-रजनीश आनंद-
(लेखिका‘माहवारी स्वच्छता और झारखंडी महिलाओं का स्वास्थ्य’ विषय परइंक्लूसिव मीडिया यूएनडीपी की फेलो रहीं हैं)
भारतीय समाज में माहवारी को लेकर कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई हैं. आज भी जबकि हम आधुनिक युग में जीने का दावा करते हैं माहवारी को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हमारे समाज में व्याप्त हैं. इसे एक जैविक प्रक्रिया मानने की बजाय लोग इसे कई तरह के मिथ से जोड़कर देखते हैं. जिनका सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं है और उनका कोई वैज्ञानिक कारण भी नहीं है. शहरी क्षेत्रों में शिक्षा का प्रसार ज्यादा होने के कारण लोगों की मानसिकता बदली है और उन्होंने माहवारी को लेकर अपनी राय भी बदली है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में आज भी स्थिति में बहुत बदलाव की जरूरत है.
जानकारी का है अभाव
जागरूकता अभियान के बावजूद ग्रामीण महिलाएं माहवारी को बहुत कम जानकारी रखती हैं. झारखंड के ग्रामीण इलाकों में आज भी महिलाएं इस बात से अनभिज्ञ सी हैं कि उन्हें हर महीने क्यों इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. जब हमने ग्रामीण महिलाओं से इस संबंध में बात की, तो वे इस बात का जवाब देने में असमर्थ रहीं. वे इसे ईश्वर का श्राप या बीमारी की श्रेणी में रखती हैं, जिसे झेलना औरत की नियति है. यह अनभिज्ञता वृद्ध महिलाओं से लेकर किशोरियों तक में है.
ग्रामीण ही नहीं शहरी महिलाएं भी हैं भ्रांतियों की शिकार
भारतीय समाज में माहवारी को लेकर जो भ्रांतियां हैं, वे क्यों हैं और इनका वैज्ञानिक आधार क्या है, इसपर कोई बात नहीं करता. इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि लोग जानते ही नहीं कि आखिर इन भ्रांतियां का आधार क्या है, लेकिन वे इसे मानते चले आ रहे हैं. मसलन माहवारी के दौरान पूजा ना करना, मंदिर में प्रवेश ना करना, आचार ना छूना, भंडारगृह में प्रवेश ना करना, रसोईघर में प्रवेश ना करना इत्यादि. हालांकि इन मिथकों का कोई वैज्ञानिक आधार अबतक सामने नहीं आया है.
माहवारी के दौरान शारीरिक संबंध अनुचित?
अकसर यह माना जाता है कि माहवारी के दौरान शारीरिक संबंध बनाना सही नहीं होता है और इससे स्त्री के गर्भाशय को नुकसान पहुंचता है. हालांकि डॉक्टरों की राय है कि माहवारी और शारीरिक संबंध अलग-अलग विषय हैं और यह इंसान की अपनी इच्छा पर निर्भर है. हालांकि डॉक्टर यह मानते हैं कि अगर स्त्री किसी तरह के यौन संक्रमण की शिकार हो तो शारीरिक संबंध बनाना सही नहीं होता है.