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#Jharkhand@18years: पर्यावरण को बचाने के लिए सराहनीय काम कर रही हैं जमुना टुडू, पढ़ें इनकी कहानी

झारखंड स्थापना के 18 साल पूरे हो गये. हम युवा झारखंड की कुछ कहानियां लेकर आपके सामने आये हैं. इनके सफर से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कैसे झारखंड के युवा अलग-अलग क्षेत्रों में अपने लिए स्थान बना रहे हैं. झारखंड स्थापना दिवस पर शुरू हुई सीरीज की यह चौथी कड़ी है. इस कड़ी […]

झारखंड स्थापना के 18 साल पूरे हो गये. हम युवा झारखंड की कुछ कहानियां लेकर आपके सामने आये हैं. इनके सफर से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कैसे झारखंड के युवा अलग-अलग क्षेत्रों में अपने लिए स्थान बना रहे हैं. झारखंड स्थापना दिवस पर शुरू हुई सीरीज की यह चौथी कड़ी है. इस कड़ी में आप जमुना टुडू के बारे में जानेंगे जो पर्यावरण को बचाने के लिए अभियान चला रही हैं. झारखंड राज्‍य के पूर्वी सिंहभूम की रहनेवाली जमुना टुडू जंगलों को बचाने में महत्‍वपूर्ण योगदान दे रही हैं. उनसे बातचीत की हमारी साथी बुधमनी ने…

‘हौसले जिनके अकेले चलने के होते है…एक दिन उनके साथ ही काफिले होते है…’ यह पंक्तियां पूरी तरह सटीक बैठती है ‘लेडी टार्जन’ से नाम से मशहूर जमुना टुडू पर. पूर्वी सिंहभूम के मुटुरखंब गांव की रहनेवाली जुमना टुडू आज पर्यावरण को बचाने के लिए सराहनीय काम कर रही हैं. ओडिशा में जन्मीं 38 वर्षीया जमुना टुडू ने जंगल बचाने की मुहीम चलाई है. उन्होंने कभी अपने और आसपास के गांवों में जंगल बचाने का जो बीड़ा उठाया था आज भी वे मजबूती से इस राह पर खड़ी हैं. शुरुआत में इस महिम उनके साथ सिर्फ 5-6 महिलायें थीं और अब उनके साथ पूरा गांव है. जंगल बचाने की इस मुहिम में उनकी राहों में कई मुश्किलें आईं, उनपर हमले तक हुए, लेकिन उनके हौसले पस्त नहीं हुए. जमुना और उनकी टीम अपनी जान पर खेल कर पेडों की रक्षा करती हैं. .

वीरान पहाड़

साल 1998 में जब जमुना शादी कर ओडिशा से जब पूर्वी सिंहभूम के मुटुरखंब गांव में आईं तो उन्होंने अपने घर से 200 मीटर दूर एक वीरान पहाड़ देखा. जहां ‘साल’ के पौधे तो थे लेकिन पेड़ों को काटने के लिए रोज गांव के लोग वहां जाते थे. जमुना बताती हैं कि एक हफते तक तो वो भी लकडि़यां लेने गई. लेकिन फिर उन्‍हें एहसास हुआ कि उनके पास जंगल के रूप मे एक बहूमूल्य संपदा है और इसे नष्ट होने से बचाना होगा. उन्होंने देखा कि पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही है और कैसे सैकड़ों टन लकडियां वन माफिया चुराकर ले जा रहे हैं. वन विभाग को भी इसकी सूचना नहीं थी. जमुना ने ठान लिया कि वे इस तरह से जंगल को नष्ट नहीं होने देगी.

मुहिम की शुरूआत

जमुना एक गरीब गांव में रहती थीं जहां के लोग बेहद गरीब और सहमे हुए थे. जमुना ने शुरूआत में कुछ महिलाओं के साथ मिलकर जंगल में पेड़ काटने आये लोगों को समझाना शुरू किया. उन्हें जंगल बचाने के महत्व के बारे में बताना शुरू किया. जमुना बताती हैं, मैंने लोगों को कहा हम सबको मिलकर जंगलों को काटने से रोकना होगा. हमें इसकी रक्षा करनी होगी. मैंने कहा कि इससे हरियाली तो आयेगी ही, हमें साफ-सुथरी हवा मिलेगी और जलावन की लकडी में भी कोई कमी नहीं आयेगी. हालांकि शुरूआत में पुरूष पीछे हट गये लेकिन महिलायें सामने आई. अब ऐसा मंजर है कि जंगल बचाने की मुहिम में पुरूष भी शामिल है.

वन सुरक्षा समिति का निर्माण

शुरूआत में कुछ ही महिलाओं ने जंगलों में जाकर पेटोलिंग शरू की थी. धीरे-धीरे इनकी संख्या बढकर 60 हो गई. इसके बाद उन्होंने एक वन सुरक्षा समिति का गठन किया. ये समिति कुछ-कुछ हिस्सों में बंटकर पेट्रोलिंग करने लगी. यह समिति ने सिर्फ वनों को कटने से बचाती, बल्कि नये पौधे लगाकर जंगलों को सघन बनने में भी योगदान देती. गावं के लोग अब सूखी लकडियों और पत्‍तों को इकट्ठा कर उसे ईंधन के रूप में इस्तेमाल करती. आज जमुना देवी के प्रयासों से मुटुरखंब का बंजर पहाड़ ‘साल’ के हरे-भरे पेड़ों से एक अनूठी कहानी कह रहा है.

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पिता से मिली प्रेरणा

जमुना टुडू बताती हैं- बचपन से ही पिताजी ने प्रकृति से प्रेम करना सिखाया था. हम बचपन से ही घर के आसपास पेड़-पौधे लगाया करते थे. पिताजी हमेशा कहा करते थे कि पेड़-पौधे रहेंगे तो हमारी धरती माता बची रहेंगी. हमें अपनी प्रकृति से प्‍यार करना चाहिए और पेड़-पौधों को बचा कर रखना है, उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाना है.

दांव पर लगा दी जिंदगी

अवैध कटाई करनेवालों से मुकाबले में कई बार जमुना देवी और उनके सहयागियों पर हमले भी हुए. उनपर हमला हुआ था क्योंकि उन्‍होंने अवैध रूप से लकडियां बाहर बेचने जा रहे लोगों का विरोध किया था. इस हमले में कई जुमना के साथ-साथ कई महिलायें घायल हुईं. जमुना को बचाने के क्रम में उनके पति को भी गंभीर चोटें आईं थीं. जमुना बताती हैं कि वे लकडिया हमारे जंगल की नहीं थी लेकिन हमारे स्टेशन से अवैध रूप से ले जाई जा रही थी. जिसका हमने पुरजोर विरोध किया था.

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बांधती है पेडों को राखियां

जमुना टुडू बताती है, हम हर साल रक्षाबंधन के मौके पर सभी वन रक्षा समितियों के सदस्यों को बुलाते हैं. पेड़ों को राखी बांधते हैं. इस दिन हमलोग कसम खाते हैं कि पेड़ हमारे भाई हैं. हम इसकी सुरक्षा करेंगे. यह दिन हम सभी के लिए बहुत खास होता है. हम इस दिन को बडे धूमधाम से मनाते हैं.

राष्‍ट्रपति ने किया सम्‍मानित

साल 2013 में जमुना टुडू को ‘फिलिप्स ब्रेवरी अवॉर्ड’ से सम्मानित किया गया. साल 2014 में उनको स्त्री शक्ति अवॉर्ड से नवाजा गया था. साल 2016 में उनको राष्ट्रपति द्वारा भारत की प्रथम 100 महिलाओं में चुना गया और राष्ट्रपति भवन में उन्‍हें सम्मानित किया गया. इसी साल उन्‍हें जमुना वन संरक्षण के लिए वीमेन ट्रांसफार्मिंग इंडिया अवार्ड 2017 से नवाजा गया.

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