 बार शिकारीपुरा से विधायक निर्वाचित हो चुके हैं. फिलहाल वह तीसरी बार पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. यदि आपको याद हो तो येदियुरप्पा की बदौलत भाजपा ने 2008 के विधानसभा चुनाव में जबर्दस्त जीत दर्ज की थी. हमेशा सफेद सफारी सूट में नजर आने वाले येदियुरप्पा नवम्बर 2007 में जनता दल (एस) के साथ गठबंधन सरकार गिरने से पहले भी 7 दिनों के लिए मुख्यमंत्री के पद पर रहे थे.
यहां चर्चा कर दें कि येदियुरप्पा के ‘ऑपरेशन लोटस’ अभियान के दम पर ही 2008 में 224 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा बहुमत हासिल करने में सफल रही थी, लेकिन खनन क्षेत्र से जुड़े प्रभावशाली रेड्डी बंधु जनार्दन और करुणाकर उनके लिए सिर दर्द बन गये. कर्नाटक में भाजपा के लिए कमल खिलाने वाले बीएस येदियुरप्पा के तीन साल 62 दिनों का कार्यकाल संकटों से घिरा रहा था. आपको बता दें कि खनन घोटाले में लोकायुक्त की रिपोर्ट येदियुरप्पा के गले की फांस बनी और उन्हें भ्रष्टाचार की वजह से अपनी मुख्यमंत्री पद की कुर्सी से भी हाथ धोना पड़ा. उन पर जमीन और अवैध खनन घोटाले के आरोप लगे थे. इसके बाद वो जेल गये और फिर रिहा हुए. इसके बाद उन्होंने भाजपा से बगावत की और अपनी पार्टी बनायी.
विधानसभा चुनाव 2013 में भाजपा के साथ-साथ उन्हें भी करारी हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद मोदी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने के बाद जनवरी 2013 में उन्होंने दोबारा भाजपा का दामन थामा. एक के बाद एक संकटों से उबरकर येदियुरप्पा ने खुद को पार्टी के अंदर राजनीतिक धुरंधर के रूप में साबित किया है और 2018 के विधानसभा चुनाव में सूबे में एक बार फिर कमल खिलाया.