प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 दिसंबर को नोटबंदी की घोषणा कर दी. पांच सौ व हजार के नोट पर प्रतिबंध लगाने की अचानक से हुई घोषणा ने देश को आश्चर्य में डाल दिया. आज ठीक एक महीने बाद 8 दिसबंर को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कैशलेस ट्रांजेक्शन पर बड़ी छूट की घोषणा की है. केंद्र सरकार देश में कैशलेस इकोनॉमी को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है. सवाल यह कि भारत क्या सचमुच कैशलेस इकोनॉमी के लिए तैयार है ?
कैशलेस के फायदे
1.टैक्स कलेक्शन में बढ़ोतरी : कालेधन और भ्रष्टाचार की समस्या की वजह से सरकार ज्यादा इनकम टैक्स संग्रह नहीं कर पाती है. सरकार के इनकम टैक्स का बड़ा स्त्रोत नौकरीपेशा वाले शख्स है जबकि कारोबारी समुदाय अपनी आय छुपाने में काफी हद तक कामयाब हो जाते हैं. जब लोगों के आय व्यय की जानकारी ऑनलाइन हो जायेगी तो सरकार राजस्व में बढ़ोतरी करने में कामयाबी हासिल कर सकती है.
2. त्वरित भुगतान : कैशलेस इकोनॉमी होने की वजह से त्वरित भुगतान किया जा सकता है. किसान, कारीगर व छोटे कारोबारी आसानी से भुगतान कर सकते हैं.
3. भ्रष्टाचार : भारत जैसे बड़ी आबादी व विशाल देशों में भ्रष्टाचार पर नियंत्रण पाना आसान नहीं है. कैशलेस इकोनॉमी की वजह से भ्रष्टाचार में कमी आ सकती है क्योंकि भारत में ज्यादातर भ्रष्टाचार की गतिविधयां कैश में होती है. लोग सरकारी महकमें में ऑफिसर को घूस कैश में देते हैं. डिजिटल होने से पैसे की ट्रांसफर की सूचना आसानी से लगायी जा सकती है. आंकड़े बताते है कि जिन देशों ने कैशलेस इकोनॉमी अपनाया है वहां भ्रष्टाचार बेहद कम है.
4. आर्थिक समावेश : कैशलेस अर्थव्यवस्था में सरकार न्यूनतम मजदूरी संबंधी कानूनों पर निगरानी रख सकती है. छोटे जगहों पर जहां बैकिंग की सुविधा नहीं है वहां आसानी से ई पेमेंट व मोबाइल बैकिंग के माध्यम से भुगतान की जा सकती है. कल्याणकारी योजनाओं का फंड सीधे लोगों के अकाउंट में पहुंचाया जा सकता है.
नुकसान
साइबर फ्रॉड : देश में साइबर सिक्युरिटी के पुख्ता इंतजाम नहीं है. ऐसे हालत में लोगों के अकाउंट से पैसे चोरी होने का खतरा बना रहेगा. हालांकि भारत सरकार दूसरे देशों के साथ मिलकर इस पर काम कर रही है.
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