नयी दिल्ली : भारत को बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा करने के लिए बढ़ते वेतन और बुजुर्गों की संख्या बढ़ने के कारण चीन से बाहर जा रही बड़ी विनिर्माण कंपनियों के लिए आकर्षक गंतव्य के तौर पर उभरना चाहिए. यह बात नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने कही.
पनगढ़िया ने यहां सीआईआई के सम्मेलन में कहा, ‘‘ऐसा लगता है कि चीन में काम कर रही बड़ी कंपनियों के मामले में बड़ा बदलाव आने वाला है. भारत को उनके लिए गंतव्य बनना होगा. भारत के लिए इन कंपनियों को आकर्षित करने का बहुत अच्छा समय है.’ उन्होंने कहा, ‘‘चीन में जनसांख्यिकीय बदलाव (बुजुर्गों की बढ़ती संख्या) भारत के एकदम उलट है.
चीन में तीन गुना बढ़ा वेतन , सलाना कंपनियों को खर्च करने पड़ते है पांच लाख रुपये
चीन में कार्यबल घट रहा है. इसलिए श्रम केंद्रित उद्योग चीन से बाहर जा रहे हैं.’ उन्होंने कहा, ‘‘आज आप देखते हैं कि चीन में वेतन बढ रहा है और अब तक दो से तीन गुना बढ चुका है. विनिर्माण में यदि आप इनको भारतीय रुपये में बदलें तो सालाना औसत वेतन करीब पांच लाख रुपये बैठता है.’ फॉक्सकॉन जिसके 13 लाख कर्मचारी हैं, की मिसाल देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘इसके एक संयंत्र में आपको 20,000 कर्मचारी मिलेंगे.
इस तरह की कंपनियां चीन से बाहर निकल रही हैं. यहां एक सवाल है. वे कहां जाएंगी? फिलहाल कुछ वियतनाम, बांग्लादेश, श्रीलंका जा रही हैं और कुछ भारत भी आ रही हैं.’ पनगढ़िया का मानना है कि यदि भारत बदलाव चाहता है तो उसे कामगारों को गैर कृषि क्षेत्र में लाना होगा.
उन्होंने कहा, ‘‘यदि आप 50 करोड कार्यबल में बदलाव लाना चाहते हैं जिसका करीब आधा हिस्सा कृषि में लगा है. इसके अलावा कपडा, खाद्य प्रसंस्करण, जूते और इलेक्ट्रानिक उत्पाद कुछ ऐसे खंड हैं जहां भारत को सफल होने की जरूरत है.’
पनगढ़िया ने कहा कि वाहन के कल-पुर्जे, मशीनरी क्षेत्र, रासायनिक उद्योग और पेट्रोलियम रिफाइनिंग जैसे उद्योग विनिर्माण से जुडे है जो सफल है लेकिन इनमें रोजगार नहीं पैदा होता.
उन्होंने कहा कि सेवा क्षेत्र में कुशल कामगारों को रोजगार प्रदान करता है न कि कौशल रहित कामगारों को. इस तरह ये क्षेत्र कौशल केंद्रित हैं.पनगढ़िया ने कहा, ‘‘भारत में कृषि से गैर-कृषि क्षेत्रों में जाने के लिहाज से बदलाव अपेक्षाकृत बहुत कम है और यहीं विनिर्माण महत्वपूर्ण खंड है.’ उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की उत्पादन हिस्सेदारी घटकर करीब 16 या 17 प्रतिशत रह गई है जो स्वतंत्रता के समय सकल घरेलू उत्पाद का आधा थी.उन्होंने कहा कि 1991 में जब भारत में सुधार प्रक्रिया शुरू हुई थी तो कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी भारतीय अर्थव्यवस्था में करीब 30 प्रतिशत थी.
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