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Women’s Day 2022 : हर दस में से आठ भारतीय महिलाओं को समान अधिकार देने के पक्ष में, लेकिन मंजिल अभी दूर

देश में लैंगिक समानता पर जोर देने के बावजूद सच्चाई यह है कि आज भी कीपोस्ट पर बैठने वाली महिलाओं की संख्या कम है और नौकरी में भी महिलाओं को समान अवसर नहीं मिलता है.

International Women’s Day : प्यू रिसर्च सेंटर की हालिया रिपोर्ट में यह कहा गया है कि हर दस में से आठ व्यक्ति यह मानता है कि महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार मिलने चाहिए और इसमें कोई बुराई नहीं है. सरकार भी लगातार महिलाओं को समान अवसर देने और अधिकार देने की वकालत करती है और कई योजनाएं भी महिला कल्याण के लिए लागू हैं.

टीआरएस-2021 के सर्वेक्षण में हुए कई खुलासे

देश में लैंगिक समानता पर जोर देने के बावजूद सच्चाई यह है कि आज भी कीपोस्ट पर बैठने वाली महिलाओं की संख्या कम है और नौकरी में भी महिलाओं को समान अवसर नहीं मिलता है. पीटीआई न्यूज के अनुसार उद्योग जगत में महिलाओं की भागीदारी और उनके वेतन पर आधारित मर्सर के भारत कुल पारिश्रमिक सर्वेक्षण (टीआरएस)-2021 के अनुसार, प्रवेश स्तर पर पुरुषों की तुलना में महिलाओं की दिया जाने वाला वेतन आदि भुगतान 95-99 प्रतिशत था.

महिलाओं का पारिश्रमिक पुरुषों से कम

वहीं यह अनुपात मध्यम से वरिष्ठ स्तर की श्रेणी पर आते काफी कम हो जाता है. सर्वेक्षण के अनुसार, मध्यम से वरिष्ठ श्रेणी में महिलाओं का पारिश्रामिक पुरुष सहयोगियों के मुकाबले घटकर 87 से 95 प्रतिशत रह जाता है.

वेतन में कमी, पदोन्नति की धीमी गति

सर्वेक्षण में कहा गया कि वेतन में कमी, पदोन्नति की धीमी गति, वृद्धि के अवसरों और प्रतिनिधित्व वाली भूमिकाओं जैसे मुख्य कारणों से महिलाओं का वेतन अपने पुरुष सहयोगियों की तुलना में कम रहता है. यह सर्वेक्षण 900 से अधिक कंपनियों, नौकरी से जुड़े 5,700 से अधिक कार्यों और 14 लाख से अधिक कर्मचारियों के आंकड़ों पर आधारित है.

मात्र 25.4 प्रतिशत नौकरीपेशा

वहीं एनएफएचएस 5 के आंकड़ों के अनुसार 25.4 प्रतिशत महिलाएं पिछले एक साल से नौकरीपेशा हैं. आर्थिक रूप से सबल महिलाओं की भूमिका परिवार में लगातार बेहतर हो रही है. वहीं पिछले एक साल तक नौकरी करने वाली महिलाओं की संख्या जहां शहरी इलाकों में 25 प्रतिशत तो है, वह ग्रामीण इलाकों में 25.6 प्रतिशत है. यानी ग्रामीण महिलाएं कमाने के मामले में शहरी महिलाओं से आगे हैं. 2015-16 से तुलना करें तो महिलाओं की स्थिति में मामूली सुधार नजर आता है, क्योंकि यह 24.6 था जबकि अभी कुल में यह 25.4 प्रतिशत है.

महिलाओं के नाम पर संपत्ति बढ़ी

संपत्ति की बात करें तो 38.3 प्रतिशत शहरी महिलाएं ऐसी है जिनके अपने नाम पर या फिर किसी के साथ साझा नाम पर संपत्ति है. जबकि ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा 45.7 प्रतिशत का है, जबकि राष्ट्रीय औसत 43.3 प्रतिशत का है. हालांकि 2015-16 से अगर तुलना करें तो हम पायेंगे कि शहरी इलाकों में महिलाओं के नाम पर संपत्ति कम हुई है. 2015-16 में यह आंकड़ा 38.4 प्रतिशत था.

78.6 प्रतिशत महिलाओं के नाम पर अपना एकाउंट

महिलाओं की आर्थिक सबलता की बात करें तो इसमें बड़ा बदलाव नजर आता है. बैंकों में एकाउंट की बात करें तो 2015-16 में जहां 53 प्रतिशत महिलाओं के नाम पर एकाउंट था वह 2019-21 में 78.6 प्रतिशत हो गया है. जिसमें शहरी महिलाओं की भागीदारी 80.9 और ग्रामीण महिलाओं की 77.4 प्रतिशत है.

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