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फर्जी रेंट बिल अब संभव नहीं : माता-पिता व परिजनों को देते हैं रेंट, तो सबूत भी रखें

नयी दिल्ली : आयकर में छूट के लिए एचआरए पर दावा करते समय अब आपको अधिक सावधानी बरतनी होगी. अगर आप किराया अपने माता पिता या किसी रिश्तेदार को देते हैं, तो उसे साबित करने के लिए आपके पास सबूत होना चाहिए नहीं, तो आपका दावा खारिज हो सकता है. एक अंगरेजी अखबार के हवाले […]

नयी दिल्ली : आयकर में छूट के लिए एचआरए पर दावा करते समय अब आपको अधिक सावधानी बरतनी होगी. अगर आप किराया अपने माता पिता या किसी रिश्तेदार को देते हैं, तो उसे साबित करने के लिए आपके पास सबूत होना चाहिए नहीं, तो आपका दावा खारिज हो सकता है. एक अंगरेजी अखबार के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार वेतनभोगी वर्ग के पास टैक्स छूट पाने के सीमित उपाय होते हैं. कुछ नौकरीपेशा लोग साथ रहनेवाले अपने पारिवारिक सदस्य को ही किराया देने का दावा कर विभिन्न प्रावधानों के तहत आयकर छूट का भरपूर लाभ उठाना चाहते हैं.

भले ही किराया वास्तव में रिश्तेदार को दिया गया हो या नहीं अथवा किराये की रसीद सही है कि नहीं. मुंबई इनकम टैक्स अपेलट ट्रिब्यूनल (आइटीएटी) ने हाल ही में दो लोगों का दावा खारिज कर दिया है. आइटीएटी के दोनों फैसले से हम क्या सबक ले सकते हैं? गौर करनेवाली बात यह है कि पारिवारिक सदस्य या करीबी रिश्तेदार को किराया देना गैर-कानूनी नहीं है, लेकिन इसमें जोखिम है कि अगर अपने दावे का पूरा-पूरा सबूत नहीं दे पाते हैं, तो आयकर अधिकारी गहरी छानबीन करेंगे. आपका दावा खारिज हो जायेगा. इस तरह से बचा सकते हैं टैक्स: रिश्तेदारों को रेंट देते वक्त सावधानी बरतना जरूरी है. इसलिए जिसे किराया देते हैं, उसके साथ ‘लीव एंड लाइसेंस अग्रीमेंट बनाएं’. बैंकिंग चैनल्स के माध्यम से किराया दें.

ब्याज संग जुर्माना : अमरपाल एस चड्ढा का कहना है, अगर रिश्तेदार को किराया देने के मामले में एचआरए पर टैक्स छूट का दावा खारिज हो जाता है, तो बतायी गयी रकम को आपकी आमदनी मानी जायेगी. फिर आपको इनकम टैक्स देने में देरी की वजह से ब्याज सहित टैक्स चुकाना होगा. इतना ही नहीं, अगर आयकर अधिकारियों ने चाहा, तो आमदनी छिपाने का दोषी बताकर आपसे जुर्माना भी वसूला जा सकता है.

अधिकारियों को होता है शक

सीए फर्म मनोहर चौधरी एंड असोसिएट्स के टैक्स पार्टनर अमित पटेल कहते हैं, ‘दरअसल, इनकम टैक्स एक्ट में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो नजदीकी रिश्तेदार को किराया देने पर किसी नौकरीपेशा व्यक्ति को धारा 10(13A)के तहत एचआरए इग्जेंप्शन से रोके. हालांकि, धारा 143(2) आयकर अधिकारियों को अधिकार है कि वो ऐसे दावों की सत्यता की जांच कर सकें.’ कहा, ‘आमतौर पर कोई अपने जीवनसाथी या माता-पिता को किराया नहीं देता है. मैं भी ऐसे लेनदेन में फंसने की सलाह नहीं देता हूं क्योंकि ऐसे दावे पर आयकर अधिकारियों के कान खड़े होना स्वाभाविक हैं.’

जीवनसाथी या माता-पिता को किराया देने से टैक्स छूट पाने की आपकी योग्यता कम नहीं होती जब तक कि आपके द्वारा शर्तें पूरी की जा रही हों. लेनदेन सही हो. लेनदेन सिर्फ टैक्स से बचने का जरिया मात्र नहीं. इसलिए, मुंबई अहमदाबाद के ट्रिब्यूनल के फैसले विरोधाभासी दिखते हैं, लेकिन तथ्यों पर आधारित हैं.
अमरपाल एस चड्ढा,सलाहकार

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