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याद्दाश्त कमजोर हो रही है तो यह बुढ़ापा का ही असर नहीं…ये भी हो सकती है वजह
फाल्स लेबर और डिलीवरी के बीच का समय थोड़ा भारी हो सकता है और इस दौरान आपकी भूलने की बीमारी भी. कुछ दिन पहले मैंने सुबह की टेबलेट दोपहर में दोबारा लगभग खा ही ली थी. मुंह में रखते ही टेबलेट का स्वाद जाना-पहचाना लगा, तो तुरंत निकाल फेंकी. दो महीनों से मैं सुबह-दोपहर-शाम को […]
फाल्स लेबर और डिलीवरी के बीच का समय थोड़ा भारी हो सकता है और इस दौरान आपकी भूलने की बीमारी भी. कुछ दिन पहले मैंने सुबह की टेबलेट दोपहर में दोबारा लगभग खा ही ली थी. मुंह में रखते ही टेबलेट का स्वाद जाना-पहचाना लगा, तो तुरंत निकाल फेंकी.
दो महीनों से मैं सुबह-दोपहर-शाम को विटामिन्स टेबलेट ले रही हूं, तो इनका नाम व खाने का समय याद हो चुका था. लेकिन उस दिन जब यह गड़बड़ हुई, मैंने सारी टेबलेट्स चेक कीं और तब देखा कि कई बार दवाई मिस की है. मैं दवा खाने के आधा घंटे बाद भूल जाती हूं कि दवाई खायी या नहीं.
तब मैंने एक चार्ट बनाया. अब खाने के बाद चार्ट में टिक-मार्क करती हूं. यह सिर्फ एक चीज नहीं. कमरे में घुसी हूं, लेकिन क्यों याद नहीं. चाय में कुछ ही मिनट पहले चीनी डाली है या नहीं, याद नहीं. गैस पर दूध रखकर भूल जाती हूं.
सास ने कोई काम दिया, लेकिन मुझे याद ही नहीं रहा. अचानक ऐसा क्यों हो रहा है? पहले तो मैं कभी कुछ नहीं भूलती थी. मेरी याद्दाश्त कमजोर तो नहीं थी. फिर बुढ़ापा लगने में तो दो दशक से ज्यादा समय है. तो फिर?
मैं शायद अपनी इस समस्या को अनदेखा ही कर देती अगर कुछ दिन पहले मेरी प्रेग्नेंसी एप में “प्रेग्नेंसी ब्रेन” के बारे में न आया होता. तब मुझे समझ आया कि जिसे मैं अचानक हुआ बदलाव और बीमारी समझ रही थी, असल में वह भी प्रेग्नेंसी के दूसरे सिम्पटम्स की तरह एक है, जिसे मैं और मेरी तरह कई दूसरी लडकियां अनदेखा कर देती हैं.
दिन-रात उससे जूझती हैं, इर्रीटेट होती हैं. लेकिन यह प्रेग्नेंसी की वजह से हो रहा है, इसे मानना और दूसरों को यह समझा पाना कि आप भूलने का बहाना नहीं कर रहे हो, वाक़ई आपके साथ ऐसा हो रहा है, थोड़ा मुश्किल है.
कभी-कभी लगता है, जैसे आपके अंदर पनप रही आपकी नन्ही-सी जान ने कहीं आपका दिमाग तो नहीं चुरा लिया? या कहीं आपके दिमाग में कोहरा-सा जम गया है, जिससे सब कुछ धुंधला गया है. असल में यह है क्या?
कुछ शोधकर्ताओं की मानें तो प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं के दिमाग में “ग्रे-मेटर” की भारी कमी आ जाती है. महिला का दिमाग कुछ स्पेसिफिक जगहों से सिकुड़ता है और दिमाग में ये बदलाव खासकर उन जगहों पर होते हैं, जो मनुष्य की समझने की शक्ति, दूसरों के रवैये, एक्शन और फीलिंग्स को मैनेज करते हैं. तो समझिए कि उस दौरान कुछ ऐसी गड़बड़ी आ जाती है कि न वह बेचारी ख़ुद को समझ सकती है, न किसी और को. ऐसे में भगवान ही मालिक हैं.
शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि इस गड़बड़ी को ठीक होने में डिलीवरी के बाद भी दो साल का समय लगता है.स्पेन के कुछ न्यूरो-वैज्ञानिकों ने तो प्रेग्नेंसी और डिलीवरी के बाद, दोनों समय के दिमाग का फोटो खींचकर देखा, यह जानने के लिए कि बदलाव कब, कैसे और कहां होते हैं. उन्हें दो बदलाव दिखे, पहला- गर्भवती के दिमाग में हार्मोन्स का तूफ़ान आया हुआ था. एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन, टेस्टोस्टेरोन और दूसरा, सेक्स हार्मोन्स ने दिमाग में जो रोलर-कोस्टर चलाया हुआ था. उससे महिला के दिमाग का ढांचा ही बदल गया था. डॉक्टर्स समस्या को “प्रेग्नेंसी ब्रेन” या Momnesia भी कहते हैं, जो सबसे ज्यादा पहली और तीसरी तिमाही में सामने आती है.
सामान्य भाषा में समझें तो प्रेग्नेंसी के दौरान महिला का शरीर किसी भी दूसरे समय की अपेक्षा सबसे ज्यादा मेहनत कर रहा होता है. तीसरी तिमाही आते-आते सोने में भी समस्या होने लगती है. रात को बार-बार बाथरूम के लिए उठने की वजह से नींद भी ठीक से पूरी नहीं होती.
तो बताओ भला ऐसे में कैसे किसी का दिमाग काम करेगा. अब ऐसे में अगर उसने दूध जला भी दिया या दो-चार काम भूल भी गयी, तो कोई बात नहीं. आप समझदार हैं. समझ जाइए और उसे सहयोग कीजिए. “कोई बात नहीं, हो जाता है” कहना सीखिए, ताकि उसकी परेशानियों में कुछ कमी आये और वह खुद को भूलने की बीमारी का शिकार न माने.
प्रेग्नेंसी में समस्या कोई भी हो, सबसे पहला और बड़ा हल है, परिवार का पूरा और खुले-दिल से सहयोग. इस दौरान आपकी बहू, बीवी, भाभी, बेटी का बदलता बर्ताव हो सकता है कि आपकी अपेक्षाओं से बहुत अलग हो. लेकिन उसे समय दें, उसे समझें और समझाएं.आपके सहयोग से न सिर्फ उसकी प्रेग्नेंसी आसान बनेगी, बल्कि आपके घर में आनेवाला मेहमान भी हंसता-खिलखिलाता पैदा होगा.
जो प्रेग्नेंट हैं, उन्हें बताना चाहूंगी कि अगर आपको भी भूलने की बीमारी लग गयी है, तो “चिंता की कौनहू बात ना है”. यह बहुत ही सामान्य है और ज़्यादातर महिलाओं को हो जाती है. कुछ आसान से उपाय हैं, जो बहुत हद तक मदद कर सकते हैं. सबसे पहले तो लंबी-गहरी सांस लें और शांति से सोचें कि क्या भूलें हैं. अगर तब भी याद नहीं आ रहा, तो परेशान न हों. जब उसे आना होगा तब अपने आप याद आ जायेगा.
दूसरा, अपनी नींद के साथ खिलवाड़ न करें. नींद बहुत ज़रूरी है, तभी दिमाग ठीक से काम करेगा. जरूरी चीज़ों जैसे, डॉक्टर के अपॉइंटमेंट, दवाई आदि के लिए अलार्म लगाएं या कमरे में चार्ट लगा लें. उतनी ही चीज़ों को याद रखने की कोशिश करें, जितनी ज़रूरी हों. सब कुछ याद करने के चक्कर में सब कुछ भूल जाते हैं. ज़रूरी है खुलकर हसें, ख़ुश रहें और हैवी खाने की जगह हल्का खाएं. थोड़ा-थोड़ा खाएं, खाने में लिक्विड की मात्रा ज्यादा रखें.
क्रमश:
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