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वृद्धि के मामले में सेवा क्षेत्र की स्थिति बेहतर

नयी दिल्ली : सेवा क्षेत्र सामाजिक और आर्थिक विकास को महत्वपूर्ण आधार मुहैया कराता है. वैश्विक अर्थव्यवस्था में यह क्षेत्र सबसे बड़ा और तेजी से विकसित हो रहे क्षेत्र के तौर पर उभरा है. वैश्विक उत्पादन व रोजगार में भी सबसे अधिक योगदान इसी क्षेत्र का है. इसकी विकास दर कृषि और विनिर्माण क्षेत्रों की […]

नयी दिल्ली : सेवा क्षेत्र सामाजिक और आर्थिक विकास को महत्वपूर्ण आधार मुहैया कराता है. वैश्विक अर्थव्यवस्था में यह क्षेत्र सबसे बड़ा और तेजी से विकसित हो रहे क्षेत्र के तौर पर उभरा है. वैश्विक उत्पादन व रोजगार में भी सबसे अधिक योगदान इसी क्षेत्र का है. इसकी विकास दर कृषि और विनिर्माण क्षेत्रों की तुलना में अधिक रही है.

भारतीय अर्थव्यवस्था में भी रोजगार क्षमता और राष्ट्रीय आय में सबसे अधिक हिस्सेदारी सेवा क्षेत्र की है. पिछले दस सालों से सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी 50 फीसदी से अधिक रही है. 2013-2014 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार भी अन्य क्षेत्रों की तुलना में सेवा क्षेत्र सबसे तेज गति से उभरा है. विकास दर के आधार पर वर्ष 2001- 2012 के दौरान सेवा क्षेत्र दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है. इस दौरान इसमें विकास दर 9 फीसदी रही. इस अवधि में चीन में इस क्षेत्र की विकास दर 10.9 फीसदी रही. भारत इस क्षेत्र में तेजी से चीन के करीब पहुंच रहा है.

* वैश्विक स्तर पर भारत पीछे

वर्ष 2012 में सकल घरेलू उत्पादन के हिसाब से विश्व के शीर्ष 15 देशों में भारत का स्थान 12वां है. वैश्विक स्तर पर जीडीपी में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी 65.9 फीसदी और रोजगार में 44 फीसदी रही, यानी कुल 100 रोजगार में 44 रोजगार सेवा क्षेत्र में मिले. इसकी तुलना में भारत के जीडीपी में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी 56.9 फीसदी रही और रोजगार में मात्र 28.1 फीसदी. वित्तीय वर्ष 2013-13 में जीडीपी में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी मौजूदा कीमतों के आधार पर 57 फीसदी रही. व्यापार, होटल, रेस्तरां, यातायात, भंडारण और संचार के क्षेत्र में वृद्धि दर घट कर 3 फीसदी हो गयी, जबकि वित्त, बीमा, रियल इस्टेट क्षेत्र में सेवाओं की वृद्धि दर 12.9 फीसदी रही.

* सेवा क्षेत्र में एफडीआइ में कमी

वित्तीय वर्ष 2013-14 में सेवा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 37.6 फीसदी घट कर 6.4 बिलियन डॉलर हो गया, जबकि एफडीआइ में कुल निवेश में 6.1 फीसदी की वृद्धि हुई. वैश्विक सेवाओं के क्षेत्र में भारत का निर्यात हिस्सा वर्ष 1990 में 0.6 फीसदी था, जो वित्तीय वर्ष 2013-14 में बढ़कर 3.3 फीसदी हो गया. भारत के कुल सेवा क्षेत्र निर्यात में सॉफ्टवेयर सेवाओं के निर्यात की हिस्सेदारी 46 फीसदी रही है, लेकिन 2013-14 में इसमें 5.4 फीसदी घट कर 40.6 फीसदी हो गया. यातायात एवं पर्यटन का कुल हिस्सा 12 प्रतिशत है, जिसमें 0.4 फीसदी की कमी आयी.

– भारत में सेवा क्षेत्र का और विकास जरूरी

।। वाइएस राजन अर्थशास्त्री ।।

आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में अभी सेवा क्षेत्र की वृद्धि दर कृषि व उद्योग से अधिक है और यह कुल घरेलू उत्पादन के 50 फीसदी से अधिक है तथा यह दूसरा सबसे तेज गति से उभरता क्षेत्र है. सेवा क्षेत्र मौजूदा समय में अन्य क्षेत्रों के मुकाबले सबसे स्थिर क्षेत्र है. सार्वजनिक सेवाओं, आइटी और वित्तीय सेवाओं के विस्तार के कारण यह तेजी से बढ़ा है. कुछ क्षेत्रों में सेवा क्षेत्र की वृद्धि दर मोबाइल के बढ़ते प्रयोग के कारण 40-50 फीसदी है.

आज भारत की अर्थव्यवस्था सेवा क्षेत्र आधारित हो गयी है. भारत ने परंपरागत विकास मॉडल नहीं अपनाया और मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को दरकिनार करते हुए कृषि से सीधे सेवा क्षेत्र की ओर बढ़ गया. जबकि चीन ने कृषि से मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की ओर रुख किया. सेवा क्षेत्र में वृद्धि से कृषि और उद्योग क्षेत्र को भी सहायता मिलेगी. हालांकि मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र का विकास उतना रोजगार पैदा नहीं कर पाया है, जितना होना चाहिए. भारत की बढ़ती आबादी के साथ ही निम्न और मध्यवर्गीय परिवारों में आश्रितों की संख्या भी बढ़ रही है. ऐसे में अर्थव्यवस्था के विकास के लिए निवेश होना चाहिए. मौजूदा समय में सार्वजनिक क्षेत्र बचत से अधिक निवेश कर रहा है.

घरेलू स्तर पर लोग बचत करते हैं, लेकिन यह बढ़ नहीं रहा है, ऐसे में में इससे निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों को फायदा नहीं पहुंच पा रहा है. शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश करने की जरूरत है, खासकर महिलाओं की शिक्षा पर ताकि शिशु जन्म दर को कम किया जा सके. अगले दो दशक में भारत में बढ़ते कार्यबल को रोजगार मुहैया कराना एक बड़ी चुनौती है.

बढ़ते कार्यबल को रोजगार मुहैया कराने में सेवा क्षेत्र को महत्वपूर्ण रोल अदा करना होगा. ऐसा करने के लिए भारत मजबूत स्थिति में है. देश में अंगरेजी बोलने वालों की अच्छी संख्या है, जो बदले में वैश्विक व्यापार और वित्त को सहायता पहुंचा सकता है. केवल सेवा क्षेत्र ही गरीबी पर व्यापक असर डाल सकता है.

कृषि क्षेत्र में विकास का गरीबी पर खास असर नहीं पड़ा है. गरीबी को दूर करने के लिए लोगों को कृषि से दूसरे क्षेत्रों या फिर बेरोजगारी से रोजगार की ओर ले जाना होगा. यह कौशल विकास द्वारा ही किया जा सकता है. कौशल विकास से लोग होटल, रेस्तरां और आइटी क्षेत्र में रोजगार हासिल कर सकते हैं. आइटी को ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंचाकर लोगों के जीवन में बदलाव लाया जा सकता है. कई राज्यों में लोगों को टेलीविजन और सूचना तकनीक (आइटी) के जरिये जागरूक कर गरीबी को दूर करने में काफी हद तक मदद मिली है.

इसके अलावा कर-व्यवस्था में ढांचागत सुधार, सरकार के कर्ज को कम करने और वित्तीय अनुशासन का पालन कर आर्थिक विकास को गति दी जा सकती है. आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों में सेवा क्षेत्र की बेहतर तस्वीर दिख रही है, लेकिन कुल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में बढ़ती हिस्सेदारी के अनुपात में रोजगार के अवसर नहीं बढ़े हैं. यह चिंताजनक बात है.

सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए. वैश्विक आर्थिक हालात का भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा है, लेकिन हमारी आर्थिक नीतियां भी काफी हद तक कम होती विकास दर के लिए जिम्मेदार है. टेलीकॉम और अन्य क्षेत्रों में सरकारी नीतियों के कारण विकास पर प्रतिकूल असर पड़ा है. अगर इन क्षेत्रों की स्थिति बेहतर होती, तो सेवा क्षेत्र और मजबूत हुआ होता और इससे रोजगार के नये मौके भी सामने आते.

आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों से जाहिर होता है कि सरकार को दूसरे सुधार के दौर तत्काल शुरू करने होंगे. आर्थिक सुधारों को गति देकर ही भारतीय अर्थव्यवस्था की सेहत को सुधारा जा सकता है. उम्मीद है कि नयी सरकार आर्थिक सुधारों के साथ ही सरकारी खर्च को कम करने के लिए कड़े कदम उठायेगी.

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