योगेश कुमार, पटेल नगर
नेपाल, यह नाम सुनते ही हिमालय की गोद में, प्रकृति की छांव में सिमटे एक ऐसे देश की छवि उभरती है जो कहने को तो विदेश है लेकिन है अपना सा. यही कारण है कि इससे मेरा एक अलग सा लगाव रहा है.पिछले चार दशकों में कई बार नेपाल जा चुका हूं. वह भी कई अलग-अलग बॉर्डर से. नेपाल से लगाव के वजह से हमने अपनी बड़ी बेटी का नाम कांक्षी रखा है.
सड़क मार्ग से किया क्रॉस
हमने अपनी गाड़ी से ही नेपाल बॉर्डर रक्सौल तक जाने का निर्णय लिया. पूर्व परिचित विजेंद्र ने यहीं मुझे एक नेपाली सिम कार्ड उपलब्ध कराया जो आगे बहुत काम आया. अगले दिन सुबह टमटम से बॉर्डर क्रॉस कर वीरगंज पहुंचे. भारत-नेपाल बॉर्डर को देख मेरी दोनों बेटियां हतप्रभ थीं. असल में भारत-नेपाल का बॉर्डर खुला हुआ है. दोनों देशों के लोग एक दूसरे के बॉर्डर पार कर अपनी रिश्तेदारी तथा रोजमर्रा के काम से आते-जाते रहते हैं.
वीरगंज एक समय नेपाल का सबसे बड़ा और सस्ता मार्केट माना जाता था. नेपाल में दुकान को पसल बोला जाता है. नेपाल के बिजनेस पर मारवाड़ी लोगों का कब्जा है. सौ भारतीय रुपये 160 नेपाली रुपये के बराबर होते हैं. वैसे नेपाल में भारतीय करेंसी भी खूब चलती है.
मिलते हैं कई तरह के साधन
बॉर्डर पार कर वीरगंज से काठमांडू जाने के लिए बस, ट्रेवलर और सूमो बहुतायत में मिलते हैं. बस नारायण घाट होकर जाती है. दूसरे रास्ते से दूरी कम है लेकिन रास्ता बहुत घुमावदार और खतरनाक है जिसमें बाइक तथा सूमो ही ज्यादा चलता है. हमने सूमो से जाने का निर्णय किया. दोनों रास्ते से जाने के लिए हैटोड़ा जाना पड़ता है. दोपहर जब काठमांडू पहुंचा तो मुझे लगा, मैं गलत जगह पहुंच गया हूं.
मैं पहले भी कई बार काठमांडू जा चुका हूं लेकिन इस बार काठमांडू का सब कुछ बदला सा था. अब काठमांडू में काठ के कलात्मक घर की जगह कंक्रीट के अपार्टमेंट ने ले ली है. लोगों से बात करने पर चला कि यह परिवर्तन तो काफी पहले आ गया था लेकिन वर्ष 2015 के भूकंप के बाद सब कुछ बदल गया.
जो भी कारण हो यह बदलाव मन को भा नहीं रहा था. सुंधारा में होटल से फ्रेश होकर हम लोग निकल पड़े दरबार स्क्वायर की तरफ. दरबार स्क्वायर काठमांडू का दिल है. यह वर्ल्ड हेरीटेज साइट में शामिल है. वहां पहुंच कर उस जगह का नजारा देख बहुत दुख हुआ. पैगोडा शैली में कलात्मक नक्कासी के लिए विश्व प्रसिद्ध बसंतपुर दरबार स्क्वायर अब मलबे में तब्दील हो गया है. जो कुछ भी बचा है वह लकड़ियों के खंभों के सहारे खड़े है.
दूसरे दिन जल्दी उठ कर पशुपतिनाथ मंदिर के दर्शन किये. यह काठमांडू में बागमती नदी के तट पर स्थित है. यूनेस्को की विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में शामिल भगवान पशुपतिनाथ मंदिर अनोखा है. इसमें लिंग विग्रह में चार दिशाओं में चार मुख और ऊपरी भाग में पांचवां मुख है.
इसके बाद हम सभी बौद्धनाथ स्तूप गये. यह बौद्ध धर्म को मानने वालों का महत्वपूर्ण केंद्र है. काठमांडु के पूर्व में बना बौद्धनाथ स्तूप दुनिया के सबसे बड़े स्तूपों में शामिल है.
बिखरा है अनुपम सौंदर्य
नेपाल यात्रा का दूसरा दिन नागरकोट के नाम रहा. यह काठमांडू का हिल स्टेशन है जो कि काठमांडू से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर है. लगभग सात हजार फीट की ऊंचाई पर यह हिल स्टेशन स्थित है. यहां से हिमालय की चोटियों के साथ ही माउंट एवरेस्ट का भी सूर्योदय देखा जा सकता है.
लौटते समय हम ललितपुर और पाटन देखते हुए लौटे. यह जगह अपनी समृद्ध वास्तुकला, शानदार लकड़ी की नक्काशी के लिए जानी जाती है. यात्रा के तीसरे दिन थनकोट से कुछ दूरी पर स्थित चंद्रगिरी टॉप पर केबल कार से हम गये. ढ़ाई किलोमीटर लंबी इस केबल कार से 15 मिनट के सफर में आप ऊपर चोटी पर पहुंच वहां से हिमालय पर्वत श्रृंखला को देख सकते हैं.