नयी दिल्ली : एक नये अध्ययन में पता चला है कि भारत में किशोरावस्था में बच्चों को जन्म देने वाली माताओं के बच्चे वयस्क महिलाओं के बच्चों की तुलना में कमजोर होते हैं.
देश में बच्चों में कुपोषण और किशोरावस्था में गर्भावस्था के बीच संबंध का पता लगाने के लिए पहली बार व्यापक अध्ययन किया गया था. अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान (आईएफपीआरआई, IFPRI) के शोधकर्ताओं का कहना है कि भारत में कमजोर बच्चे बड़ी तादाद में हैं.
यह देश किशोर गर्भावस्था के मामले में 10वें नबंर पर है. यूं तो देश में 18 साल से कम उम्र में विवाह गैरकानूनी है, लेकिन वर्ष 2016 के राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण – 4 (एनएफएचएस-4, NFHS – 4) ने खुलासा किया है कि 27 फीसदी लड़कियों का विवाह उनके 18 साल के होने के पहले ही हो जाता है और देश में 31 फीसदी विवाहित महिलाएं 18 साल की उम्र में बच्चे को जन्म दे देती हैं.
आईएफपीआरआई के शोधकर्ता फुओंग होंग ग्यूयेन कहते हैं, भारत में किशोरावस्था में गर्भधारण के प्रचलन को घटा कर हम संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के प्रयासों में तेजी ला सकते हैं इनमें खास तौर पर गरीबी हटाने, स्वास्थ्य, पोषण, सर्व कल्याण, समानता तथा शिक्षा का लक्ष्य हासिल करना है.
‘द लैंसेट चाइल्ड एंड एडोलेसेंट हेल्थ’ में प्रकाशित अध्ययन में मां और बच्चों के 60,097 जोड़ों का अध्ययन किया और इसे किशोरावस्था के वक्त गर्भावस्था और उनसे जन्में बच्चों में कुपोषण का भी अध्ययन किया.
इस अध्ययन में पता चला कि किशोरावस्था में बच्चों को जन्म देने वाली माताओं के बच्चों के कमजोर होने तथा उनका वजन कम होने की दर वयस्क महिलाओं के बच्चों की तुलना 10 प्रतिशत अधिक है.
वयस्क मांओं की तुलना में किशोर माएं कद में छोटी, कम वजन वाली थीं. स्वास्थ्य सेवाओं तक इनकी सीमित पहुंच थी तथा उनका खानपान भी उचित नहीं था.