II उर्मिला कोरी II
फ़िल्म : कमांडो 3
निर्देशक : आदित्य दत्त
कलाकार : विद्युत जामवाल, अदा शर्मा, अंगीरा धर, गुलशन दैवेया और अन्य
रेटिंग : दो
कमांडो सीरीज की तीसरी फ्रेंचाइजी फ़िल्म ‘कमांडो 3’ है. कमांडो सीरीज का मतलब खूब सारा एक्शन लेकिन कमांडो 3 में सिर्फ एक्शन के सहारे ही पूरी फिल्म का बेड़ा पार करने की कोशिश हुई है. सवा दो घंटे की इस फ़िल्म के हर दूसरे दृश्य में 5 मिनट का एक्शन सीक्वेंस है. जिससे बेड़ा पार नहीं बल्कि बेड़ा गर्क वाला मामला पर्दे पर बनता नज़र आता है.
कहानी पर आए तो कमांडो सीरीज की यह फ़िल्म आतंकवाद पर आधारित है. कहानी की शुरुआत मुम्बई से होती है और कुछ एक दृश्य के बाद ये बात सामने आती है कि भारत पर अमेरिका के 9/11 से बड़ा आतंकी हमला होने वाला है.
जिसके बाद अपना हीरो पुलिस कमांडो करणवीर डोंगरा (विद्युत जामवाल) को मिशन सौंपा जाता है. शुरुआती जांच में करणवीर को इस आंतकी साजिश के तार लंदन से जुड़े मिलते हैं. करणवीर मुंबई पुलिस की एक लेडी ऑफिसर भावना रेड्डी (अदा शर्मा) के साथ लंदन पहुंचता है. वहां पर भारतीय मूल की महिला पुलिसकर्मी मल्लिका (अंगिरा धार) को इन लोगों की मदद करने के लिए भेजा जाता है.
आतंकी कौन है ? वह आतंकी साजिश को किस तरह से अंजाम देगा ? यह किसी को नहीं पता. बुराक अंसारी ( गुलशन दवैया) इसके पीछे का मास्टरमाइंड है. क्या करणवीर बुराक को ढूंढ पाएगा? कैसे वो बुराक को ढूंढ कर इस आंतकी साजिश को नाकाम करेगा. वही आगे की कहानी है.
फ़िल्म का फर्स्ट हाफ फिर भी झेला जा सकता है सेकंड हाफ में पूरी तरह से झेल है क्योंकि कहानी में झोल ही झोल नज़र आते है. फ़िल्म के कई दृश्य तार्किक नहीं लगते हैं. क्लाइमेक्स में तो नाटकीयता की अति कर गया. फ़िल्म में देशभक्ति और हिन्दू मुस्लिम सौहार्द पर भी बात हुई है लेकिन वो भी अपील नहीं कर पाता है.
अभिनय की बात करें तो विद्युत ने एक्टिंग के नाम पर इस बार भी सिर्फ एक्शन ही किया है. उन के एक्शन के पुराने फंडों का इस्तेमाल इस भी फ़िल्म में किया गया है हवा में कलाबाजियां, कार की खिड़की के बीच से निकल जाना सहित नया चाकूबाजी वाला स्टंट. अपने स्टंट से वे इस बार भी प्रभावित करते हैं. अभिनेत्री अदा शर्मा अच्छी रही हैं. उनका हैदराबादी अंदाज़ का संवाद फ़िल्म में थोड़ी राहत देता है. अंगिरा भी अच्छी रही हैं. दोनों अभिनेत्रियों ने भी अच्छा एक्शन परफॉर्म किया है.
गुलशन देवैया एक बेहतरीन अभिनेता रहे हैं लेकिन इस बार वे चूक गए हैं. फ़िल्म के शुरुआती दृश्य में वह अच्छे रहे हैं लेकिन जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है. उनकी एक्टिंग ओवर लगने लगती है. बाकी के किरदारों का काम ठीक ठाक है.
फ़िल्म के दूसरे पक्षों की बात करें तो तकनीकी पहलू बहुत कमजोर है. विद्युत जामवाल का गुलशन देवैया का हेलीकॉप्टर से लेकर वो पानी के जहाज तक पहुँचने वाला विजुवल इफेक्ट्स बहुत खराब है.
संवाद की बात करें तो वो भी अपील नहीं करता है देशभक्ति, आतंकवाद पर आधारित यह फिल्म बेतुके नाटकीय डायलॉगों से भरी पड़ी है. कुलमिलाकर अगर आप परदे पर एक्शन फिल्म के नाम पर सिर्फ एक्शन देख सकते हैं, कहानी से आपका कोई सरोकार नहीं है, तो ये फ़िल्म आपके लिए है.