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हजार में नौ बच्चों को पैदाइशी दिल की बीमारी, अगर नवजात में असामान्य लक्षण दिखे तो करें यह काम…

द पीडियाट्रिक कार्डियक सोसाइटी ऑफ इंडिया ने अपनी 20वीं वार्षिक सम्मेलन में कहा कि पूरे विश्व में होने वाले वैश्विक सीएचडी के मामलों में से 46 प्रतिशत भारत में होते हैं. हमारे देश में हर 10 में से 1 बच्चा सीएचडी से पीड़ित होता है. सीएचडी में दिल में छेद के मामले सबसे अधिक सामने आते हैं.

कंजेनिटल हार्ट डिफेक्ट (सीएचडी), हृदय से संबंधित जन्मजात विकृति है. यह बच्चे के हृदय की संरचना को प्रभावित करता है. इसका उपचार संभव है, फिर भी हर वर्ष हजारों बच्चे इस बीमारी से मर जाते हैं. सीएचडी के प्रति लोगों का ध्यान आकर्षित करने और जागरूकता फैलाने के लिए हर वर्ष 14 फरवरी को वर्ल्ड कंजेनिटल हार्ट डिफेक्ट अवेयरनेस डे मनाया जाता है.

संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में हर दिन लगभग 3 लाख 85 हजार बच्चे जन्म लेते हैं, लेकिन सभी सामान्य और स्वस्थ्य नहीं होते. कुल जन्म लेने वाले बच्चों में से लगभग एक प्रतिशत को कंजेनिटल हार्ट डिफेक्ट (जन्मजात हृदय दोष) होता है. सीएचडी भारत में सबसे सामान्य जन्मजात विकृति है. एक अनुमान के अनुसार, अपने देश में प्रति एक हजार में से 9 बच्चे इस बीमारी के साथ जन्म लेते हैं.

क्या है कंजेनिटल हार्ट डिफेक्ट

यह हृदय से संबंधित जन्मजात विकृति है, जिससे हृदय की सामान्यरूप से कार्य करने की क्षमता में गड़बड़ी आ जाती है. सीएचडी जन्म के समय उपस्थित होता है और बच्चे के हृदय की संरचना को प्रभावित करता है. इसके कारण रक्त का प्रवाह प्रभावित हो सकता है- रक्त हृदय से कैसे बहता है और वहां से पूरे शरीर में. सीएचडी की समस्या मामूली (जैसे हृदय में छोटा-सा छेद) से लेकर गंभीर (जैसे हृदय के किसी भाग का न होना या उसका पूरी तरह से विकसित न होना) हो सकती है. हर 4 में से 1 बच्चे की हृदय की विकृति बहुत गंभीर होती है, जिसे क्रिटिकल कंजेनिटल हार्ट डिफेक्ट कहते हैं. जिन बच्चों को क्रिटिकल कंजेनिटल हार्ट डिफेक्ट होता है. उन्हें जीवन के पहले वर्ष में ही सर्जरी या दूसरी प्रक्रियाओं की जरूरत पड़ती है. सीएचडी 150 प्रकार की होती हैं. इसमें दिल में छेद होना सबसे सामान्य है.

क्या हैं इसके कारण

सीएचडी के कारणों का तो स्पष्ट रूप से पता नहीं है. कुछ बच्चों में इस विकृति का कारण जींस या क्रोमोसोम में परिवर्तन होता है. पर्यावरण व गर्भावस्था के दौरान मां का खान-पान, उसका स्वास्थ्य या वह इस दौरान कौन-सी दवाइयां ले रही हैं आदि कारण हो सकते हैं. गर्भवती महिला के मोटे होने या टाइप-1 या टाइप-2 डायबिटीज से ग्रस्त होने पर भी बच्चे में सीएचडी का खतरा बढ़ जाता है. कुछ निश्चित दवाइयों का सेवन और धूम्रपान भी इसका कारण बन सकते हैं.

न करें इन लक्षणों की अनदेखी

सीएचडी एक जन्मजात विकृति है, जो हृदय की संरचना और कार्यप्रणाली को प्रभावित करता है. यह एक बहुत सामान्य स्थिति है दुनिया में हर पंद्रह मिनट में एक बच्चा सीएचडी के साथ जन्म लेता है. इसके लक्षण और संकेत सीएचडी के प्रकार और विशेष विकृति की गंभीरता पर निर्भर करते हैं. कुछ विकृतियों में कोई लक्षण और संकेत दिखायी नहीं देते हैं. दूसरे के कारण बच्चों में कई लक्षण दिखायी दे सकते हैं.

नवजात शिशुओं में

  • चिड़चिड़ापन

  • लगातार रोते रहना

  • सांसें तेज चलना

  • अत्यधिक पसीना आना

  • फीड कराने में परेशानी होना

  • बच्चे का वजन सामान्य से कम होना

  • कुछ बच्चों में त्वचा का रंग बदल जाना जैसे नीली पड़ जाना (सायनोसिस)

  • छाती में पानी जमा होना

  • पैरों में सूजन

छोटे बच्चों में

  • विकास प्रभावित होना

  • कमजोरी महसूस होना

  • थकान

  • सामान्य गतिविधियों में भी सांस फूलना

  • कुछ बच्चों में छाती में दर्द, चक्कर आना या बेहोशी छा जाना

वयस्कों में

  • वयस्क होने तक लक्षण नहीं दिखाई देते हैं. कभी-कभी उपचार के वर्षों बाद भी लक्षण वापस आ सकते हैं.

  • वयस्कों में दिखायी देने वाले प्रमुख लक्षण

  • हृदय की धड़कनों का असामान्य हो जाना

  • नीली त्वचा, होंठ और हाथों के नाखून (सायनोसिस)

  • सांस फूलना

  • थोड़ा-सा भी काम करने पर अत्यधिक थकान महसूस होना

  • शरीर के अंगों या उतकों का सूज जाना (इडेमा)

कैसे होती है डायग्नोसिस

सीएचडी का डायग्नोसिस अक्सर नवजात शिशुओं में जन्म के समय या जन्म के पहले ही हो सकता है. इस स्थिति का पता प्री-नैटल अल्ट्रा साउंड स्क्रीनिंग में चलता है. बच्चे की हृदय की स्थिति पता चलने पर डॉक्टरों के लिए बच्चे के हृदय के विकास को मॉनिटर करना और उसके लिए उचित प्रबंधन और उपचार योजना बनाना संभव होता है. जिन बच्चों में सीएचडी होता है उनमें कई लक्षण दिखाई देते हैं, जो इसपर निर्भर करते हैं कि समस्या की गंभीरता कितनी है. मेडिकल टेक्नोलॉजी में विकास से बच्चे के जन्म के पहले ही कुछ हृदय संबंधी विकृतियों का पता लगाना संभव है.

16-24 सप्ताह के बीच अल्ट्रासाउंड

सीएचडी की डायग्नोसिस गर्भावस्था के दौरान (16-24 सप्ताह के बीच) विशेष प्रकार के अल्ट्रासाउंड द्वारा किया जाता है, जिसे फीटल इकोकार्डियोग्राम कहते हैं. जो विकसित हो रहे बच्चे के हृदय की अल्ट्रा साउंड तस्वीरें निर्मित करते हैं. हालांकि, कुछ सीएचडी जन्म होने तक या बचपन या किशोरवस्था तक पता नहीं लग पाते हैं. अगर डॉक्टर को संदेह होता है कि बच्चे को सीएचडी हो सकता है, तो डायग्नोसिस को सुनिश्चित करने के लिए बच्चे की कई जांचें की जाती हैं, जैसे- इकोकार्डियोग्राम और छाती का एक्स-रे. इन जांचों के द्वारा हृदय की संरचना और कार्यों के बारे में पता लगाने में सहायता मिलती है और किसी असमान्यता को पहचानना संभव होता है. कुछ मामलों में कुछ अतिरिक्ट टेस्ट जैसे सीटी स्कैन, एमआरआइ स्कैन और कार्डिएक कैथेटेराइजेशन की जरूरत पड़ती है.

इस स्थिति में डॉक्टर से करें संपर्क

अगर बच्चे में ऐसे चिंताजनक लक्षण दिखायी देते हैं, जैसे- छाती में दर्द या सांस फूलना तो तुरंत इमरजेंसी मेडिकल सेवा लें. अगर बचपन में उपचार कराने के बाद भी कोई दिक्कत हो, तो डॉक्टर को दिखाने में देरी न करें.

क्या हैं इसके उपचार

उपचार इसपर निर्भर करता है कि विकृति किस प्रकार की और कितनी गंभीर है. प्रभावित नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों में से कुछ को हृदय या रक्त नलिकाओं को ठीक करने के लिए एक या उससे अधिक सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है. कुछ को बिना सर्जरी के द्वारा ही किसी नान-सर्जिकल प्रक्रिया से ठीक किया जा सकता है, जिसे कार्डिएक कैथेटेराइजेशन कहते हैं. एक लंबी नली जिसे कैथेटर कहते हैं, उसे रक्त नलिकाओं से हृदय में डाला जाता है, जहां डॉक्टर उनका माप ले सकता है, जांच करता है या समस्या को ठीक करता है. कभी-कभी हृदय की विकृति को पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता है, लेकिन इन प्रक्रियाओं से रक्त का प्रवाह और हृदय की कार्यप्रणाली बेहतर होती है. कई लोगों में उपचार के बाद भी इसे पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता है.

क्या हैं जटिलताएं

सीएचडी के कारण कई तरह की स्वास्थ्य जटिलताएं हो सकती हैं. इनमें सम्मिलित हैं-

  • धड़कनें असंतुलित हो जाना : हृदय की धड़कनें बहुत तेज या बहुत धीमी या अनियमित हो जाना. अगर उपचार न कराया जाये तो इसके गंभीर मामलों में या तो स्ट्रोक आ जाता है या सडन कार्डिएक डेथ हो सकती है. पहले हुई सर्जरियों के कारण उतकों का क्षतिग्रस्त होना भी इस जटिलता का कारण बन सकता है.

  • हृदय का संक्रमण : बैक्टीरिया और दूसरे रोगाणु रक्त के प्रवाह में प्रवेश कर सकते हैं और हृदय की अंदरूनी भित्ती (एंडोकार्डियम) तक पहुंच सकते हैं. अगर इस संक्रमण का उपचार न कराया जाये तो हृदय के वॉल्व खराब हो सकते हैं या स्ट्रोक आ सकता है.

  • स्ट्रोक : सीएचडी के कारण रक्त के धक्के हृदय से निकल कर मस्तिष्क तक पहुंच सकते हैं. इससे रक्त का प्रवाह ब्लॉक हो सकता है या रुक सकता है.

  • पल्मोनरी हाइपरटेंशन : कुछ हृदय विकृतियों के कारण फेफड़ों की ओर रक्त का प्रवाह अधिक होता है, जिससे दबाव बढ़ने लगता है. इससे हृदय की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं या फेल हो जाती हैं.

  • हार्ट फेल्योर : सीएचडी के कारण हृदय इतना रक्त पंप नहीं कर पाता, जितनी शरीर को जरूरत होती है और हार्ट फेल्योर हो सकता है.

अपने देश में क्या है स्थिति

द पीडियाट्रिक कार्डियक सोसाइटी ऑफ इंडिया ने अपनी 20वीं वार्षिक सम्मेलन में कहा कि पूरे विश्व में होने वाले वैश्विक सीएचडी के मामलों में से 46 प्रतिशत भारत में होते हैं. हमारे देश में हर 10 में से 1 बच्चा सीएचडी से पीड़ित होता है. सीएचडी में दिल में छेद के मामले सबसे अधिक सामने आते हैं. भारत में हर साल लगभग 2 लाख, 40 बच्चे नन्हे से दिल में छेद के साथ जन्म लेते हैं. इनमें से 20 प्रतिशत बच्चे एक साल की उम्र में मर जाते हैं. वर्तमान में 2 करोड़ से ज्यादा लोग दिल में छेद के साथ जी रहे हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी डेटा के अनुसार, हमारे देश में 95 प्रतिशत बच्चों में जन्म के साथ इसका पता नहीं चलता. केवल 2-3 प्रतिशत बच्चे का ही उपचार हो पाता है. वर्तमान में हमारे देश में लगभग ढाई करोड़ बच्चे, किशोर और वयस्क ऐसे हैं, जिनकी सीएचडी का उपचार नहीं हुआ है.

बातचीत : शमीम खान

डॉ. समीर गुप्ता, सीनियर इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट, मेट्रो ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स

डॉ. मनीषा चक्रवर्ती, पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजिस्ट, मैरिंगो हॉस्पिटल्स, फरीदाबाद

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