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दोस्तों और परिवार का साथ दूर करेगा एंग्जाइटी

डॉ जया सुकुल, मनोचिकित्सक, क्यूआरजी हेल्थ सिटी अस्पताल, फरीदाबाद आजकल हमारा जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. हम घर-परिवार, ऑफिस, पैरेंट्स आदि के बीच सामंजस्य बिठाने की कोशिश में खुद के लिए क्वालिटी टाइम नहीं निकाल पाते हैं, जिसकी वजह से कई शारीरिक और मानसिक विकारों के शिकार हो जाते हैं, एंग्जाइटी भी उन्हीं में से […]

डॉ जया सुकुल, मनोचिकित्सक, क्यूआरजी हेल्थ सिटी अस्पताल, फरीदाबाद

आजकल हमारा जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. हम घर-परिवार, ऑफिस, पैरेंट्स आदि के बीच सामंजस्य बिठाने की कोशिश में खुद के लिए क्वालिटी टाइम नहीं निकाल पाते हैं, जिसकी वजह से कई शारीरिक और मानसिक विकारों के शिकार हो जाते हैं, एंग्जाइटी भी उन्हीं में से एक है.

-बॉडी इमेज एंग्जाइटी : यह एंग्जाइटी 18-35 वर्ष के युवाओं में अधिक देखा जाता है. मरीज अपनी बॉडी की शेप, साइज, वजन, लंबाई को लेकर चिंतित रहतें हैं. वे शरीर के प्रति इतने चिंतित होते हैं कि या तो बहुत ज्यादा खाने लगते हैं या खाना ही छोड़ देते हैं. हेल्दी लाइफ नहीं जी पाते.

-जेनरलाइज्ड एंग्जाइटी डिस्ऑर्डर (जीएडी): मरीज का नजरिया हर चीज में नकारात्मक हो जाता है. उन्हें लगता है कि सारी समस्याएं उन्हें ही हैं. वे असामान्य व्यवहार करने लगते हैं. दैनिक कार्य ठीक से नहीं कर पाते. धीरे-धीरे शारीरिक रूप से भी बीमार होते जाते हैं. इम्यून पावर कमजोर होने लगता है. शरीर में दर्द व कमजोरी जैसी समस्याएं अधिक होने लगती हैं.

-ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिस्ऑर्डर : मरीज लगातार चिंतित और भयभीत रहता है. उसमें अजीब आदतें विकसित हो जाती हैं, जैसे- सफाई की सनक, वे साफ-सुथरी चीजों को भी बार-बार पोछते रहते हैं. किसी भी विषय पर 20-20 घंटे तक सोचते रहते हैं. उसी के बारे में बात करते हैं, वही बात दोहराते हैं.

लक्षण : उम्र के हिसाब से एंग्जाइटी इसका असर बड़ों व बच्चों पर अलग-अलग होता है. बड़ों में सांस लेने में तकलीफ, अनियमित हार्ट बीट, अचानक घबराहट जैसे कुछ बुरा होने वाला हो आदि लक्षण देखने को मिलते हैं. वहीं, बच्चों में एंग्जाइटी सांस न आने, चेस्ट या पेट में दर्द जैसी फीलिंग होती है, क्योंकि उन्हें घबराहट समझ में नहीं आती, उनके लिए घबराहट की फीलिंग दर्द बन जाती है. खाना खाने का मन न करना, इटिंग हैबिट्स में बदलाव आना, बच्चा या तो बहुत कम खाता है या ज्यादा खाने लगता है.

एंग्जाइटी कभी भी अकेले नहीं होती. इसके साथ मरीज को कोई अन्य छोटी-बड़ी समस्या हो सकती है. शरीर के किसी भाग में दर्द या अकड़न या फिर चोट लगने, चलते-चलते लड़खड़ाना, उंगली जलने या कटने का रिस्क देखने को मिलता है. किसी भी चीज को लेकर ज्यादा घबराहट होना, हार्ट बीट बहुत तेज हो जाना, चेस्ट में दर्द होना, सांस लेने में कठिनाई, एकाग्रता में कमी, एक ही बात बार-बार दोहराना, परेशान होना, बाॅडी टेम्परेचर में असंतुलन होना, कभी-कभी हाथ-पैर ठंडा पड़ जाना, तो बुखार जैसा महसूस होना, हाथ आपस में जोड़ना-खोलना, कंपन होना, हाथ-पैर में झुनझुनी, बहुत ज्यादा पसीना आना, कमजोरी महसूस होना, मांसपेशियों में तनाव होने से शरीर में दर्द होना, बहुत ज्यादा सपने आना, नींद न आना या नींद पूरी न होना, निगेटिव विचारों पर कंट्रोल न होना, डरावने सपने देखना आदि लक्षण दिख सकते हैं.

डॉक्टर के पास कब जाएं
-मरीज अगर काफी समय से स्ट्रेस में है और एंग्जाइटी की वजह से अपनी डेली रुटीन के काम ठीक से नहीं कर पा रहा हो, तो उसे जल्द-से-जल्द फिजीसियन या मनोचिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए.

-आमतौर पर मनोचिकित्सक से इलाज करवाने का मतलब लोग मरीज को पागल समझ लेते हैं, पर ऐसा बिल्कुल नहीं है. मनोचिकित्सक मरीज की काउंसेलिंग कर उसकी मानसिक अवस्था का अध्ययन करते है. एंग्जाइटी की मुख्य वजह का पता लगाया जाता है. उसी के हिसाब से साइकोथेरेपी की जाती है.

कॉग्नीटिव बिहेवियर थेरेपी : इसमें मरीज के लर्निंग और थिंकिंग पैटर्न को बदला जाता है. इसमें ब्रेन ट्यूनिंग एक्सरसाइज, दिमाग और मरीज की सोच की स्टडी कर उसे बदलने की कोशिश की जाती है. इससे उसे जटिल परिस्थितियों से तालमेल बिठाने और मस्तिष्क को शांत रखने में मदद मिलती है.

साइकोएनालिसिस थेरेपी : अगर मरीज वयस्क है और उनके बचपन मे कोई ट्रामा (हादसा) हुआ हो, तो उसे एक्सप्लोर और हील करते हैं.

हिप्नोथेरेपी : क्लीनिकल साइकोलाॅजी में हिप्नोथेरेपी भी प्रयोग की जाती है. जब मरीज अपनी मेमोरीज को बाहर नहीं निकाल पा रहा हो या एंग्जाइटी की वजह मालूम न हो पाये, तो ये कारगर उपाय हो सकता है.
विजुलाइजेशन और सिस्टमेटिक डिसेंटरलाइजेशन तकनीक : इन तकनीकों के माध्यम से एंग्जाइटी को धीरे-धीरे इतना बढ़ाया जाता है कि उसे झेलने के लिए मरीज मानसिक रूप से तैयार हो जाये. इससे मरीज की मेंटल स्ट्रेंथ बढ़ती है.
प्ले थेरेपी और आर्ट थेरेपी : एंग्जाइटी के शिकार बच्चों का इलाज प्ले थेरेपी और आर्ट थेरेपी से किया जाता है. मनोचिकित्सकों द्वारा डिजाइन किये गये साइकलॉजिकल गेम्स खेलने को दिये जाते हैं, जो काफी मददगार साबित होते हैं. आर्ट थेरेपी में पहले फ्री स्टाइल पेंटिंग करायी जाती है, फिर एंग्जाइटी रिलीज करने वाले आर्टवर्क कराये जाते हैं.
बातचीत : रजनी अरोड़ा

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