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भरी ट्रेन में खाली बूथों पर चर्चा

स्क्रॉल डॉट इन की ओर से चुनावी मुद्दों को टटोलने ट्रेन से देश भर की यात्र करने निकली सुप्रिया शर्मा जब कश्मीर पहुंचीं तो वहां लोगों से उनकी बातचीत वोटिंग, भारत, कश्मीर और आजादी समेत कई मसलों पर हुईं. यह रिपोर्ट वहां के हालात की तसवीर साफ करने की कोशिश करती है.. टिकट बेचने वाले […]

स्क्रॉल डॉट इन की ओर से चुनावी मुद्दों को टटोलने ट्रेन से देश भर की यात्र करने निकली सुप्रिया शर्मा जब कश्मीर पहुंचीं तो वहां लोगों से उनकी बातचीत वोटिंग, भारत, कश्मीर और आजादी समेत कई मसलों पर हुईं. यह रिपोर्ट वहां के हालात की तसवीर साफ करने की कोशिश करती है..

टिकट बेचने वाले के पास खुदरे की कमी हो गई थी. इसकी सूचना कतार में अपनी बारी का बेसब्री से इंतजार कर रहे लोगों तक पहुंच गई थी. वहां खुदरा के लिए मैं काम आई. गुवाहाटी से शुरू हूए और कश्मीर की ट्रेन के साथ खत्म होने वाले में लंबे और थकाऊ सफर के दौरान पर्स में जमा हुए सिक्कों को मैने खाली कर दिया.

पिछली गरमियों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और संयुक्त प्रगितिशील गठबंधन की चेयरपर्सन सोनिया गांधी बनहिल से चलने वाली ट्रेन को रवाना करने के लिए यहां आए थे. बनहिल जम्मू डिविजन में पड़ता है और यहां से चलने वाली लाल ट्रेन का सफर अनंतनाग, श्रीनगर और सोपोर होते हुए कश्मीर के बारामुला में खत्म होता है.

रेलवे की भाषा में इस ट्रेन को डीइएमयू (डीजल इलेक्ट्रिक मल्टिपल यूनिट) कहा जाता है. यह ट्रेन रेलवे की टिकट मिलने वाली वेबसाइट पर लिस्टेड नहीं है. इसलिए, इस ट्रेन की टिकट खरीदने के लिए टिकट काउंटर पर आना पड़ता है. संभवत: यही वजह है कि भारतीय पर्यटक बनिहल-बारामुला डीइएमयू के बारे में नहीं जातने हैं. और सबसे बड़ी बात यह है कि इस ट्रेन में पर्यटकों के लिए जगह भी नहीं है, कम से कम सुबह 7.10 बजे बनिहल से चलने वाली ट्रेन में तो नहीं ही है. वह ट्रेन ऑफिस जाने वाले और छात्रों से भरी रहती है. वह ट्रेन इतनी भरी रहती है कि कुछ लोगों को रेलगाड़ी की छत पर बैठ कर सफर करना पड़ता है. बोगियां पुरुष यात्रियों से ठसाठस भरी रहती हैं, महिलाओं की संख्या न के बराबर रहती है.

बनिहल से, जहां से ट्रेन खुलती है, बोगियां खाली ही रहती हैं. अपनी मां और नवजात बच्चे के साथ सफर कर रही महिला के बगल में मुङो सीट मिल गई. तीन पीढ़ियां पहली बार ट्रेन में एक साथ यात्र कर रही थी. महिला बताती है कि वो सभी अनंतनाग जा रहे हैं क्योंकि उसकी तबियत खराब है और डॉक्टर से दिखाना है.

हमसे तीन सीट पीछे दो गोरी महिलाएं बैठी थीं जो लगातार बात कर रही हैं. दोनों बहने हैं-सायका और अजरत. दोनों का कॉलेज में पहला साल है. एक ने मेडिकल कोर्स के लिए नामांकन कराया है. अगर ट्रेन की सुविधा नहीं होती तो हमलोग अनंतनाग में एडमिशन नहीं ले पाते, सायका कहती है.

ट्रेन से सफर और पैसे दोनों की बचत होती है. बनिहल से अनंतनाग जाने में दो घंटे लगते थे. अब 45 मिनट में सफर खत्म हो जाता है. टैक्सी से आने-जाने में 180 रुपए लगते थे, अब 20 रुपए में काम हो जाता है.

‘और जाड़े में अक्सर बर्फबारी की वजह से रोड ब्लॉक हो जाता है,’ हमारी बातों को सुन रहे एक युवक ने कहा.

पीर पंजल रेंज से एशिया की सबसे बड़ी सुरंग बनाने के बाद भारतीय रेलवे ने यह सुनिश्चित किया है कि पूरे साल जम्मू सहित पूरे देश से कश्मीर का संपर्क भंग नहीं होगा, चाहे बारिश हो या बर्फबारी. हालांकि इससे सभी सहमत नहीं हैं. बनिहल के एक कार्यकर्ता ने मुङो बताया, अगर सरकार सोचती है कि ट्रेन कश्मीर को भारत से जोड़ने में सहायक होगी तो यहां उसकी उम्मीद गलत साबित होगी. ट्रेन की बदौलत कश्मीरी भारत के खिलाफ और व्यवस्थित तरीके से एकजुट होंगे.

अनंतनाग के पास ट्रेन पैसेंजरों से भर जाती है. तीन लोगों के लिए बनी सीट में चार लोग बैठते हैं. मेरी बगल में बैठा युवक इलेक्ट्रिशियन है और श्रीनगर में स्थित अपने ऑफिस जा रहा है. वह बताता है, मैं एक्साइज डिपार्टमेंट में काम करता हूं. ऑफिस में इलेक्ट्रिशियन के तौर पर उसका काम कम्प्यूटरों को बिजली के उतार-चढ़ाव से बचाना है.

उसे यह नौकरी अखबार में छपे विज्ञापन के माध्यम से मिली. वह केंद्र सरकार का कार्यालय है, इसलिए वहां के लोगों को सिर्फ मेरे सर्टिफकेट पर विश्वास नहीं हुआ. वे लोग चाहते थे कि मैं महाराजा हरि सिंह के जमाने के एक पंखे की मरम्मत करूं, अपने इंटरव्यू को याद कर वह हंसने लगता है. फिर बताता है कि कैसे पंखा बनाने के दौरान उसके साफ कपड़े गंदे हो गए थे, लेकिन अपनी परीक्षा में वह पास हो गया था. युवक के लिए इलेक्ट्रिशियन की डिग्री लेने के एक साल के भीतर नौकरी पा लेना एक तरह से गुड लक के समान था. वह बताता है, इस इलाके में बेरोजगारी बहुत है. और उसे नौकरी करते हुए पांच साल हो गए हैं.

तुम्हारी उम्र क्या है, मैने पूछा.

36. अपनी पहली नौकरी 30 साल की उम्र के बाद शुरू की, मैने पूछा लेकिन इस सवाल को पूछने के बाद मुङो पछतावा भी हुआ.

जो लोग 90 के दशक में, जब कश्मीर में आतंकवाद चरम पर था, बड़े हुए वो जितना स्कूल जाते थे उतना ही बाहर रहते थे. उस युवक ने बताया, स्कूल से निकलने के बाद मां-बाप ने वर्षो तक कॉलेज नहीं जाने दिया. वो मुङो सुरक्षित और अपने करीब रखना चाहते थे. इसलिए मुङो परिवार के बगानों की देखभाल में लगा दिया गया. मुङो शहर जा कर पढ़ने और काम करने की अनुमति देने में उन्हें वषों लग गए.

जैसे-जैसे ट्रेन आगे बढ़ती है खिड़की से घाटी का अद्भुत नजारा दिखता है. वह युवक मुङो सेब और बादाम के बगीचों को दिखाता है और बताता है कि इनका मौसम आने वाला है. बातचीत का मुद्दा चुनाव की ओर मुड़ा. मैने पूछा, अनंतनाग से कौन-कौन चुनाव लड़ रहा है? दिमाग पर जोर डालने के बाद वह बताता है, नेशनल कांफ्रेंस से महबूब बेग और पीडीपी से महबूबा मुफ्ती. मैने नोटिस किया कि राजनीति में उसकी रुचि कम है.

उसने बताया, चुनावों का बहुत मतलब नहीं है, ये लोगों को बेवकूफ बनाते हैं. चार साल पहले मेरे गांव में एक पुल की नींव रखी गई थी. आज तक वह नहीं बना है.

वोट देते हो, मैने पूछा. अगर कोई बंदा होगा जो आवाम की खिदमत करेगा, उसने कहा.

ट्रेन एक स्टेशन पर रुकती है. लोग चढ़ने की कोशिश करते हैं. पुलिसवाले प्लेटफार्म के ऊपर-नीचे आ-जा रहे हैं और लोगों को आगे बढ़ने को कह रहे हैं.

ट्रेन चलने लगी. तब युवक ने बताया, किसी पर चुनाव बहिष्कार करने का दबाव नहीं है. जिन्हें मतदान करना हैं वो इसके लिए स्वतंत्र हैं. लेकिन ज्यादातर वैसे ही लोग वोट देते हैं जो किसी न किसी रूप में राजनेताओं से जुड़े हैं और फायदा लेने की इच्छा रखते हैं.

कश्मीर में 1987 में जब चुनाव में धांधली हुई थी तब से मतदान का प्रतिशत कम रहा है. वर्ष 1984 में कश्मीर में 68 फीसदी वोटिंग हुई थी वहीं 2004 में अनंतनाग में 16 फीसदी, श्रीनगर में 19 और बारामुला में 36 फीसदी वोटिंग हुई.

कश्मीर घाटी में सिर्फ मतदान का प्रतिशत ही कम नहीं है, वोटर के तौर पर पंजीकृत कराने वालों की संख्या भी कम है. इस लोकसभा चुनाव के दौरान अनंतनाग में 28 फीसदी और श्रीनगर में 26 फीसदी वोटिंग हुई. बशीर अहमद भट नामक एक 24 साल के लड़के ने मतदान के दिन पत्थर फेंका और सीआरपीएफ की गोली का निशाना बना.

लोग पत्थर तभी फेंकते हैं जब ज्यादती होती है. यह बोलते हुए उसने इसकी पूरी कोशिश की कि उसके आवाज में गुस्सा नहीं दिखे. सेना के जवान हमारी मांओं और बहनों को बेइज्जत करते हैं. कोई घर नहीं बचा है. राज्य में सात लाख सैनिक रह रहे हैं. कोई न कोई तो गलती करेगा. हर कोई फरिश्ता तो नहीं हो सकता है. ये बातें श्रीनगर में वोटिंग से एक सप्ताह पहले ट्रेन में एक वैसे युवक ने कही जिसे राजनीति से कोई वास्ता नहीं है.

ज्यादा ज्यादती होती है तो लोग सड़क पर उतर आते हैं, हमें आजादी चाहिए. न इंडिया न पाकिस्तान, हमें अपने हाल पर छोड़ दो. इस बात को कहते हुए युवक की आवाज में गुस्सा साफ झलक रहा था.

तुम्हें क्या चाहिए, मैने पूछा.
उसने जवाब दिया, कश्मीर आजाद रहे, अलबत्ता जो बिजनेस हो वो इंडिया के साथ करे. हमलोग भारत के साथ यह पैक्ट साइन करने के लिए तैयार हैं कि वो हमारा प्रमुख व्यापारिक साझीदार रहेगा.

जैसे ही ट्रेन श्रीनगर पहुंची प्लेटफार्म पर लोगों की तादाद देखकर मैं जोर से बोली, सरकार और रेलगाड़ियां क्यों नहीं चलाती है? बनिहल से बारामुला तक रोज तीन ही ट्रेनें चलती हैं.

युवक ने बताया, यहां के लोग भी और रेलगाड़ियां चलाने की मांग कर रहे हैं. इसके लिए प्रदर्शन भी हुए हैं. हो सकता है कि सरकार कश्मीरियों को सिर्फ विरोध प्रदर्शन में ही व्यस्त रखना चाहती हो. जैसे ही वह युवक ट्रेन से उतरा, वह दौड़ने लगा. उसी की तरह दूसरे यात्री भी दौड़ रहे थे. महिलाएं भी पीछे नहीं थीं. प्लेटफार्म पर दौड़ने में यहां की महिलाएं मुंबई की महिलाएओं पर भारी पड़ेंगी.

मैने एक यात्री से पूछा, सभी दौड़ क्यों रहे हैं? उसने जवाब दिया, बस में सीट लेने के लिए क्योंकि ज्यादा बसें भी नहीं चलती हैं. मुङो भी लगा कि अब दौड़ना पड़ेगा. ट्रेन को श्रीनगर में ही रोक दिया गया था और घोषणा हो रही थी- बारामुला जाने वाले यात्रियों को दूसरी ट्रेन पकड़नी पड़ेगी.

इस बार चौथा यात्री मैं थी. मेरे लिए तीन लोगों के लिए बनी सीट पर एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने जगह बनाई. जिस तरह से वह व्यक्ति सवाल पूछ रहा था उससे उसमें पत्रकार होने के गुण थे. मैने अपने बारे में बताया कि रिपोर्टर हूं और कश्मीर में चुनाव कवर करने आई हूं. फिर उनसे पूछा, क्या आप वोट देते हैं?

जवाब दिया, सच बोलूंगा-नहीं देता हूं.

क्यों नहीं, मैने पूछा. क्योंकि कोई फायदा नहीं है, जवाब मिला.

थोड़ी देर चुप रहने के बाद अधेड़ व्यक्ति ने बोलना शुरू किया, नफा नुकसान की बात नहीं है. यहां की सरकार दिल्ली वाले चलाते हैं. हमारे नेता बेकार के लोग हैं. वो बोलते ही नहीं है. अब ममता बनर्जी को देखिए, महिला होकर भी वह अपनी बात मजबूती से रखती है.

कश्मीर के चुनाव में ममता की चर्चा को इससे समझा जा सकता है कि वह अधेड़ आदमी हाथ से बनी चीजों का व्यापारी है और साल के पांच महीने सिलिगुड़ी में अपनी दुकान लगाता है.

उसने कहा, यहां से अच्छा वहां लगता है, कसम से. वहां कोई डर नहीं है. यहां जब हिंसा होती है तब किसी निदरेष पर भी गाज गिर सकती है. सुकून के बिना घर भी अच्छा नहीं लगता है.

देश के दूसरे राज्यों को छोड़कर आपने पश्चिम बंगाल को ही क्यों चुना, मैने पूछा.
जब आतंकवाद चरम पर था उस समय सिर्फ एक आदमी था-क्या नाम है उसका-ज्योति बसू-पश्चिम बंगाल का मुख्यमंत्री-जिसने कश्मीरियों का स्वागत किया और कहा था कि उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा. इसके बाद उसने सवाल किया, आप

कश्मीर और वहां के लोगों के बारे में क्या समझती हैं?
मेरा जवाब सुनने के बाद उसने दूसरा सवाल किया, तो फिर आप बाहर में ये बात क्यों नहीं बोलते हैं?

फिर उसने कहा, हजारों पर्यटक आते हैं और जाते समय हमारी प्रशंसा करते हैं. कहते हैं, कश्मीर के लोग बहुत अच्छे हैं, सिंपल हैं, मिलनसार हैं. लेकिन घर जाते ही भूल जाते हैं. अगर इंडिया हमलोगों को बोलता है कि कश्मीर हमारा है. चलिए दो मिनट के लिए मान लें, तब भारत के लोग क्यों नहीं आवाज उठाते हैं जब हमें प्रताड़ित किया जाता है. एक आदमी को गोली मार दी जाती है. जांच होती है और कुछ नहीं होता है. ज्यादातर केसों में न्याय नहीं होता है. अब आप ही बताएं कि वोट देना हमलोगों के लिए ठीक है?

इसी समय हमारी बगल में बैठा कृषि विज्ञान का छात्र, जो हमारी बातों को ध्यान से सुन रहा था, ने अपने को इस बातचीत में शामिल करते हुए कहा, कुछ लोग वोट देते हैं क्योंकि राज्य के रोज के कामकाज के लिए एक सरकार जरूरी है. यह सरकार किसी भी तरीके से बन जाएगी, अगर हम वोट नहीं देंगे तब भी. इसलिए हमें वोट देना चाहिए. लोग यहां वोट देते हैं अपने जीवनस्तर में सुधार लाने के लिए, भारत को समर्थन देने के लिए नहीं जैसा सरकार विश्व भर में दावा करती है. फिर छात्र ने कहा, अगर मैं वोट दूंगा तो मैं आम आदमी पार्टी के साथ जाउंगा. वो पार्टी जनता के बारे में सोचती है. मेरे इलाके (श्रीनगर)से नंबर एक उम्मीदवार फारुख अबदुल्ला हैं. बहुत लोग उन्हें पसंद नहीं करते हैं.

फिर वो कैसे जीतते हैं, मैने पूछा.

छात्र की सहपाठी और मित्र ने मुड़कर कहा, क्योंकि लोग वोट नहीं देते हैं. इसके बाद सभी हंसने लगे.
ट्रेन स्टेशन पर पहुंच गई लेकिन बातचीत का मुद्दा अधूरा रह गया.

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