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हिंदी नहीं जानने का बहाना क्यों बनाते हैं मणिशंकर अय्यर

बार – बार विवादित बयानों से मुश्किलों में फंसते मणिशंकर अय्यर ने आज फिर एक बयान देकर चुनावी मौसम में कांग्रेस पार्टी की परेशानी बढ़ा दी है. उनके परेशान कर देने वाले बयान को लेकर पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने त्वरित प्रतिक्रिया जताकर डैमेज कंट्रोल की कोशिश की. अपने बुरे दौर से गुजर रहीकांग्रेस पार्टी […]

बार – बार विवादित बयानों से मुश्किलों में फंसते मणिशंकर अय्यर ने आज फिर एक बयान देकर चुनावी मौसम में कांग्रेस पार्टी की परेशानी बढ़ा दी है. उनके परेशान कर देने वाले बयान को लेकर पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने त्वरित प्रतिक्रिया जताकर डैमेज कंट्रोल की कोशिश की. अपने बुरे दौर से गुजर रहीकांग्रेस पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती जनाधार वाले राष्ट्रीय नेताओं की कमी है. ‘चाय बेचने’ से लेकर ‘नीच’ तकके बयान में जुबां फिसलने की बात कहने वाले मणिशंकर अय्यर से जब जवाब मांगा गया तो उन्होंनेअपनी कमजोर हिंदी को ढाल बनाया.

यह अलग बात है कि अकसर टीवी डिबेटों में अय्यर हिंदी बोलते नजर आते हैं. उनके द्वारा प्रयुक्त शब्द से तो यही अनुमान लगाया जा सकता है कि वह कांग्रेस के कई नेताओं से अच्छी हिंदी बोलते हैं. ऐसी परिस्थिति में अय्यर कमजोर हिंदी का हवाला देकर खुद का बचाव क्यों करना चाहते हैं? भारत के राष्ट्रीय राजनीति में हिंदी का ज्ञान राजनीतिक सफलता का आवश्यक कारक माना जाता है.अंग्रेजीजानने वाले नेता भी अकसर हिंदी बोलनेकी कोशिश करतेनजर आते हैं. टीवी डिबेट से लेकर चुनावी रैलियों में भी जनता से जुड़ने की आम भाषाहिंदी बन चुकी है. कम से कम राष्ट्रीय राजनीति के लिए यह एक स्थापित तथ्य बन चुका है. प्रणब मुखर्जी और के कामराज तक प्रधानमंत्री बनने के राह में हिंदी के अल्पज्ञान को जिम्मेदार ठहराते नजर आये हैं.

अय्यर की भारतीय राजनीति में प्रवेश राजीव गांधी ने कराया था.
स्कूल के दिनों में मणिशंकर अय्यर राजीव के दोस्त थे. उनकी छवि एक लोकप्रिय राजनेता की कम और बुद्धिजीवी नेता के रूप में ज्यादा रही है.देश- दुनिया के प्रतिष्ठितसंस्थानोंसे पढ़ाई करनेवाले मणिशंकर अय्यर अकसर ऐसी बातें बोल जाते हैं, जो उनके राजनीतिक करियर में बाधा बनकर सामने आती है. वह तमिलनाडु से एक बार लोकसभा के लिए चुने गये हैं. फिर भी कमोबेश उनकी छवि एक डिप्लोमेट और लेखक के रूप में रही है. ऐसे वक्त में जब पार्टी को लोगों के बीच जाकर काम करने वाले नेताओं का आभाव है. वैसे नाजुक दौर में कांग्रेस के पास ड्राइंग रूम पॉलिटीक्स करने वाले नेताओं की तादाद बढ़ते जा रही है. कपिल सिब्बल से लेकर जयराम रमेश तक तमाम नेता पार्टी की दिक्कतों को कम करने की बजाय बढ़ाते ही नजर आते हैं.

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