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कर्नाटक चुनाव ग्राउंड रिपोर्ट: 45 साल बाद भी शोले के गांव को ठाकुर का इंतजार

रामनगर से अजय कुमार कर्नाटक: कर्नाटक में विधानसभा चुनाव प्रचार में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी गब्बर का नाम लेते हैं, तो प्रधानमंत्री मोदी रामनगर के सिल्क उद्योग के लिए \" 2000 करोड़ देने की घोषणा करते हैं. ये वही रामनगर है जहां दो साल शूटिंग चलने के बाद फिल्म शोले 15 अगस्त 1975 को रिलीज […]

रामनगर से अजय कुमार

कर्नाटक: कर्नाटक में विधानसभा चुनाव प्रचार में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी गब्बर का नाम लेते हैं, तो प्रधानमंत्री मोदी रामनगर के सिल्क उद्योग के लिए \" 2000 करोड़ देने की घोषणा करते हैं. ये वही रामनगर है जहां दो साल शूटिंग चलने के बाद फिल्म शोले 15 अगस्त 1975 को रिलीज हुई थी. प्रचार के क्रम में रामनगर और गब्बर का जिक्र होने के बाद हम भी रामनगर पहुंचे. यह गांव मैसूर जानेवाले एनएच 275 पर है.

बेंगलुरु से 40 किमी दूर. 45 साल पहले शोले की शूटिंग हुई थी, उसे वन विभाग ने कुछ साल पहले वन्य जीवों के लिए अभयारण्य घोषित कर दिया. यह अब टूरिस्ट स्पॉट बन गया है. रोज पर्यटक यहां आते हैं. रामनगर की पहाड़ी को दो हिस्से में बांट दिया गया है. एक हिस्सा श्री राम के मंदिर का है, तो दूसरा अमिताभ बच्चन का. तमिलनाडु के पुजारी कहते हैं कि वनवास के क्रम में श्री राम यहां कुछ समय के लिए ठहरे थे. तभी से पहाड़ी को रामदेवरा बेट्टा कहा जाने लगा. कन्नड़ में बेट्टा का मतलब पहाड़ है. रामदेवरा बेट्टा 346 हेक्टेयर में फैला है.

पहाड़ी के घने जंगल में दुर्लभ पशु-पक्षी हैं. बहरहाल, पहाड़ी के नीचे बस्ती में मिले शिवस्वामी और इरन्ना. शोले की शूटिंग के वक्त दोनों बच्चे थे. दो साल चली शूटिंग में गांव के लोगों को काम मिला था. बर्तन मांजने, घोड़ों की रखवाली और सामान ले जाने का काम था. बड़ों को रोज पांच और छोटों को दो रुपये मिलते थे. तब बस्ती में खूब चहल-पहल थी. यहां की सड़क फिल्मवालों ने ही बनवा दी थी.

अब का रामनगर कैसा है

इरन्ना कहते हैं : यहां जीविका का बड़ा साधन रेशम की खेती है. पर खेती में बहुत परेशानी है. पानी नहीं मिलता. किसानों को घाटा हो रहा है. बैंकों से समय पर लोन नहीं मिलता. गांव की आबादी का बड़ा हिस्सा दलितों का है. खेत में मजदूरी जीवन का आधार है. बस्ती में पांचवीं तक का स्कूल है. बस्ती से बाहर रामनगर बाजार में रौनक है. शोले की शूटिंग के दौरान गांव बहुत सुंदर दिखता था. बनावटी मकान बनाये गये थे. मसजिद बनी थी. धर्मेंद्र-हेमा मालिनी के मंदिरवाले सीन के लिए शिव मंदिर बनाया गया था. वन विभाग के कर्मचारी गुरुलिंगम कहते हैं कि फिल्म और वास्तविक जिंदगी में बहुत फर्क है, साहब. यहां बच्चों के लिए काम नहीं है. वे बेरोजगार है. ज्यादातर कुली (मजदूरी) का काम करते हैं. फिल्म में गब्बर किसानों को लूटता है. पर हमें कौन लूट रहा है. वह कहते हैं कि रामनगरे इल्ली इब्बरू गब्बर बदुकिदारे. (रामनगर में गब्बर अब भी जिंदा है.)

कुमार स्वामी सहित कई आये

बस्ती में पूर्व सीएम एचडी कुमार स्वामी, मंत्री डीके शिवकुमार, एमएलसी लिंगप्पा जैसे राजनीतिज्ञ आते रहे हैं. मंत्री डीके शिवकुमार की पहल पर बस्ती में दलितों के लिए 20 नये घर बनाये गये. पर दलितों के जीवन में बुनियादी बदलाव नहीं आया. रामनगर के इस दलित बस्ती को उस ठाकुर की तलाश है जो उनके बदलाव के लिए खड़ा हो सके.

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