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ऊर्जा को बांधकर आंतरिक अंगों को शक्ति प्रदान करता है महाबंध

धर्मेंद्र सिंह एमए योग मनोविज्ञान बिहार योग विद्यालय, मुंगेर बंध का अर्थ है- रोकना, कसना या बांधना. योग में बंध का तात्पर्य शरीर के कुछ हिस्सों में ऊर्जा प्रवाह को रोककर उसे अन्य अंगों में प्रवाहित या संचित करना है. मूलत: बंध अंत: शारीरिक प्रक्रिया है. इसके अभ्यास से शरीर की अनेक क्रियाएं साधक के […]

धर्मेंद्र सिंह
एमए योग मनोविज्ञान
बिहार योग विद्यालय, मुंगेर
बंध का अर्थ है- रोकना, कसना या बांधना. योग में बंध का तात्पर्य शरीर के कुछ हिस्सों में ऊर्जा प्रवाह को रोककर उसे अन्य अंगों में प्रवाहित या संचित करना है. मूलत: बंध अंत: शारीरिक प्रक्रिया है. इसके अभ्यास से शरीर की अनेक क्रियाएं साधक के चेतन नियंत्रण में रहती हैं. महाबंध में तीनों बंध जालंधर, उडियान एवं मूलबंध को एक साथ लगाया जाता है.
अभ्यास की विधि
सर्वप्रथम ध्यान के किसी भी आसन- सिद्धासन/सिद्धयोनि आसन या पद्मासन में बैठ जाएं. मेरुदंड, गर्दन और सिर एक सीध में हों. आंखों को बंद कर लें तथा पूरे शरीर के प्रति सजग रहते हुए स्वयं को शांत और तनावमुक्त बनाने का प्रयास करें. अब दोनों नासिका से धीरे-धीरे लंबी और गहरी श्वास अंदर लेते हुए फेफड़ों में भर लें. मुंह से जोर लगा कर श्वास को बाहर निकालें और अब श्वास को बाहर ही रोक कर रखें.
क्रमश: ठुड्डी को छाती की ओर ले जाते हुए पहले जालंधर बंध लगाएं, तत्पश्चात पेट को अंदर की तरफ ले जाते हुए सिर ऊपर ले जाते हुए ‘उड्डियान’ बंध लगाएं. अंत में अपनी योनि प्रवेश को धीरे-धीरे संकुचित करते हुए मूलबंध लगाएं. बिना जोर लगाये जितनी देर तक इस अवस्था में हो सके, इन बंधों और श्वास को रोकेंगे. अब क्रमश: मूलबंध, उड्डियान और जालंधर बंधों को एक-एक कर इसी क्रम में शिथिल करते जायेंगे. जब सिर सीधा हो जाये तब धीरे-धीरे श्वास अंदर लें, यह एक चक्र हुआ.
इस दौरान आंखों को बंद ही रखेंगे, शरीर को शिथिल करें और श्वास-प्रश्वास के सामान्य हो जाने के पश्चात ही आप दूसरे चक्र की शुरुआत कर सकते हैं.
सजगता
अभ्यास के दौरान शारीरिक स्तर पर आपकी सजगता क्रमश: तीनों बंधों को लगा लेने के बाद अपनी चेतना को मूलाधार, उदर और गले में क्रम से घुमाएं. प्रत्येक क्षेत्र के प्रति कुछ क्षणों तक सजग रहें, फिर चेतना को अगले क्षेत्र की ओर ले जाएं. आध्यात्मिक स्तर पर सजगता तीनों बंधों को लगाने के बाद चेतना को क्रम से मूलाधार मणिपुर और विशुद्धि चक्रों में घुमाएं. अपने प्रत्येक चक्र के प्रति कुछ क्षणों तक सजग रहें, उसके बाद अगले चक्र में जाएं.
अवधि : नये अभ्यासी आरंभ में 2 से 3 चक्र करें, किंतु दक्षता हो जाने के बाद एक-एक चक्र बढ़ाते हुए 9 से 10 चक्र तक अभ्यास को किया जा सकता है.
सावधानियां : आरंभ में कुशल योग प्रशिक्षक का मार्गदर्शन लें तथा पूरा ध्यान रखें कि जब तक तीनों बंधों में दक्षता प्राप्त न हो जाये, महाबंध न लगाएं.
क्या हैं सीमाएं : हाइ या लो बीपी, हृदय रोग, दौरा आना, सर्वाइकल, स्पॉन्डिलाइटिस, हर्निया, आमाशय या आंतों के अल्सर से पीड़ित या आंत्रिक रोगवाले व्यक्तियों यह अभ्यास न करें. गर्भवती को भी इसे नहीं करना चाहिए.
महाबंध के लाभ
आमतौर पर महाबंध से तीनों बंधों के लाभ प्राप्त होते हैं. इससे पीयुष ग्रंथि का हार्मोन स्त्राव प्रभावित होता है और संपूर्ण अंत:स्त्रावी तंत्र की कार्यप्रणाली नियमित होती है. शरीर के क्षय, ह्रास और बुढ़ापे की प्रक्रियाएं थम जाती हैं और शरीर का प्रत्येक कोष पुनर्जीवन प्राप्त करता है.
यह चिंता को दूर कर क्रोध को शांत करता है और ध्यान के पूर्व मन को अंतमुर्खी बनाता है. यदि अभ्यास में पूर्णता प्राप्त हो जाये, तो यह मुख्य चक्रों में प्राणों को पूरी तरह जाग्रत कर सकता है. यह अग्नि-मंडल में प्राण, अपान और समान का विलय कराता है, जो सभी प्राणायामों का अंतिम बिंदु है.

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