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पंद्रह साल से राजनीति में सक्रिय राहुल गांधी आखिर जिम्मेदारियों से क्यों भागते हैं ?

कांग्रेस पार्टी में राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के पहले बगावत के सुर तेज होगये हैं. प्रधानमंत्री मोदी के तंज और पार्टी के अंदर छिटपुट विरोध के बीच राहुल गांधी का अध्यक्ष बनना तय है. राष्ट्रीय राजनीति मेंराहुल लंबे समय से सक्रिय हैं. पार्टी में अध्यक्ष बनने के बाद राहुल कांग्रेस के सर्वोच्च पद पर […]

कांग्रेस पार्टी में राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के पहले बगावत के सुर तेज होगये हैं. प्रधानमंत्री मोदी के तंज और पार्टी के अंदर छिटपुट विरोध के बीच राहुल गांधी का अध्यक्ष बनना तय है. राष्ट्रीय राजनीति मेंराहुल लंबे समय से सक्रिय हैं. पार्टी में अध्यक्ष बनने के बाद राहुल कांग्रेस के सर्वोच्च पद पर होंगे. यह एक ऐसा वक्त है जब कांग्रेस पार्टी अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. एक तरफ उनका मुकाबला मजबूत नेता मोदी से है. वहीं लगातार हार की सामना कर रही पार्टी के कार्यकर्ताओंके गिरते मनोबल को संभालना उनकी सबसे बड़ी चुनौती होगी.

राहुलगांधी एनएसयूआई व यूथ कांग्रेस के प्रभारी,कांग्रेस पार्टी के महासचिव, उपाध्यक्ष व अमेठी के सांसद के रूप में कई भूमिका निभा चुके हैं. कई बार उनकी सक्रियता को लेकर पार्टी में उम्मीद जगती है. वहीं अगले ही पल किसी विधानसभा चुनाव में हार मिलनेके बाद नये सिरे सेउनके नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़े होने लगते हैं.

जिम्मेदारी लेने से बचते हैं राहुल
राजनीति में राहुल की इंट्री 2004 में लोकसभा चुनाव के साथ हुई. राहुल गांधी अमेठी से सांसद बनकर लोकसभा पहुंचे. यह पहली बार था, जब राहुल गांधी खुलकर राजनीति के मैदान में थे. मीडिया को भी उनमें संभावना नजर आ रही थी. उतर प्रदेश में उन्होंने कांग्रेस की ओर से प्रचार किया लेकिन कांग्रेस पार्टी को 80 सीट में मात्र 10 सीटों में ही जीत हाथ लग पायी. राहुल की प्रतिभा को लेकर तब एक रहस्य बना हुआ था. वह देश के सबसेबड़े सियासी परिवार से आये थे. युवा होने के नाते उन्हें भारतीय राजनीति में भविष्य के नेता के रूप में देखा जा रहा था.

अमेठी में एक लाख के वोटों से जीत के बाद राहुल 2007 में कांग्रेस पार्टी के महासचिव बनाये गये. पार्टी में महासचिव के साथ उन्हें एनएसयूआई और यूथ विंग की जिम्मेदारी दी गयी. उन दिनों उन्होंने पार्टी में युवाओं को शामिल करने को लेकर अभियान चलाया और इस अभियान में कामयाबी भी मिली. राहुल गांधी की सक्रियता पार्टी में बढ़ती जा रही थी. अब वह न सिर्फ ड्राइंग रूम पॉलिटिक्स में पार्टी के लिए रणनीति बनाते बल्कि 2007 के यूपी विधानसभा चुनाव में वह कांग्रेस पार्टी का चेहरा बने. सक्रिय प्रचार के बावजूद भी राहुल गांधी को यूपी विधानसभा चुनाव में उस तरह की कामयाबी हाथ नहीं लग पायी.

राहुल गांधी को कांग्रेस पार्टी का युवा चेहरा के रूप में इसलिए उम्मीद जगी क्योंकि यूथ कांग्रेस में थिंक – टैंक के रूप में 40 युवाओं का चयन किया था. 2009 लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल फिर से अमेठी से चुनकर आये. उन्होंने अपने निकटतम प्रत्याशी को तीन लाख सत्तर हजार वोटों से हराया. पूरे देश में उन्होंने 125 चुनावी रैली को संबोधित किया. इस बार यूपी में कांग्रेस की सीट 10 से बढ़कर 21 हो गयी. राहुल का तिलिस्म अब चलता नजर आ रहा था. यह वह दौर था. जब वह किसान के घर रात बिताते. मनरेगा मजदूर के बीच चले जाते और उनके साथ नजर आते. कहा तो यह भी जाता है कि राहुल को ऐसा करने की सलाह सिंगापुर के पीएम ली क्वान ने दी थी. उन्होंने राहुल से कहा था. जबतक आप देश को पूरी तरह से समझ नहीं पाते कोई भी जिम्मेदारी लेने से बचें. राहुल देश की मीडिया में सर्वाधिक सुर्खियों में रहने लगे. 2011 में उन्होंने भट्टा परसोल के किसानों के आंदोलन में भाग लिया. 2013 में वह पार्टी के उपाध्यक्ष बनाये गये. सोनियां गांधी बीमार रहने लगीं और राहुल कांग्रेस पार्टी से जुड़े फैसले लेने लगे.

यपी विधानसभा चुनाव 2012
राहुल गांधी के सक्रिय राजनीति में आये और सांसद बने पांच साल से ज्यादा वक्त हो गये लेकिन इस दौरान उन्होंने कोई भी जिम्मेदारी लेने से बचते रहे. उन्होंने केंद्र सरकार में मंत्रालय नहीं लिया. मनमोहन सिंह ने कम – से -कम छह बार उन्हें मंत्री बनने का न्यौता दिया.अब वक्त खींचता जा रहा था. वैसे – वैसे राहुल की तिलिस्म भी खत्म हो रहा था. 2012 में राहुल गांधी ने 200 चुनावी रैलियां की. इसके बावजूद कांग्रेस चौथे नंबर पर पहुंच गयी. इस करारी हार से राहुल की छवि को धक्का लगा. इसी साल गुजरात में विधानसभा चुनाव होने वाले थे. राहुल गांधी को चुनाव प्रचार से दूर रखा गया.

राहुल की छवि मूडी नेता की होने लगी. कभी वह बेहद सक्रिय रहते तो कभी लंबी छुट्टी पर चले जाते. राहुल गांधी ने पार्टी नेता अजय माकन की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बीच में जाकर कह दिया था कि जो अध्यादेश सरकार ने राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा है, वह बकवास है और वह मानते हैं कि उसे फाड़कर फेंक देना चाहिए. उनके इस बयान के बाद जैसे देश में राजनीतिक भूचाल आ गया था. कांग्रेस के तमाम नेता राहुल के समर्थन में आ गए और सरकार को यह अध्यादेश वापस लेना पड़ा. इस घटना के बाद से राहुल गांधी की छवि नकरात्मक होते गयी. लोगों को लगने लगा कि वह सनकी नेता है. जनता की नब्ज को समझने में असफल है.


इस दौरान 2014 लोकसभा चुनाव की कैंपेन की तैयारी शुरू हुई. भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने वंशवाद पर निशाना साधा. राहुल जनता से कनेक्ट नहीं हो पाते हैं औरअकसर लगता है कि वह राजनीति में खुद कोसहज महसूस नहीं करते हैं. इन सब केबावजूदवह गांधी परिवार से हैं. ऐसे परिवार से जहां देशसे तीन प्रधानमंत्री बने हैं. ऐसे में अब भी रहस्य बरकरार है.

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