भुवनेश्वर: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि रुपये की गिरावट, अधिक मुद्रास्फीति और उत्पादन गतिविधियों में कमी चिंता का विषय है लेकिन निराशा और मायूसी की कोई बात नहीं है तथा आर्थिक विकास पहले की तरह उच्च स्तर पर पहुंचेगा.
मुखर्जी ने कहा, ‘‘निराशा और मायूसी की कोई बात नहीं है क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था के बुनियादी तत्व मजबूत बने हुए हैं और देश के पास जरुरी संसाधन, प्रतिभा तथा नीतियां हैं ताकि मौजूदा कठिनाइयों से प्रभावी तरीके से निपटा जा सके.’’उन्होंने यहां भारतीय विद्या भवन के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘पिछले एक साल में रुपये की गिरावट, अधिक मुद्रास्फीति और उत्पादन गतिविधियों में गिरावट चिंता का विषय हैं.’’
मुखर्जी ने कहा, ‘‘वैश्विक कारकों ने अनेक उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं को प्रभावित किया है और हमारे नीति निर्माताओं का ध्यान रपये को स्थिर करने में लगा हुआ है.’’उन्होंने कहा कि इस साल अच्छे मॉनसून का कृषि के विकास तथा खाद्य पदार्थों के दामों पर अनुकूल प्रभाव पढ़ना चाहिए.
मुखर्जी ने कहा, ‘‘पिछले कुछ समय में विकास धीमा हुआ है लेकिन हमारी अर्थव्यवस्था के बुनियादी तत्व मजबूत बने हुए हैं. राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने और औद्योगिक निवेश को बढ़ाने के लिए कदम उठाये जा रहे हैं. मुङो विश्वास है कि हमारा आर्थिक विकास पहले की तरह उच्च स्तर पर पहुंचेगा.’’
आशा की किरण दिखाते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा कि 1900 और 1947 के बीच भारत का आर्थिक विकास एक प्रतिशत वार्षिक औसत वाला था.उन्होंने कहा, ‘‘हम इतने नीचे से उंचाई पर पहुंचे. पहले तीन प्रतिशत विकास दर पर फिर और भी आगे पहुंचे.’’राष्ट्रपति ने कहा कि पिछले दशक में भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शुमार था और उस अवधि में देश की अर्थव्यवस्था 7.9 प्रतिशत की वार्षिक औसत दर से बढ़ी.
उन्होंने कहा, ‘‘हम खाद्यान्न उत्पादन में आज आत्मनिर्भर हैं.’’उन्होंने कहा कि भारत दुनिया में चावल का सबसे बड़ा और गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है.मुखर्जी ने भारत की राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता पर भी रोशनी डालते हुए कहा कि सही मायने में समावेशी विकास जरुरी है जिससे सभी नागरिकों को और खासकर वंचित तबकों एवं सामाजिक–आर्थिक पिरामिड के आधार में स्थित लोगों को लाभ पहुंचे.
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