11.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

मां ने सब्जी बेच बेटी को बनाया बॉक्सर

उपलब्धि : अभाव से लड़ कर जमुना ने बनायी पहचान असम की जमुना बोडो भारत की उभरती बॉक्सर है़ जमुना का सपना टोक्यो ओलंपिक में पदक जीतने का है़ इसके लिए वह अभी से मेहनत कर रही हैं. खास बात यह है कि जमुना किसी महानगर या सुविधा संपन्न परिवार से नहीं आती हैं, बल्कि […]

उपलब्धि : अभाव से लड़ कर जमुना ने बनायी पहचान
असम की जमुना बोडो भारत की उभरती बॉक्सर है़ जमुना का सपना टोक्यो ओलंपिक में पदक जीतने का है़ इसके लिए वह अभी से मेहनत कर रही हैं. खास बात यह है कि जमुना किसी महानगर या सुविधा संपन्न परिवार से नहीं आती हैं, बल्कि अभावों के बीच संघर्ष करके इन्होंने अपना मुकाम बनाया है़
सुविधाओं की कमी, संसाधनों का अभाव और मुश्किल परिस्थितियों से लड़कर जमुना बोडो आज अंतरराष्ट्रीय बॉक्सिंग में शामिल हो गयी है. जामुनी को इस मुकाम तक पहुंचाने में उसकी मां के प्रोत्साहन और सहयोग का हाथ है.
असम के शोणितपुर जिले के बेलसिरि गांव में रेलवे स्टेशन के बाहर एक कई बोडो आदिवासी महिलाएं सब्जियां बेचतीं हैं. इन्हीं सब्जी बेचने वालों में एक निर्मली बोडो भी है. निर्माली की दो बेटियां और एक बेटा है और पति की मौत हो चुकी है. निर्माली बोडो नाम की इस महिला की कहानी इसलिए खास है, क्योंकि निर्माली की छोटी बेटी 19 साल की जमुना बोडो आज एक अंतरराष्ट्रीय बॉक्सर है.
गांव में बिना किसी खास सुविधा या संसाधन के जमुना ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई मेडल जीती हैं. बीबीसी डॉट कॉम में प्रकाशित स्टोरी के अनुसार, जमुना ने शुरुआत तो गांव में वुशु खेलने से की थी लेकिन बाद में उन्होंने बॉक्सिंग की ट्रेनिंग लेना शुरू किया.
जामुनी ने बताया कि मैं महज 10 साल की थी जब मेरे पिता का देहांत हुआ था. तब से मेरी मां ने हम तीनों भाई-बहनों को पाला हैं. गांव में कुछ बड़े लड़के वुशु खेला करते थे. पहले मैं खेल देखने के लिए जाती थी लेकिन बाद में मेरा भी मन हुआ कि मैं इस फाइट को सीखूं.
टोक्यो ओलंपिक में मेडल जीतना है सपना
बेटी के इंटरनेशनल बॉक्सर बनने के बाद भी निर्मली अब भी सब्ज़ी बेचती हैं. उनके घर के हालात में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है. जमुना कहती हैं कि मुझे अपनी मां पर गर्व है. कई बार मुझे दुख होता है कि मैं अब तक अपनी मां के लिए कुछ नहीं कर पायी इस बात का गर्व है कि पिता की मौत के बाद मां ने ही मुझे इतना आगे पहुंचाया है. बड़ी दीदी की शादी भी की. मां को ऐसी हालत में देखती हूं तो बॉक्सिंग में और ज्यादा मेहनत करने का मन करता है. मेरी कॉम को जमुना अपना आदर्श मानती हैं. ओलंपिक खेलों में क्वॉलिफाई करना मेरा सपना है. 2020 में टोक्यो में होने वाले ओलंपिक खेलों में मेडल जीत कर भारत का नाम रोशन करना चाहती हैं.
जमुना का स्पोर्ट्स करियर
जमुना ने 2010 में तमिलनाडु के इरोड में आयोजित पहले सब जूनियर महिला राष्ट्रीय बॉक्सिंग चैंपियनशिप में 52 किलो के वर्ग में पहली बार गोल्ड मेडल जीता था. उसके बाद कोयंबत्तूर में 2011 में आयोजित दूसरे सब जूनियर महिला राष्ट्रीय बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल के साथ चैंपियन बनी.
उन्होंने 2013 में सर्बिया में आयोजित सेकंड नेशंस कप इंटरनेशनल सब-जूनियर गर्ल्स बॉक्सिंग टूर्नामेंट में गोल्ड जीतकर अपनी अलग पहचान बनायी. इसके बाद जमुना 2014 में रूस में भी हुई एक प्रतियोगिता में गोल्ड के साथ चैंपियन बनीं. साल 2015 में ताइपे में हुई यूथ वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में भारत की तरफ से खेलते हुए 57 किलोग्राम वर्ग में जमुना ने कांस्य पदक जीता था.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें