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0 % लोन पर पाबंदी से फाइनैंस कंपनियों की मौज

मुंबई : रिजर्ब बैंक ऑफ इंडिया ने जब से जीरो पर्सेंट बैंक लोन पर पाबंदी लगाई है, तब से फाइनैंस कंपनियों की चांदी हो गई है. आरबीआई के जीरो परसेंट लोन पर बैन से कंज्यूमर पर कोई असर नहीं पड़ता नजर आया है. लेकिन डिमांड का फायदा नॉन बैंकिंग फाइनैंस कंपनियों ( एनबीएफसी ) को […]

मुंबई : रिजर्ब बैंक ऑफ इंडिया ने जब से जीरो पर्सेंट बैंक लोन पर पाबंदी लगाई है, तब से फाइनैंस कंपनियों की चांदी हो गई है. आरबीआई के जीरो परसेंट लोन पर बैन से कंज्यूमर पर कोई असर नहीं पड़ता नजर आया है. लेकिन डिमांड का फायदा नॉन बैंकिंग फाइनैंस कंपनियों ( एनबीएफसी ) को हो रहा है. ऐसे में बिजनस का एक बड़ा मौका बैंकों के हाथ से निकल गया. गुप्ता कहते हैं, ‘शुरुआत में हमें कुछ चिंता हुई लेकिन आरबीआई की पाबंदी बैंकों और क्रेडिट कार्ड्स पर लागू होती है.’ गुप्ता की कंपनी विजय सेल्स मुंबई में पिछले चार दशक से भी ज्यादा समय से कंज्यूमर ड्यूरेबल्स बेच रही है.

बैंकिंग रेग्युलेटर को लगा कि कंज्यूमर को जीरो पर्सेंट या डिस्काउंटेड इंटरेस्ट रेट स्कीमों से बेवकूफ बनाया जा रहा है. आरबीआई का मानना था कि लेंडर इसके जरिए कस्टमर्स में इस बात का भ्रम पैदा कर रहे हैं कि उनको लोन फ्री में मिल रहा है. उसने इस भ्रम को दूर करने के लिए उस पर पाबंदी लगा दी. कंज्यूमर ड्यूरेबल्स मेकर्स जीरो पर्सेंट लोन स्मार्टफोन, एलईडी टीवी और प्रीमियम होम अप्लायंस देते हैं.

आरबीआई के गवर्नर रघुराम राजन ने ईटी को दिए इंटरव्यू में कहा, ‘हमारे दो काम हैं: रेग्युलेटरी और कंज्यूमर प्रोटेक्शन. जीरो पर्सेंट फाइनैंस अट्रैक्टिव लगता है लेकिन इसमें इंटरेस्ट बैक एंडेड होता है जिसमें इंटरेस्ट रेट आगे चलकर बढ़ता है या फिर फ्रंट एंडेड. इसलिए हम चाहते हैं कि इसमें पारदर्शिता हो.’ फाइनैंस कंपनियां भी आरबीआई से रेग्युलेट होती हैं लेकिन इनकी जीरो पर्सेंट ब्याज पर लोन स्कीमों पर पाबंदी नहीं है. इससे बजाज फाइनैंस और श्रीराम सिटी यूनियन जैसी कंपनियों के लिए बिजनस के बहुत मौके बने हैं.

जीरो पर्सेंट लोन स्कीमों से कस्टमर्स को फायदा होगा, आरबीआई की यह दलील सही नहीं है. ऐसा इसलिए कि बहुत से रीटेल आउटलेट्स पर बायर्स को पूरा पेमेंट करने पर कोई डिस्काउंट नहीं मिलता है. एक फाइनैंस कंपनी के एक्जेक्यूटिव ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, ‘मैन्युफैक्चरर्स डिस्काउंट फुल पेमेंट पर नहीं बल्कि प्रोडक्ट्स को बैंक या एनबीएफसी की तरफ से फाइनेंस किए जाने पर ही देते हैं. कस्टमर्स को कोई फायदा नहीं होने वाला है.’

आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स का मार्केट सालाना 30 से 35 फीसदी के रेट से बढ़ रहा है. अगस्त 2013 में बैंकों के कुल लोन में कंज्यूमर ड्यूरेबल्स का 10 फीसदी शेयर था और यह 9,400 करोड़ के लेवल पर था. राजन ने कहा, ‘हम आपको जीरो परसेंट स्कीम चलाने से रोक नहीं रहे. लेकिन अगर यह सचमुच जीरो पर्सेंट है तो इसको 0 फीसदी पर लाइए. मैं इंटरेस्ट रेट तय नहीं कर रहा लेकिन इसको कॉस्ट में मत छुपाइए. साल भर के बाद इंटरेस्ट रेट इतना मत बढ़ाइए कि कस्टमर चुका नहीं पाए.’

Disclaimer: शेयर बाजार से संबंधित किसी भी खरीद-बिक्री के लिए प्रभात खबर कोई सुझाव नहीं देता. हम बाजार से जुड़े विश्लेषण मार्केट एक्सपर्ट्स और ब्रोकिंग कंपनियों के हवाले से प्रकाशित करते हैं. लेकिन प्रमाणित विशेषज्ञों से परामर्श के बाद ही बाजार से जुड़े निर्णय करें.

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