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प्रभात खबर के साथ खास मुलाकात : सोनू निगम ने कहा, मेरी तुलना किसी गायक से न हो

सोनू निगम. भारतीय गायकी में कई मिथ को तोड़नेवाला जाना-पहचाना शख्स. 18 वर्ष की उम्र में मुंबई के सिने जगत में दस्तक दी और अपनी प्रतिभा और संघर्ष से मुकाम पाया. चार वर्ष में अपने पिता अगम कुमार निगम के साथ मोहम्मद रफी के गानों पर स्टेज शो करने और मोहम्मद रफी की यादें नाम […]

सोनू निगम. भारतीय गायकी में कई मिथ को तोड़नेवाला जाना-पहचाना शख्स. 18 वर्ष की उम्र में मुंबई के सिने जगत में दस्तक दी और अपनी प्रतिभा और संघर्ष से मुकाम पाया. चार वर्ष में अपने पिता अगम कुमार निगम के साथ मोहम्मद रफी के गानों पर स्टेज शो करने और मोहम्मद रफी की यादें नाम से अलबम में गानेवाले सोनू ने अपने वजूद और मखमली आवाज से मोहम्मद रफी के क्लोन सिंगर की पहचान खारिज कर दी. आज इनकी अपनी पहचान है. ये बॉलीवुड के उन गिने-चुने लोगों में शुमार हैं, जिन्होंने गायकी के साथ-साथ अभिनय में भी अपनी छाप छोड़ी है. वर्ष 1980 में प्यारा दुश्मन नामक फिल्म से रुपहले परदे में आये और कामचोर, उस्तादी उस्ताद से, बेताब जैसी फिल्मों से बाल कलाकार के रूप में अपने अभिनय का दम-खम दिखाया, लेकिन रगों में गायकी का जुनून था. पिता की छत्रछाया मिली, गुरु गुलाम मुस्तफा खान ने हुनर सिखायी, जिसका सुखद परिणाम यह है कि आज सोनू के पास देश की दर्जनों भाषाओं में गाये सुपरहिट गीतों की लंबी फेहरिस्त है. रविवार को प्रभात खबर के बुलावे पर सोनू रांची में अपना जलवा बिखेरने पहुंचे. बेबाक, लीक से अलग हट कर हुनरमंद कलाकार, गायकी के बेताज बादशाह से प्रभात खबर के आनंद मोहन और विवेक चंद्र ने लंबी बातचीत की. सोनू ने भी खुल कर अपने विचार रखे. इस मुकाम तक पहुंचने के संघर्ष, पारिवारिक पृष्ठभूमि, हिंदी गायकी में आये बदलाव जैसी चीजों को बेहिचक साझा किया. पेश है बातचीत के अंश :

चार वर्ष की उम्र में स्टेज शो करनेवालाबच्चासोनू. आज सिंगिंग सुपर स्टार सोनू निगम. कैसे हासिल हुआ यह मुकाम?

बाहर से जिंदगी ग्लैमरस लगती है. जीवन का कोई क्षेत्र हो, मुकाम यूं ही हासिल नहीं होता. बस ड्राइवर हो, बिजनेस मैन हो, साहित्यकार हो या आपकी पत्रकारिता है, कुछ बनना है, तो जुनूनी होना पड़ता है. मैंने भी अपने कैरियर में जुनून पाला. पापा के साथ दिल्ली से मुंबई आया. 18 वर्ष की उम्र थी. पतला-दुबला लड़का. वजन 50 किलो भी नहीं होगा. पूरा सुखड़ू था मैं. उस जमाने में मेल सिंगर के लिए जगह बनाना बहुत मुश्किल था. काम मांगने जाता था, पर कोई देता नहीं था. मुझे याद है, एक बार मेरा गाना एक फिल्म के लिए लगभग फाइनल हो गया था, लेकिन बाद में उसे हटा दिया गया. मेरी आंखों से मोटे-मोटे आंसू निकल रहे थे. आज भी जुनून ही था कि मेरी तबीयत खराब थी. मैंने एंटीबायोटिक खाकर प्रोग्राम दिया. मेरे गले से आवाज निकलना मुश्किल था. लग रहा था कि खून निकल आयेगा, लेकिन आप यूं ही इन चीजों को नहीं छोड़ सकते. 50 हजार लोग शो देखने आये थे. मैं किस तरह से प्रोग्राम बीच में छोड़ सकता था. जीवन में बड़ा बनना है, तो जुनून पालना होगा. उसकी कीमत चुकानी होगी. जिम्मेवारी से नहीं भागा जा सकता.

उम्र के इस पड़ाव पर आप क्या बनना चाहते हैं? किशोर या रफी?

आज मुझसे यह सवाल करना गलत है. आज मेरी अपनी पहचान है. मुझे लोग सोनू निगम के रूप में जानते हैं. इसी रूप में सबने मुझे स्वीकार किया है. किशोर दा या रफी साहब अपनी जगह हस्तियां हैं. मैं अपनी जगह हूं. मेरी आवाज को लोग मेरी आवाज के रूप में ही पसंद करते हैं. 22 साल मैंने फिल्म इंडस्ट्री में गुजार दिये हैं. अब इस जगह पहुंच कर मैं नहीं चाहता कि अब मेरी तुलना किसी और से की जाये.

मुकेश, रफी, किशोर जैसी हस्तियों की विरासत को आपके बाद आगे बढ़ानेवाला कोई नहीं दिखता. क्या मौसमी गायकों के इस दौर में लंबी रेस का गायक बनना बंद हो गया है?

आज संगीत के क्षेत्र में भी टेक्‍नोलॉजी का काफी इस्तेमाल किया जाता है. अब बेसुरी आवाज को भी टेक्‍नोलॉजी से सुरीला बना कर परोसा जा सकता है. खराब आवाज भी सुनने लायक बनायी जा सकती है. इंटरनेट ने लोगों को मंच दे दिया है. अब आपके गाने के लिए रिकॉर्ड कंपनियों की जरूरत नहीं है. गाना गाइये और इंटरनेट पर डाल दीजिए. कोलाबेरी डी इसी तरह से सामने आयी थी. टेक्‍नोलॉजी से फायदा है, तो नुकसान भी. फायदा यह है कि गायक अब किसी कंपनी का मोहताज नहीं है. नुकसान यह है कि अब आप गायकी में पुरानी हुनर छोड़ रहे हैं. टेक्‍नोलॉजी से गायकी की बारीकियां नहीं भरी जा सकतीं.

आज गानों के बोल का स्तर घटा है. फूहड़ बोल वाला रैप संगीत परोसा जा रहा है. क्या अच्छे गीतकारों का टोटा हो गया है?

देखिए, फिल्में और गाने समाज का आईना हैं. अच्छी-बुरी चीजें हर जगह होती हैं. साहित्य भी समाज का आईना है. अच्छा साहित्य है, तो खराब साहित्य भी. इसी समाज में ईमानदार हैं, तो बेईमान भी. ढंके हुए लोग हैं, तो नंगे भी. समाज जो चाहता है, फिल्में और गीत वैसे ही आते हैं. इसी दौर में समझदारीवाली फिल्में भी हैं, तो हल्की फिल्में भी बन रही हैं. ऐसा नहीं है कि हिंदी संगीत के लिए अच्छे गीतकारों की कमी है. मैंने अग्निपथ, अभी मुझमें बाकी है थोड़ी सी जिंदगी गाया है, तो हर एक दोस्त कमीना होता है भी गाया है. देखिए, कुछ चीजें समाज मस्ती के लिए भी खोजता है. यूं ही मस्ती में कुछ गाने हो जाते हैं. और जैसा मैंने पहले भी कहा कि टेक्‍नोलॉजी के फायदे और नुकसान दोनों हैं. गानों को परोसने के लिए मंच की कमी नहीं है. ऐसे में कुछ लोग बुरा दिखा कर प्रसिद्धि पा लेते हैं. आप उनकी भी चर्चा करने के लिए मजबूर होते हैं. ऐसे लोगों का उद्देश्य प्रसिद्धि पाकर पूरा हो जाता है. उनके लिए यह मायने नहीं रखता कि लोग उन्हें कैसे और क्यों याद करते हैं.

रियलिटी शो के विजेता सफलता की बुलंदियों पर क्यों नहीं पहुंचते? क्या वे अच्छे गायक नहीं होते?

ऐसा नहीं है. श्रेया घोषाल और सुनिधि चौहान को देखिए, दोनों रियलिटी शो की विनर हैं. वे बहुत अच्छा गाती हैं. सफल भी हैं. हां, सभी के साथ ऐसी बात नहीं है. इसके लिए मैं फिर से टेक्‍नोलॉजी को ही दोष दूंगा. रियालिटी शो से फायदा नहीं है, तो नुकसान भी नहीं है. कुणाल गांजावाला रियालिटी शो के विजेता नहीं थे, लेकिन उन्हें खुद पर विश्वास था. वे अच्छा गाते हैं. आज वे सफल हैं. रियालिटी शो के कलाकारों को दूसरी जगह पर काम करने का मौका मिलता है. उनकी पहचान बनती है. मंच मिलता है. स्टेज शो के जरिये वे 50 हजार रुपये से छह-सात लाख रुपये तक कमा रहे हैं. यह बढ़िया बात है. इससे कलाकारों का उत्साह भी बढ़ता है.

देश में रियलिटी शो की शुरुआत सारेगामा से आपने ही की थी. इस शो ने कलाकारों को कितना मंच दिया?

सारेगामा रियलिटी शो नहीं था. वह विशुद्ध संगीत प्रतियोगिता थी. उसमें कई महान संगीतकार आये. कलाकारों को आशीर्वाद दिया. सबने कुछ न कुछ सीखा. हां, देश में रियलिटी शो की शुरुआत मैंने ही की थी. इंडियन आइडल से. इस तरह के शो प्रतिभा को मांजते हैं. कलाकारों को मंच मिलता है. कइयों का पेट पलता है.

विवादों से आपका पुराना नाता रहा है. कभी गे-रिलेशनशिप पर बयान देकर, तो कभी अंडरवर्ल्ड की धमकी के कारण. बात क्या है?

मैं खुली किताब हूं. दिल की बातें कह देता हूं. वैसे अंडरवर्ल्ड की धमकी वाली बात मैंने किसी को नहीं बतायी. पुलिस को जानकारी जरूर दी थी. प्रेस में मामले ने तूल पकड़ा, तो मैंने अपनी बात सामने रखनी जरूरी समझी. गे-रिलेशनशिप का पैरवीकार मैं रहा हूं. मेरे कई दोस्त गे हैं. इसमें उनका कोई कसूर नहीं. यह ठीक वैसे ही है, जैसे लड़का होने में मेरी कोई मरजी शामिल नहीं है. मुझे भगवान ने लड़का ही बनाया है. वैसे ही उन्हें भी भगवान ने गे ही बनाया है. ठीक यही बात लेस्बियन लड़कियों के साथ भी है. धारा 377 के मामले में मैं कहना चाहता हूं कि सबको अपनी तरह से जीने का हक है. किसी को किसी दूसरे के जीवन में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है. मैं जोर-जबरदस्ती की पैरवी नहीं कर रहा हूं, मगर रजामंदी से जब दो पुरुष या दो महिला साथ रहना चाहते हों, तो उन्हें रोकना पूरी तरह से गलत है. किसी के निजी जीवन में हस्तक्षेप करने का अधिकार किसी के पास नहीं होना चाहिए.

मुंबई एक्टर बनने आये थे या फिर गायक. इस मुकाम पर पहुंचने के बाद भी कोई कसक?

मैं हमेशा से सिंगर बनना चाहता था. मुंबई भी इसलिए ही आया था. पिताजी की प्रेरणा से मेरे अंदर सिंगर बनने की तमन्ना पैदा हुई थी. मैंने कभी एक्टर बनने की कोशिश नहीं की. फिल्में मिलीं, तो मैंने काम किया. मैं किसी से फिल्म में काम मांगने कभी नहीं गया. कामचोर, बेताब, उस्तादी उस्ताद से, तकदीर जैसी कई फिल्में मैंने बचपन में ही की थीं.

फिल्मों के लिए अब कोई प्लान?

नहीं. ऐसा कुछ नहीं है. भविष्य का बता नहीं सकता. कभी कुछ सोचा या कभी कुछ दिमाग में रहा, तब देखेंगे. कभी इच्छा के अनुरूप कुछ ऑफर हुआ, तो सोचेंगे. फिलहाल मेरे पास बहुत काम है. समय नहीं मिलता. गायिकी मेरा पहला प्यार है. इसे पूरा समय देना चाहता हूं. इसमें इतना काम है कि अभिनय या फिल्म बनाने जैसी बातों के लिए मेरे पास कोई समय नहीं है.

अंतिम सवाल. नवोदित सिंगर के लिए कोई संदेश. सफलता कैसे हासिल करें?

सुरीला या बेसुरा होना किसी के हाथ में नहीं है. यह तो गॉड गिफ्ट है. हां, अच्छी आवाज को रियाज और गुरु के माध्यम से तराशा जरूर जा सकता है. दूसरी बात, सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता. मेहनत के अलावा सफलता के लिए सबसे जरूरी बात अपने अंदर के घमंड को निकाल-बाहर करना है. मुझे तब हंसी आती है, जब कोई कहता है कि लता बेहतर हैं और आशा खराब. या फिर किशोर शानदार हैं और रफी कामचलाऊ. अरे भाई, तुम्हें दोनों अच्छे क्यों नहीं लग सकते. तुम लता और आशा दोनों से क्यों नहीं सीख सकते. दूसरे की बुराई गिना कर कोई सफल नहीं हुआ. आदमी को अपनी बुराई और दूसरों की अच्छाई देखनी चाहिए. खुद को हमेशा बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए. यह सिर्फ सफल गायक बनने की टिप्स नहीं है, बल्कि यह किसी भी कैरियर में या यूं कहें कि जीवन में सफलता पाने का मूल मंत्र है.

* धोती पसंद है सोनू को उनकी च्वाइस

पसंदीदा शहर : मुंबई

पसंदीदा देश : भारत

पसंदीदा गायक : मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर

पसंदीदा अभिनेता : अमिताभ बच्चन,माधुरी दीक्षित

पसंदीदा फिल्म : अमर प्रेम

पसंदीदा गीतकार : जावेद अख्तर

पसंदीदा संगीतकार : शंकर- जयकिशन

पसंदीदा रंग : सफेद

पसंदीदा भोजन : सब कुछ खाता हूं. कुछ भी

पसंदीदा कपड़े : धोती-कुरता

पसंदीदा नेता : कोई नहीं

पसंदीदा खिलाड़ी : सचिन तेंदुलकर

आज के दौर में आदर्श नेता कोई नहीं

सोनू निगम से जब हमने यह सवाल पूछा कि आज के दौर में आपके आदर्श राजनेता कौन हैं, सोनू निगम ने बेबाक कहा, कोई नहीं. यह सौभाग्य मैं किसी नेता को नहीं देना चाहता हूं. किसी ने कुछ नहीं किया है. देश में कई काम पड़े हैं, पहले उसे करें. सबने गंध मचा रखी है. देश के हालात देखिए. मैं नहीं चाहता हूं कि किसी नेता को यह सौभाग्य दं. और फिर मेरे फैन उनके साथ हों. राजनीति ने अभी कुछ अच्छा नहीं किया है. देश को कई क्षेत्रों में मुकाम हासिल करना है. नेता पहले अपना फर्ज अदा करें. नेताओं को ईमानदारी से अपना काम करना चाहिए. मैं अच्छा-बुरा कहने की राजनीति में नहीं पड़ना चाहता हूं.

– मुंबई लौटे

हिंदी फिल्म के मशहूर व युवा पाश्र्व गायक सोनू निगम सोमवार को विशेष विमान से मुंबई लौट गये. प्रभात खबर की ओर से उन्हें बिरसा मुंडा एयरपोर्ट पर विदाई दी गयी.श्री निगम ने इस आयोजन की सराहना की और रांची वासियों के प्रति आभार प्रकट किया. उधर राज्यसभा सांसद परिमल नाथवानी भी सोमवार को विशेष विमान से लौट गये. उन्हें विदा करने के लिए कई लोग आये थे.

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