बॉलीवुड की चकाचौंध भरी दुनिया से कब कौन सा सितारा धूमिल हो जाये कहा नहीं जा सकता. एक वक्त को लोग उन्हें पलकों पर बिठाते हैं और दूसर ही पल उनकी कोई खोज-खबर नहीं. आज भी कुछ सितारे गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं. ऐसा ही एक नाम है अभिनेत्री अनु अग्रवाल का. ‘मैं दुनिया भूला दूंगा तेरी चाहत में’ गीत सुनते ही भोली-भाली और प्यारी सी लड़की अनु अग्रवाल का चेहरा उभर आता है. ‘आशिकी’ फिल्म से बॉलीवुड में डेब्यू करनेवाली अनु अग्रवाल आज इंडस्ट्री से कोसों दूर हैं.
अभिनेत्री स्टारडम से काफी दूर बिहार के मुंगेर इलाके में अपनी जिंदगी व्यतीत कर रही हैं और इंडस्ट्री से कोई भी उनकी खोज-खबर लेने वाला नहीं है. वे यहां स्कूल के बच्चों को योगा सिखा रही हैं.
‘आशिकी’ से की थी शुरुआत
11 जनवरी 1969 को दिल्ली में जन्मीं अनु अग्रवाल उस समय दिल्ली यूनिवर्सिटी से समाजशास्त्र की पढ़ाई कर रही थी जब उन्हें महेश भट्ट ने अपनी रोमांटिक फिल्म ‘आशिकी’ (1990) में पहला ब्रेक दिया था. महज 21 साल की उम्र में अभिनय के क्षेत्र में कदम रखने वाली अनु अपने बहेतरीन अभिनय और मासूम चेहरे के बूते दर्शकों की पसंदीदा अदाकाराओं में शुमार हो गयीं.
गिरता गया करियर का ग्राफ
‘आशिकी’ के बाद उनका स्टारडम का ग्राफ आगे मिली फिल्मों में बढ़ने की बजाय घटता गया. इसके बाद भी उनकी ‘गजब तमाशा’, ‘खलनायिका’, ‘कन्यादान’ और ‘किंग अंकल’ जैसी कई फिल्में आई और चली गई, पता ही नहीं चला.
अध्यातम को अपना लिया
उन्होंने एक तमिल फिल्म ‘थिरुदा थिरुदा’ में भी काम किया. वे 1995 में शॉर्ट फिल्म ‘द क्लाउड डोर’ में दिखीं जिससे एकबार फिर वे चर्चा में आईं. 1996 में वे आखिरी बार फिल्म ‘रिटर्न ऑफ ज्वेल थीफ’ में नजर आई. 1996 में अनु ने इस चकाचौंध भरी दुनिया को अलविदा कह योग और अध्यातम को अपना लिया.
वो बड़ा हादसा
लेकिन साल 1999 में उनके साथ एक ऐसी घटना घटी जिसने उनकी जीवन की गाड़ी को एक पटरी से उठाकर दूसरी पटरी पर रख दिया. एक सड़क दुर्घटना ने न सिर्फ उनकी याददाश्त को प्रभावित किया, बल्कि उन्हें चलने फिरने में भी अक्षम (पैरालाइज़्ड) कर दिया. 29 दिनों तक कोमा में रहने के बाद जब अनु होश में आईं, तो वह खुद को पूरी तरह से भूल चुकी थी. याददाश्त खो चुकी अनु के लिए ये उनका पुर्नजन्म ही था! ये साल उनकी जिंदगी से सबसे तकलीफदेह दिनों में से एक थे. किसी ने उनकी कोई खोज-खबर नहीं ली.
नहीं मानी हार
अनु ने हार नहीं मानीं और लगभग 3 सालों के उपचार के बाद वे अपनी धुंधली यादों को जानने में सफ़ल हो पाईं.अनु ने अपनी आत्मकथा An ‘Anusual’ Memoir of a girl, who came back from the death में अपने अनुभव को बखूबी शेयर किया है.