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गोधरा कांड की जांच के लिए गुजरात सरकार ने 12 साल में 24 बार बढ़ाया था नानावटी आयोग का कार्यकाल

अहमदाबाद/नयी दिल्लीः आज से डेढ़ दशक पहले वर्ष 2002 में गोधरा में साबरमती ट्रेन की एक बोगी एस-6 में हुर्इ आगजनी की घटनाआें को लेकर सोमवार को गुजरात हार्इकोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है. अदालत ने अपने फैसले में निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए 11 दोषियों को मिली फांसी की सजा को […]

अहमदाबाद/नयी दिल्लीः आज से डेढ़ दशक पहले वर्ष 2002 में गोधरा में साबरमती ट्रेन की एक बोगी एस-6 में हुर्इ आगजनी की घटनाआें को लेकर सोमवार को गुजरात हार्इकोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है. अदालत ने अपने फैसले में निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए 11 दोषियों को मिली फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया है. इस मामले में अहम बात यह है कि गोधरा साबरमती ट्रेन मामले की जांच के लिए न्यायमूर्ति जीटी नानावटी की अध्यक्षता में गुजरात सरकार की आेर से गठित आयोग का कार्यकाल 12 में 24 बार बढ़ाया गया था. नानावटी आयोग ने सरकार को अपनी अपनी रिपोर्ट वर्ष 2014 में ही सौंप दिया था.

इसे भी पढ़ेंः गोधरा कांड: नानावटी आयोग की अंतिम रिपोर्ट 15 नवंबर तक आने की संभावना

रिपोर्ट सौंपने के पहले आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति नानावटी ने कहा था कि आयोग सरकार से एक बार और समय बढ़ाने के लिए नहीं कहेगा. इससे पहले गुजरात सरकार ने आयोग का कार्यकाल 24 बार बढ़ाया था. इससे पहले 30 सितंबर, 2014 को आयोग की अवधि बढ़ायी गयी थी, जो 31 अक्तूबर, 2014 को समाप्त हो रही थी. 30 अक्टूबर, 2014 को न्यायमूर्ति नानावटी ने कहा था कि 25वीं बार कार्यकाल बढ़ाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि हमारी अंतिम रिपोर्ट तैयार है. इसे छापा जा रहा है और कुछ दिन में हमारे पास आ जायेगी.

आयोग में दो सेवानिवृत्त न्यायाधीश नानावटी और अक्षय मेहता शामिल थे. जांच आयोग ने 2008 में गोधरा ट्रेन कांड के बारे में अपनी रिपोर्ट का एक हिस्सा सौंपा था. आयोग ने इसमें कहा था कि गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस के कोच संख्या एस-6 में आग लगना ‘सोची समझी साजिश’ का हिस्सा था.

गुजरात सरकार ने 27 फरवरी, 2002 को गोधरा ट्रेन अग्निकांड और बाद में राज्य में भडके दंगों के मद्देनजर तीन मार्च, 2002 को जांच आयोग अधिनियम के तहत आयोग का गठन किया था, जिसमें न्यायमूर्ति केजी शाह थे. शुरुआत में आयोग के विचारणीय विषयों (टीओआर) में साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 डिब्बे के जलने के घटनाक्रम के तथ्यों, हालात के बारे में पडताल करना शामिल था.

गुजरात की सरकार ने मई, 2002 में सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति नानावटी को आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया था. इसके बाद सरकार की आेर से जून, 2002 में इसके टीओआर में संशोधन किया गया. साल 2008 में न्यायमूर्ति केजी शाह के निधन के बाद हार्इकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति अक्षय मेहता को आयोग में नियुक्त किया गया.

गोधरा कांड से जुड़े अन्य अहम तथ्य

27 फरवरी, 2002 : गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती ट्रेन के एस-6 कोच में भीड़ द्वारा आग लगाये जाने के बाद 59 कारसेवकों की मौत हो गयी. इस मामले में 1500 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी थी.

28 फरवरी, 2002 : गुजरात के कई इलाकों में दंगा भड़का, जिसमें 1200 से अधिक लोग मारे गये. मारे गये लोगों में ज्यादातर अल्पसंख्यक समुदाय के लोग थे.

03 मार्च, 2002 : गोधरा ट्रेन जलाने के मामले में गिरफ्तार किये गये लोगों के खिलाफ आतंकवाद निरोधक अध्यादेश (पोटा) लगाया गया.

06 मार्च, 2002 : गुजरात सरकार ने कमीशन ऑफ इन्क्वायरी एक्ट के तहत गोधरा कांड और उसके बाद हुई घटनाओं की जाँच के लिए एक आयोग का गठन किया.

09 मार्च, 2002 : पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी (आपराधिक षड्‍यंत्र) लगाया.

25 मार्च, 2002 : केंद्र सरकार के दबाव की वजह से सभी आरोपियों पर से पोटा हटाया गया.

18 फरवरी 2003 : गुजरात में भाजपा सरकार के दोबारा चुने जाने पर आरोपियों के खिलाफ फिर से आतंकवाद निरोधक कानून लगा दिया गया.

21 नवंबर, 2003 : सुप्रीम कोर्ट ने गोधरा ट्रेन जलाये जाने के मामले समेत दंगे से जुड़े सभी मामलों की न्यायिक सुनवाई पर रोक लगायी.

04 सितंबर, 2004 : राजद नेता लालू प्रसाद यादव के रेलमंत्री रहने के दौरान केद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले के आधार पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश यूसी बनर्जी की अध्यक्षता वाली एक समिति का गठन किया गया. इस समिति को घटना के कुछ पहलुओं की जाँच का काम सौंपा गया.

21 सितंबर, 2004 : नवगठित यूपीए सरकार ने पोटा कानून को खत्म कर दिया और अरोपियों के खिलाफ पोटा आरोपों की समीक्षा का फैसला किया.

17 जनवरी, 2005 : यूसी बनर्जी समिति ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में बताया कि एस-6 में लगी आग एक ‘दुर्घटना’ थी. इस बात की आशंका को खारिज किया कि आग बाहरी तत्वों द्वारा लगायी गयी थी.

16 मई, 2005 : पोटा समीक्षा समिति ने अपनी राय दी कि आरोपियों पर पोटा के तहत आरोप नहीं लगाये जायें.

13 अक्टूबर, 2006 : गुजरात हार्इकोर्ट ने व्यवस्था दी कि यूसी बनर्जी समिति का गठन ‘अवैध’ और ‘असंवैधानिक’ है, क्योंकि नानावटी-शाह आयोग पहले ही दंगे से जुड़े सभी मामले की जांच कर रहा है. उसने यह भी कहा कि बनर्जी की जांच के परिणाम ‘अमान्य’ हैं.

26 मार्च, 2008 : सुप्रीम को्रट ने गोधरा ट्रेन में लगी आग और गोधरा के बाद हुए दंगों से जुड़े आठ मामलों की जांच के लिए विशेष जांच आयोग बनाया.

18 सितंबर, 2008 : नानावटी आयोग ने गोधरा कांड की जांच सौंपी. उसने कहा कि यह पूर्व नियोजित षड्‍यंत्र था और एस-6 कोच को भीड़ ने पेट्रोल डालकर जलाया.

12 फरवरी, 2009 : हार्इकोर्ट ने पोटा समीक्षा समिति के इस फैसले की पुष्टि की कि कानून को इस मामले में नहीं लागू किया जा सकता है.

20 फरवरी, 2009 : गोधरा कांड के पीड़ितों के रिश्तेदार ने आरोपियों पर से पोटा कानून हटाये जाने के हार्इकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. इस मामले पर सुनवाई अब भी लंबित है.

01 मई, 2009 : सुप्रीम कोर्ट ने गोधरा मामले की सुनवाई पर से प्रतिबंध हटाया और सीबीआई के पूर्व निदेशक आरके राघवन की अध्यक्षता वाले विशेष जांच दल ने गोधरा कांड और दंगे से जुड़े आठ अन्य मामलों की जांच में तेजी आयी.

01 जून, 2009 : गोधरा ट्रेन कांड की सुनवाई अहमदाबाद के साबरमती केंद्रीय जेल के अंदर शुरू हुई.

06 मई, 2010 : सुप्रीम कोर्ट सुनवाई अदालत को गोधरा ट्रेन कांड समेत गुजरात के दंगों से जुड़े नौ संवेदनशील मामलों में फैसला सुनाने से रोका.

28 सितंबर, 2010 : सुनवाई पूरी हुई, लेकिन शीर्ष अदालत द्वारा रोक लगाये जाने के कारण फैसला नहीं सुनाया गया.

18 जनवरी, 2011 : सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाने पर से प्रतिबंध हटाया.

22 फरवरी, 2011 : विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 31 लोगों को दोषी पाया, जबकि 63 अन्य को बरी किया.

1 मार्च, 2011: विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 11 को फांसी, 20 को उम्रकैद की सजा सुनायी.

15 नवंबर, 2014 : नानावती आयोग ने 12 साल की जांच के बाद गुजरात दंगों पर अपनी अंतिम रिपोर्ट तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को सौंप दी थी.

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