आशीष धवन
(लेखक शिक्षा क्षेत्र में काम कर रही संस्था ‘सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन’ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और संस्थापक हैं)
साक्षरता दर बढ़ाने में मिली कामयाबी के बाद अब देश में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की बड़ी जरूरत है. कई सरकारी कार्यक्रमों, योजनाओं के बावजूद खासकर प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होता नहीं दिख रहा है. ऐसे वक्त में पेश है 2014-15 के बजट प्रावधानों से शिक्षा क्षेत्र पर पड़ने वाले इम्पैक्ट का आकलन करता विशेषज्ञों का नजरिया.
देश में 24 करोड़ युवाओं का भविष्य दावं पर होने की खबरों के बीच 2014-15 के बजट से इस बात को लेकर उत्साह का माहौल बना है कि शिक्षा का मसला नयी सरकार की प्राथमिकताओं में है और वह इस मसले पर प्रतिबद्ध भी दिख रही है. बजट हाइलाइट्स 2014-15 के मुताबिक, देश में शिक्षित और कुशल कार्यबल तैयार करने की ओर सरकार का खास ध्यान है, ताकि आर्थिक विकास की प्रक्रिया में सुधार हो सके. सरकार ने आउटपुट पर फोकस करना शुरू कर दिया है और इस दिशा में कदम उठाते हुए शिक्षा को गुणवत्ता संचालित क्षेत्र के तौर पर बनाये जाने पर जोर दिया है.
इस बजट में शिक्षा क्षेत्र के लिए 68,728 करोड़ रुपये आबंटित किये जाने की प्रतिबद्धता जतायी गयी है. इससे सरकार का इरादा झलकता है कि वह हमारे युवाओं को गुणवत्ता युक्त शिक्षा दिये जाने के संबंध में कितनी जागरूक है. जानते हैं रणनीतिक तौर पर किये जानेवाले निवेश के तीन खास उदाहरणों के बारे में :
– स्कूल एसेसमेंट प्रोग्राम के लिए 30 करोड़ : हमारे स्कूलों का प्रदर्शन कैसा हो रहा है और हमारे छात्र क्या सीख रहे हैं, इस बात को जानने के लिए गुणवत्ता की माप काफी कठिन है. ऐसे में स्कूल एसेसमेंट प्रोग्राम उम्मीद जगानेवाला है.
– पंडित मदन मोहन मालवीय न्यू टीचर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए 500 करोड़ रुपये : देशभर में आज 12 लाख शिक्षकों की कमी है. आज हमें अधिकाधिक संख्या में कुशल शिक्षक तैयार करने की जरूरत है. यह ट्रेनिंग प्रोग्राम इस दिशा में एक उल्लेखनीय कदम हो सकता है.
– ज्ञान विकसित करने (कल्टिवेटिंग नॉलेज) और ऑनलाइन कोर्सेज के लिए संचार से जुड़े इंटरफेस वर्चुअल क्लासरूम की स्थापना के लिए 100 करोड़ : नवोन्मेषन (इन्नोवेशन) के लिए तकनीक का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाया जा सकता है और शिक्षकों व छात्रों के लिए पठन-पाठन और सुधार की उच्च-गुणवत्ता युक्त प्रक्रिया स्थापित की जा सकती है.
कौशल विकास पर जोर
इसके अलावा, सरकार ने स्किल इंडिया प्रोग्राम का भी प्रस्ताव रखा है, जो केंद्र सरकार के क ौशल विकास के प्रयासों से जुड़े मिशन को फोकस करने को दर्शाता है. उच्च शिक्षा में गुणवत्ता और पहुंच बढ़ाने के लिए सरकार की इस प्रतिबद्धता को देख कर खुशी जाहिर की जा सकती है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट और ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) की भांति उच्च गुणवत्ता वाले व शीर्ष संस्थान के तौर पर स्थापित नये संस्थान देशभर में खोले जायेंगे. इंफोर्मेशन एंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी के माध्यम से शिक्षा को एक राष्ट्रीय मिशन के तौर पर खास फोकस करते हुए सूचना और संचार तकनीक व दूरस्थ शिक्षा के लिए तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा देने हेतु आबंटित रकम में बढ़ोतरी की गयी है.
उच्च शिक्षा तक पहुंच, गुणवत्ता और समानता को फोकस करते हुए राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के लिए रकम का आबंटन 400 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2,200 करोड़ रुपये कर दिया गया है. हालांकि, सरकार इन कार्यक्रमों को कार्यान्वित करने की दिशा में अग्रसर है, लेकिन जरूरत इस बात की है कि हम भी यह तय करें कि हमारे संसाधनों का समग्र इस्तेमाल हो सके.
इनपुट-आधारित सिस्टम से आउटकम-आधारित में बदलाव
सरकार के सामने वित्तीय चुनौतियों को देखते हुए हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि सर्व शिक्षा अभियान और मिड-डे-मील सरीखे कार्यक्रमों पर खर्च के लिए बजट में बढ़ायी रकम का प्रभावी इस्तेमाल हो सके. उदाहरण के तौर पर इन कार्यक्रमों की सफलता की माप के इनपुट-आधारित सिस्टम को आउटकम- आधारित सिस्टम में बदलाव करना, जो हमें इस बात की व्यापक जानकारी दे सकता है कि क्या ये कार्यक्रम वाकई में हमारे बच्चों की जरूरतों को पूरा कर पा रहे हैं.
बजट में शिक्षा के प्रति सरकार के नजरिये को आउटकम-आधारित नीति की दिशा में जाते हुए देखा जा रहा है, और हम उम्मीद करते हैं कि रणनीतिक पेशकश की तरह अपनायी गयी इस प्रतिबद्धता में समय के साथ वृद्धि होगी. वित्त मंत्री अरुण जेटली और मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी बधाई के पात्र हैं, क्योंकि उन्होंने देश में शिक्षा को प्राथमिकता दिये जाने को समझा और इसके लिए कदम उठाये, जिससे हमारी शिक्षा व्यवस्था में बदलाव आ सकता है.
मोदी सरकार स्कूली शिक्षा और उच्च शिक्षा के लिए पर्याप्त संसाधन मुहैया कराने के प्रति प्रतिबद्ध है, पर यह जरूरी है कि केंद्र द्वारा आवंटित की जा रही रकम का राज्यों द्वारा समग्र तौर पर इस्तेमाल में लाया जाये. इसे हासिल करने के लिए केंद्र सरकार को प्रदर्शन आधारित घटक को शामिल करना चाहिए, ताकि शिक्षा नीतियों के कार्यान्वयन की दिशा में यह उपयोगी हो और प्रदर्शन के स्तर पर व्यापक जवाबदेही तय हो.
शिक्षा पर आवंटन कम, रक्षा पर ज्यादा!
– डॉ रतन लाल
प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय
मौजूदा शिक्षा व्यवस्था के तहत तकनीक आधारित विषयों को ज्यादा तवज्जो दी जा रही है और ह्यूमेनिटीज व सोशल साइंस जैसे विषय पिछड़ते जा रहे हैं.
देश में शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने और सभी को शिक्षा प्रदान करने की दिशा में सबसे बड़ी चुनौती हमारे यहां बुनियादी सुविधाओं (इन्फ्रास्ट्रक्चर) की कमी है. दूसरी सबसे बड़ी चुनौती देश में शिक्षकों का अभाव है. साथ ही, हमारे पास मौजूद संसाधन बेहद कम हैं. इसके अलावा, एक बड़ी व्यावहारिक दिक्कत यह है कि जिस भाषा में बच्चों को ज्ञान उपलब्ध कराया जाना चाहिए, उस भाषा में किताबों की बेहद कमी है. दरअसल, हमारी शिक्षा प्रणाली अंगरेजी पर आधारित है और आजादी के तकरीबन सात दशक बीतने के बावजूद अब तक उसी भाषा को तवज्जो दिया जा रहा है.
हमारी शिक्षा व्यवस्था कुछ इस तरह की होती जा रही है कि तकनीक आधारित विषयों को ज्यादा तवज्जो दिया जा रहा है और ह्यूमेनिटीज व सोशल साइंस जैसे विषय पिछड़ते जा रहे हैं. इन विषयों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है. अभी पिछले कुछ हफ्तों से दिल्ली विश्वविद्यालय राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में रहा है. इसे एक आदर्श विश्वविद्यालय के तौर पर देखा जाता रहा है, लेकिन आज तक किसी सरकार ने इसकी तर्ज पर अन्यत्र किसी विश्वविद्यालय खोले जाने के बारे में नहीं सोचा.
कागजी तौर पर देखा जाये तो सरकार की योजनाएं सही हैं, लेकिन उनका कार्यान्वयन ठीक तरीके से नहीं हो रहा है. योजनाओं को लागू किये जाने में प्रत्येक स्तर पर भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार आदि व्याप्त हैं. मिड डे मील के तहत देशभर के स्कूलों में बच्चों को पोषक आहार नहीं मिल पाता. ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब तबकों से आने वाले बच्चों को इसका नतीजा भुगतना पड़ता है. साथ ही, शिक्षकों के मिड डे मील कार्यक्रम में संलग्न होने से पढ़ाई-लिखाई का काम भी प्रभावित होता है. शिक्षक का काम पढ़ाना है, जबकि इस तरह के कार्यक्रमों में शिक्षकों की संलग्नता से पठन-पाठन कार्य बाधित होता है.
लोकतांत्रिक देश में नागरिकों की भलाई होता दिखाने के लिए तमाम योजनाएं चलायी जाती हैं, लेकिन शिक्षा की योजनाओं से गुणवत्ता में जो परिवर्तन दिखना चाहिए वह नहीं दिख रहा है. सरकार ने स्कूली शिक्षा के अंतर्गत सर्व शिक्षा अभियान के लिए जो रकम आबंटित की है, उसे पर्याप्त नहीं कहा जा सकता. साथ ही, इसे खर्च करने के लिए पूरी योजना बनायी जानी चाहिए.
इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है. इसके सफल कार्यान्वयन के लिए राजनीतिक, सामाजिक और प्रशासनिक स्तर पर जिम्मेवारियां निर्धारित करते हुए सभी की जवाबदेही तय करनी होगी. जनप्रतिनिधियों को शिक्षा से संबंधित जिम्मेवारियों को समझना होगा. गांवों में पंचायत स्तर पर इसे ठीक करना होगा. आज भ्रष्टाचार न केवल ऊंचे स्तर पर है, बल्कि स्थानीय व निचले स्तर पर भी व्याप्त है, जिसे खत्म करने की जरूरत है.
बंदूक को शिक्षा से ज्यादा तवज्जो
देश में शिक्षा व्यवस्था पर होने वाले बजट आबंटन की तुलना यदि हम रक्षा बजट से करें, तो पायेंगे कि इसमें काफी फर्क है. देश का रक्षा बजट इस वर्ष तकरीबन सवा दो लाख करोड़ रुपये का है, जबकि शिक्षा बजट के तहत स्कूली शिक्षा के लिए 28 हजार करोड़, सर्व शिक्षा अभियान के लिए 13 हजार करोड़ व उच्च शिक्षा अभियान के लिए महज 2200 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया है. जिस देश में गोली-बंदूक के निर्माण पर ज्यादा और शिक्षा व्यवस्था पर कम खर्च किया जाता हो, वहां शिक्षा की दशा कैसी होगी, इसे आसानी से समझा जा सकता है.
शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने की यदि सरकार की मंशा है, तो इसके लिए बजट में रकम बढ़ाना होगा. मौजूदा आबंटन को पर्याप्त नहीं कहा जा सकता. जहां तक नये आइआइटी/ आइआइएम शुरू करने का प्रावधान है, तो इसकी सुविधा कुछ खास तबके के लोगों को ही मिल पाती है. इन्हीं खास तबकों के लिए ये संस्थान शुरू किये जाते हैं.
(कन्हैया झा से बातचीत पर आधारित)
शिक्षा क्षेत्र
– सामान्य शिक्षा : सामाजिक क्षेत्र कार्यक्रमों के प्रति सरकार की प्राथमिकताओं के अनुरूप, विद्यालयी शिक्षा और साक्षरता विभाग के लिए 51,828 करोड़ रुपये और उच्चतर शिक्षा विभाग के लिए 16,900 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. इसमें प्रारंभिक शिक्षा कोष में जमा किये जानेवाले शिक्षा उपकर से प्राप्तियों के रूप में 27,58. करोड़ रुपये की अनुमानित प्राप्तियां शामिल हैं.
– सर्व शिक्षा अभियान : सर्व शिक्षा अभियान केंद्र और राज्य सरकारों/ संघ राज्य क्षेत्रों के बीच कार्यान्वित किया जा रहा है, जिसे सभी को बुनियादी शिक्षा मुहैया कराने के लिए शुरू किया गया है. इस कार्यक्रम में प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में पहुंच, समानता, स्कूल में बने रहने और गुणवत्ता की व्यवस्था करने का प्रयास किया गया है. सर्व शिक्षा अभियान के तहत 28,258 करोड़ रुपये का व्यय रखा गया है.
– मध्याह्न् भोजन योजना : प्राथमिक शिक्षा से संबद्ध राष्ट्रीय पोषाहार समर्थन कार्यक्रम को मध्याह्न् भोजन योजना के रूप में जाना जाता है. प्राथमिक और प्राथमिक उच्च स्तर पर के बच्चों के लिए दुनिया के सबसे बड़े भोजन कार्यक्रम के रूप में उभरे इस कार्यक्रम की सफलता को देखते हुए अक्तूबर, 2007 में इसे शैक्षणिक रूप से देश के पिछड़े 3,479 विकास खंडों में लागू किया गया. वर्ष 2008-09 से इसमें आठवीं तक के बच्चों को शामिल किया गया. इस योजना के लिए 13,215 करोड़ रुपये दिये गये हैं.
– माध्यमिक शिक्षा : इसके लिए 8579 करोड़ रुपये का आबंटन किया गया है. इसमें नवोदय विद्यालय समिति और केंद्रीय विद्यालय संगठन को दिये गये आबंटन भी शामिल हैं. इसमें प्रखंड स्तर पर 6,000 आदर्श विद्यालयों की स्थापना की स्कीमों के लिए 1,200 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है.
– प्रौढ़ शिक्षा : इसके लिए 111 करोड़ रुपये आबंटित किये गये हैं, जिसमें कौशल विकास के लिए एनजीओ/ संस्थाओं/ एसआरसी की सहायता के लिए मुहैया कराये गये 100 करोड़ रुपये भी शामिल हैं.
– उच्चतर शिक्षा : इसके लिए 16,900 करोड़ का प्रावधान किया गया है, जिसमें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को 3,905 करोड़ रुपये, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय को 125 करोड़ और ‘राष्ट्रीय उच्च शिक्षा अभियान’ को 200 करोड़ रुपयों समेत विभिन्न उच्चतर और तकनीकी संस्थाओं के लिए रकम का प्रावधान शामिल है.
– तकनीकी शिक्षा : इसमें आइआइटी, एनआइटी, आइआइएम आदि के लिए सहायता शामिल है, जिनके लिए 7,138.97 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया है. इसमें आइआइटी के लिए 2,500 करोड़ रुपये, एनआइटी के लिए 1,300 करोड़ रुपये (जिसमें नये संस्थान भी शामिल हैं), भारतीय विज्ञान शिक्षा तथा अनुसंधान संस्थान के लिए 810 करोड़ की व्यवस्था की गयी है. आइआइएम के लिए 300 करोड़ रुपये का प्रावधान भी है.
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