नयी दिल्ली: प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारु के अनुसार भ्रष्टाचार के खिलाफ आग्रही बनने में मनमोहन की ‘‘विफलता’’ से उनकी सरकार अकर्मण्य बनी और नरेन्द्र मोदी एवं अरविन्द केजरीवाल का ‘‘उभार’’ हुआ.
इसके साथ ही, बारु ने कहा, ‘‘अगर वह (मनमोहन) भ्रष्टाचार से निबटने के प्रति गंभीर होते तो सरकार गिर जाती. द्रमुक और शरद पवार जैसे सहयोगियों के साथ बहुत कुछ दांव पर लगा था.’’ प्रधानमंत्री के पूर्व मीडिया सलाहकार के अनुसार मनमोहन मानते थे कि लोग उन्हें एक ईमानदार शख्स के रुप में देखते हैं और आरोप अन्य लोगों के खिलाफ हैं.
बारु के अनुसार मनमोहन ने उनसे कहा, ‘‘मैं इसके बारे में क्या कर सकता हूं.’’ उन्होंने कल रात अपनी किताब पर एक चर्चा के दौरान कहा, ‘‘अगर वह संप्रग 2 में कामयाब रहते तो कोई अरविन्द केजरीवाल नहीं होते.’’ बारु ने प्रधानमंत्री के बारे में कहा, ‘‘वह (मनमोहन) अपने बल-बूते आगे बढे एक इंसान हैं जो योग्य है, और बुलंदियों पर जा कर प्रधानमंत्री बने हैं. वह वैश्विक राजनेता हैं और मध्यवर्ग की पीढियां उनकी विरासत से प्रेरणा लेती.’’बारु से जब पूछा गया कि क्या वह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को नरेन्द्र मोदी के लिए ‘‘सर्वश्रेष्ठ पोलिंग एजेंट’’ मानते हैं तो उन्होंने कहा, ‘‘मैं निश्चित रुप से समझता हूं कि मोदी का उत्थान सरकार के पतन से सीधी तरह जुडा है.’’
उन्होंने कहा, ‘‘एक बहुत ही वरिष्ठ भाजपा नेता ने मुझसे कहा था कि अभी भारत में जो संचालित हो रहा है वह राजनीति का नियम नहीं बल्कि भौतिकशास्त्र का नियम है जहां शून्य पैदा हो गया है और हम उस शून्य में खिंचे चले जा रहे हैं. मैं नहीं समझता कि कोई इससे असहमत हो सकता है.’’ वर्ष 2004-08 के दौरान संप्रग एक में प्रधानमंत्री कार्यालय में रह चुके बारु ने कहा था कि राहुल गांधी ने सितंबर 2013 में दोषसिद्ध सांसदों पर अध्यादेश फाडा था. अगर मनमोहन ने उस वक्त अपना इस्तीफा दे दिया होता तो संप्रग सरकार गिर जाती.
उन्होंने कहा कि राहुल गांधी से अपनी करीबी के लिए जाने जाने वाले एक विश्लेषक ने तब लिखा था कि ‘‘प्रधानमंत्री को जाना चाहिए और राहुल गांधी को सत्ता हाथ में लेनी चाहिए.’’ बारु ने यह भी कहा कि उन्हें उम्मीद है कि किसी दिन मनमोहन सिंह अपनी आत्मकथा लिखेंगे.
जब बारु से पूछा गया कि क्या सरकार के रोजमर्रा के काम में हस्तक्षेप होता था तो उन्होंने कहा, ‘‘रोज किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं होता था. मुङो लगता है कि यह नीतिगत रुपरेखा है.
ऐसे अनेक मुद्दे हैं जहां उनके विचारों को मंजूर नहीं किया गया.’’ उन्होंने कहा, ‘‘एलपीजी सब्सिडी को ले लीजिए, जो एक अच्छा उदाहरण है. सिंह चाहते थे कि एलपीजी पर सब्सिडी समाप्त की जाए लेकिन पार्टी राजी नहीं हुई और चिदंबरम तक भी इस पर सहमत नहीं हुए.’’राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के साथ प्रधानमंत्री के रिश्तों के संबंध में बारु ने कहा कि सिंह ने इसे राजनीतिक जरुरत के तौर पर स्वीकार कर लिया था.
उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में कहा, ‘‘सरकार के साथ संवाद की कमी की समस्या नहीं है बल्कि विश्वसनीयता की कमी की दिक्कत है.’’ बारु ने कहा, ‘‘संप्रग 1 सरकार ने संवाद स्थापित किया और उस पर भरोसा किया गया. संप्रग 2 में उसकी राजनीतिक विश्वसनीयता समाप्त हो गयी और जब आपकी विश्वसनीयता चली जाती है तो यह अप्रासंगिक हो जाती है.’’
बारु के मुताबिक उन्होंने अपनी किताब में वही लिखा जो उन्होंने संवाददाता के तौर पर देखा और यदि उनकी किताब सरकारों की जवाबदेही बढाने के लिए अन्य लोगों को प्रेरित करती है तो उन्हें इसका श्रेय लेने में खुशी होगी.