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वो भी था एक दौर,जब बालीवुड में शहंशाह होते थे संगीतकार

नयी दिल्ली: हिंदी फिल्म संगीत को अपनी चिरायु धुनों से अमरत्व प्रदान करने वाले महान संगीतकार नौशाद अपने जीवन पर लिखी किताब के कवर पर लता मंगेशकर की फोटो देखकर कुछ अचकचा क्यों गए थे? नौशाद ने शमशाद बेगम की बजाय लता को क्यों अपनी फीमेल सिंगर के तौर पर रखा? और क्यों नौशाद ने […]

नयी दिल्ली: हिंदी फिल्म संगीत को अपनी चिरायु धुनों से अमरत्व प्रदान करने वाले महान संगीतकार नौशाद अपने जीवन पर लिखी किताब के कवर पर लता मंगेशकर की फोटो देखकर कुछ अचकचा क्यों गए थे? नौशाद ने शमशाद बेगम की बजाय लता को क्यों अपनी फीमेल सिंगर के तौर पर रखा? और क्यों नौशाद ने कभी पाकिस्तान का मोह नहीं किया? महान संगीतकार पर लिखी एक नयी किताब में बालीवुड की ऐसी ही कुछ दिलचस्प कहानियों और किस्सों को हरफों में पिरोया गया है. संगीत इतिहासकार राजू भारतन की किताब में ‘‘दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा’’ जैसे सुरीले गीतों को अपने संगीत से कालजयी बनाने वाले महान संगीतकार नौशाद की जिंदगी के अनेकों रोचक किस्सों को शामिल किया गया है जो न केवल नौशाद के नौशाद बनने की कहानी बयां करती है बल्कि बालीवुड के भीतर की बेदर्द राजनीति से भी परदा उठाती है. ‘‘नौशादनामा : नौशाद का जीवन और संगीत’’ शीर्षक वाली इस किताब को हे हाउस इंडिया ने प्रकाशित किया है जिसमें सूचनाओं , किस्से कहानियों की ऐसी भरमार है कि पाठक बालीवुड की भीतरी कड़वी सचाइयों को जानकर हैरान रह जाता है. किताब बताती है कि सितारों की यह रंगीन दुनिया किस प्रकार पुराने को दुत्कारती है और नए प्रतिभाओं के लिए पलक पावड़े बिछाती है.

कई दशकों तक बालीवुड पर राज करने वाले नौशाद ने लखनउ में एक वाद्य यंत्रों की दुकान पर सबसे पहले अपने संगीत के हुनर को आजमाया था. उनके रुढ़िवादी पिता संगीत के कट्टर विरोधी थे. बाद में नौशाद मुंबई चले आए और महीनों तक फुटपाथ पर रहने के बाद उन्हें 1940 में 50 रुपये प्रतिमाह की नौकरी मिल गयी. नौशाद ने एक के बाद एक हिट गाने दिए और अपने पसंदीदा गीतकार शकील बदायूंनी और गायक मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर के साथ जोड़ी बनाए रखी. यह 1940 से 1970 के बीच का वह दौर था जब ‘‘धुन रानी होती थी क्योंकि संगीतकार राजा होता था.’’ किताब में एक घटना का जिक्र है जब भारतन ने नौशाद साहब को उनके जीवन पर लिखी किताब भेंट की जिसके कवर पर लता मंगेशकर का फोटो था. उन्होंने सवाल किया, ‘‘ कवर पर लता मंगेशकर का फोटो क्यों? क्यों, जिस संगीतकार ने सृजन किया, उसके बजाय सिर्फ उसे गाने वाले का फोटो कवर पर. क्यों? ’’

जब भारतन ने इसकी सफाई दी तो नौशाद ने कहा, ‘‘ अब जब तुमने कवर पर उनका फोटो लगा ही दिया है तो पूरी गंभीरता के साथ मुझे बताओ कि किसने लता मंगेशकर को बनाया? मैं कहता हूं कि ये हम संगीतकार हैं, और केवल हम संगीतकार हैं जिन्होंने लता को इतना निखारा कि वह महान गायिका बन गयी.’’ नौशाद ने कहा, ‘‘ मैं वो नाचीज हूं जिसका नाम नौशाद है जिसने बेहद बारीकी से लता के उर्दू उच्चारण को सुधारा एक एक नुक्ते की बारीकियां सिखाईं.’’ जब भारतन ने यह कहा कि लता अपनी शोहरत का श्रेय गुलाम हैदर को देती हैं तो नौशाद बोले ,‘‘ खुदा के नाम पर बताएं कि वह संगीतकार कहां था जब लता ने वास्तव में तरक्की की ? पाकिस्तान में पहले ही वह उस देश के नागरिक बन चुके थे.’’

किताब बताती है कि नौशाद कितने समर्पित संगीतकार थे. उन्होंने कभी शास्त्रीय संगीत का दामन नहीं छोड़ा और संगीत के पश्चिमीकरण से साफ इनकार कर दिया. वह हफ्तों किसी गाने की धुन बनाने में लगे रहते थे. काम के प्रति उनकी दीवानगी का आलम यह था कि एक बार वह एक दुल्हन को लिफाफे में शगुन के पैसे देने के बजाय गाने के बोल लिखकर दे आए थे.

किताब में बताया गया है कि क्यों उन्होंने हमेशा लता को तरजीह दी और शमशाद बेगम को नजरअंदाज किया क्योंकि उनकी पत्नी अहिल्या ने लता की सिफारिश की थी. पाकिस्तान के संबंध में वह कहते थे, ‘‘भारत यहां है जहां मैंने अपना नाम कमाया है जहां मेरी किस्मत है.’’ किताब में जावेद अख्तर पर एक अध्याय है जिन्होंने भारतन को फोन किया और कहा कि उनके जैसे संगीत के स्कॉलर को मुगल ए आजम फिल्म में जन्माष्टमी वाले गीत का पूरा श्रेय नौशाद के बजाय बदायूंनी जैसे शायर को देना चाहिए था. इस पर भारतन ने कहा, ‘‘ यह नौशाद ही थे जिन्होंने शकील से एकदम वही लिखवाया जो वह चाहते थे.

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