संगीत निर्देशक और गायक ए. आर.रहमान आज यानि कि 6 जनवरी को 47 वर्ष के हो गये हैं. उन्होंने अपनी ज़िंदगी में संगीत के माध्यम से काफी अच्छा मुकाम हासिल किया और अपने जादुई संगीत से दो अकेडमी अवार्ड्स, दो ग्रैमी अवार्ड्स हासिल किए है. ए.आर. रहमान आज के समय में भारतीय और अंतरराष्ट्रीय फिल्मों में काम करने वाले नंबर वन संगीतकार माने जाते हैं. बांबे, रंगीला, रोजा, ताल, दिल से, साथिया, युवा, लगान, स्वदेश, गुरु, रंग दे बसंती, स्लमडॉग मिलेनियर, जब तक है जान जैसी फिल्मों से रहमान ने अद्वितीय संगीत दिया.
तमिलनाडु में जन्में रहमान का रूझान बचपन के दिनों से ही संगीत की ओर था. उनके पिता आर. के. शेखर मलयालम फिल्मों के लिये संगीत दिया करते थे. रहमान भी अपने पिता की तरह ही संगीतकार बनना चाहते थे. संगीत के प्रति रहमान के बढ़ते रूझान को देख उनके पिता ने उन्हें इस राह पर चलने के लिये प्रेरित किया और उन्हें संगीत की शिक्षा देने लगे.
सिंथेसाइजर और हारमोनियम पर संगीत का रियाज करने वाले रहमान की अंगुलियां की बोर्ड पर ऎसा कमाल करती कि सुनने वाले मुग्ध रह जाते कि इतना छोटा बच्चा इतनी मधुर धुन कैसे बना सकता है. उस समय रहमान की उम्र महज छह वर्ष की थी. एक बार उनके घर में उनके पिता के एक मित्र आये और जब उन्होंने रहमान की बनायी धुन सुनी तो सहसा उन्हें विश्वास नहीं हुआ उनकी परीक्षा लेने के लिये उन्होंने हारमोनियम के ऊपर कपड़ा रख दिया और रहमान से धुन निकालने के लिये कहा. हारमोनियम पर रखे कपड़े के बावजूद रहमान की उंगलियां बोर्ड पर थिरक उठी और उस धुन को सुन वह चकित रह गये.
कुछ दिनों के बाद रहमान ने एक बैंड की नींव रखी जिसका नाम था नेमेसीस एवेन्यू.. वह इस बैंड में सिंथेनाइजर, पियाना, गिटार और हारमोनियम बजाते थे. अपने संगीत के शुरूआती दौर से ही रहमान को सिंथेनाइजर ज्यादा अच्छा लगता था. उनका मानना था कि वह एक ऎसा वाद्य यंत्र है जिसमें संगीत और तकनीक का बेजोड़ मेल देखने को मिलता है. रहमान अभी संगीत सीख हीं रहे थे तो उनके सर से पिता का साया उठ गया लेकिन रहमान ने हिम्मत नहीं हारी और संगीत का रियाज सीखना जारी रखा. वर्ष 1989 की बात है रहमान की छोटी बहन काफी बीमार पड़ गई और सभी चिकित्सकों ने यहां तक कह दिया कि उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं है.
रहमान ने अपनी छोटी बहन के जीवन की खातिर मंदिर, मस्जिदों में दुआयें मांगी जल्द हीं उनकी दुआ रंग लाई और उनकी बहन चमत्कारिक रूप से एकदम स्वस्थ हो गयी. इस चमत्कार को देख रहमान ने इस्लाम कबूल कर लिया और इसके बाद उनका नाम ए. एस. दिलीप कुमार से अल्लाह रखा रहमान यानि ए. आर. रहमान हो गया. इस बीच रहमान ने मास्टर धनराज से संगीत की शिक्षा हासिल की और दक्षिण फिल्मों के प्रसिद्ध संगीतकार इल्लैया राजा के समूह के लिये की-बोर्ड बजाना शुरू कर दिया उस समय रहमान की उम्र महज 11 वर्ष थी. इस दौरान रहमान ने कई बड़े और नामी संगीतकारों के साथ काम किया. इसके बाद रहमान ने लंदन के ट्रिनिटी कॉलेज ऑफ म्यूजिक में स्कॉलरशिप का मौका मिला जहां से उन्होंने वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक की स्नातक की डिग्री भी हासिल की.
इसके बाद रहमान निर्माता निर्देशको की पहली पसंद बन गये और वे रहमान को अपनी फिल्म में संगीत देने के लिये पेशकश करने लगे. लेकिन रहमान ने केवल उन्हीं फिल्मों के लिये संगीत दिया जिनके लिये उन्हें महसूस हुआ कि हां, इसमें कुछ बात है. वर्ष 1997 में भारतीय स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ पर उन्होंने स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के साथ मिलकर वंदे मातरम यानी मां तुझे सलाम का निर्माण किया. इसके बाद वर्ष 1999 में रहमान ने कॉरियोग्राफर शोभना, प्रभुदेवा और उनके डांसिंग समूह के साथ मिलकर माइकल जैक्सन के माइकल जैक्सन एंड फ्रेंड्स टूर के लिये म्यूनिख जर्मनी में कार्यक्रम पेश किया.