देश के जाने माने समकालीन लेखक, नाटककार, अभिनेता और फिल्म निर्देशक गिरीश कर्नाड का सोमवार को 81 साल की उम्र मेंनिधन हो गया. वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे. 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार के अलावा गिरीश कर्नाड पद्मश्री और पद्मभूषण से भी सम्मानित किया गया था. उन्हें कन्नड़ फ़िल्म ‘संस्कार’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिया गया था. गिरीश कर्नाड का जन्म 19 मई 1938 को महाराष्ट्र के माथेरान में हुआ था. गिरीश कर्नाड के निधन के बाद मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने कर्नाटक में तीन दिवसीय राजकीय शोक की घोषणा की. एक दिन का सार्वजनिक अवकाश भी घोषित किया.
Girish Karnad will be remembered for his versatile acting across all mediums. He also spoke passionately on causes dear to him. His works will continue being popular in the years to come. Saddened by his demise. May his soul rest in peace.
— Narendra Modi (@narendramodi) June 10, 2019
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गिरीश कर्नाड के निधन पर दुख व्यक्त किया है. उन्होंने ट्वीट किया,’ गिरीश कर्नाड को सभी माध्यमों में बहुमुखी अभिनय के लिए याद किया जाएगा. वह उन मुद्दों पर भी भावुकता से बोलते थे जो उन्हें प्रिय लगते थे.उनके काम आने वाले वर्षों में लोकप्रिय होते रहेंगे. उनके निधन से दुखी. उनकी आत्मा को शांति मिले.’
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि कर्नाड के निधन से भारत का सांस्कृतिक जगत सूना हो गया है. कोविंद ने ट्वीट किया, ‘‘लेखक, अभिनेता और भारतीय रंगमंच के सशक्त हस्ताक्षर गिरीश कर्नाड के देहावसान के बारे में जानकार दुख हुआ है. उनके जाने से हमारे सांस्कृतिक जगत को अपूरणीय क्षति हुई है. उनके परिजनों और उनकी कला के अनगिनत प्रशंसकों के प्रति मेरी शोक संवेदनाएं.’
Girish Karnad, veteran actor and playwright, and Jnanpith awardee, passed away this morning. More details awaited pic.twitter.com/YiQT8kCEqD
— ANI (@ANI) June 10, 2019
गिरीश कार्नाड ने एक नाटककार के रूप में ज्यादा प्रसिद्धि हासिल की. उन्होंने ‘वंशवृक्ष’ नामक कन्नड़ फिल्म से निर्देशन के क्षेत्र कदम रखा था. इसके बाद इन्होंने कई कन्नड़ तथा हिन्दी फिल्मों का निर्देशन और अभिनय भी किया.
कर्नाड अभिव्यक्ति की आजादी के पैरोकार थे. आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि कर्नाड कुछ समय से बीमार थे. बहुमुखी प्रतिभा के धनी कर्नाड ने अनेक नाटकों और फिल्मों में अभिनय किया जिनकी काफी सराहना हुई.
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके कर्नाड को 1974 में पद्म श्री और 1992 में पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया. वह 1960 के दशक में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के रोहड्स स्कॉलर भी रहे जिससे उन्होंने दर्शनशास्त्र, राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र में मास्टर ऑफ आर्ट्स की डिग्री हासिल की. उनके कन्नड़ भाषा में लिखे नाटकों का अंग्रेजी और कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया.
उन्होंने मशहूर कन्नड़ फिल्म ‘‘संस्कार’ (1970) से अभिनय और पटकथा लेखन के क्षेत्र में पदार्पण किया. यह फिल्म यू आर अनंतमूर्ति के एक उपन्यास पर आधारित थी. फिल्म का निर्देशन पट्टाभिराम रेड्डी ने किया और फिल्म को कन्नड़ सिनेमा के लिए पहला राष्ट्रपति गोल्डन लोटस पुरस्कार मिला.
हालांकि, उन्होंने बतौर अभिनेता सिनेमा में अपने करियर की शुरुआत की लेकिन उन्हें लेखक और विचारक के रूप में जाना जाता है. कर्नाड अपनी पीढ़ी की सर्वाधिक प्रतिष्ठित कलात्मक आवाजों में से एक थे। वह प्रतिष्ठित नाटककार थे. उनके नाटक ‘‘नागमंडल’, ‘‘ययाति’ और ‘‘तुगलक’ ने उन्हें काफी ख्याति दिलाई. उन्होंने ‘‘स्वामी’ और ‘‘निशांत’ जैसी हिंदी फिल्मों में भी काम किया.
उनके टीवी धारावाहिकों में ‘‘मालगुडी डेज़’ शामिल हैं जिसमें उन्होंने स्वामी के पिता की भूमिका निभाई. वह 90 के दशक की शुरुआत में दूरदर्शन पर विज्ञान पत्रिका ‘‘टर्निंग प्वाइंट’ के प्रस्तोता भी थे. बाद में वर्षों में कर्नाड सलमान खान की ‘‘टाइगर जिंदा है’ और अजय देवगन अभिनीत ‘‘शिवाय’ जैसी व्यावसायिक फिल्मों में भी दिखाई दिए.