नजरिया
कोरोना, मतलब वाइरस की एक नयी प्रजाति संजय दुबे
स्वतंत्र पत्रकार
पूरी दुनिया इन दिनों इसके खौफ के साये तले है। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा। एक अनजाना डर सबके भीतर बैठा है कि कहीं उसे ये हो गया तब? ऐसा तो नहीं कि उसकी जान चली जाएगी?तमाम ऐसे प्रश्न है जो हर एक दिमाग में घुमड़ रहे है। हर मस्तिष्क में ये विचार चल रहा है कि आखिर इसमें ऐसा क्या है ? जिसको लेकर सब लोग डरें हुए है। कोरोना एक विषाणु जनित रोग है। विषाणु, एक बिना कोशिका का सूक्ष्मजीव है। जो नाभिकीय अम्ल और प्रोटीन से बनता है। इसकी सबसे खास बात है कि ये अपना जीवन चक्र खुद नहीं चला सकता। इसके लिए उसे किसी जीवित कोशिका की दरकार होती है। ये हजारों सालों तक वातावरण में मौजूद रह सकता है। अभी हाल ही में हिमखंड के नीचे लगभग तीस हजार सालों से दबे एक वाइरस को पाया गया। ऐसा इसलिए संभव हो पाया क्योकि बर्फ के नीचे थोड़ी मिट्टी थी।जिसमें इसने अपने आप को सुरक्षित कर लिया। वाइरस को हम निर्जीव रूप में इकट्ठा भी कर सकते है। जिसका स्वरूप किसी क्रिस्टल जैसा हो सकता है।
हर वाइरस की अपनी कहानी होती है। कोरोना की भी है। इसका नाम इसकी शक्लों सूरत के हिसाब से एकदम सही है। ये इतनी सावधानी और गुपचुप तरीकें से अपनी कारवाई करता है कि आप हैरां हो जाएंगे। ये निर्जीव रूप में जब हमारे संपर्क में आता है तब किसी एक ही कोशिका को अपने लिए चुनता है। फिर,बड़े इत्मीनान से अपना काम शुरू करता है। मतलब,अपने ही तरह के विषाणुओं का प्रजनन। ये कोशिका के जीन में बदलाव कर देता है। जिससे कोशिका इसका आदेश मानने लगती है। ऐसा बड़ी तेजी से होता है। एक से दूसरे,चैथें,फिर वाइरस के अनुसार कोशिकाएं काम करने लगती है। नतीजा,हालात तेजी से बिगड़ने लगते है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ कोरोना ही अपना काम तेजी से कर रहा है। साइंस ने भी इसके लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है।दुनिया के सबसे तेज कम्प्यूटर समिट(आईबीएम) ने दावा किया है कि उसने इसके इलाज में एक महत्वपूर्ण प्रगति की है। उसका दावा है कि 8 हजार दवाओं का प्रयोग कोरोना वाइरस के साथ उसने किया है। जिसमें से 77 केमिकलों को उसने इसके इलाज के परीक्षण हेतु चुना है। इनका प्रयोग कोरोना के वाइरस के प्रोटीन के स्वरूप के अध्ययन पर होगा। जिसमें ये देखा जायेगा कि इसके विरूद्ध वो क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करते है। इन सारें कामों को अंजाम देने वाली टीम के अगुआ जेरेमी स्मिथ का भी मानना है कि उनका दावा ये नहीं है कि हमनें कोरोना का इलाज खोज लिया है। हा! ये जरूर है कि हम इसके करीब पहुंच सकते है। अगर ये परीक्षण सफल होता है तब इस महामारी की भयावहता के आतंक से दुनिया को राहत मिल सकेगी। इस सुपर कम्प्यूटर से आस इसलिए भी जगी है क्योंकि इसने अल्जाइमर्स का इलाज खोजा है। इसके अलावा भी दुनिया में तमाम पहले से ही मौजूद कई दवाओं के संयोजन का प्रयोग भी किया जा रहा है। जिसमें बुखार में सबसे ज्यादा दी जाने वाली पैरासिटामाल के साथ मलेरिया,एड्स,आदि दवाओं का इस्तेमाल भी किया जा रहा है। अमरीका में तो इंसानो के ऊपर वैक्सीन का भी प्रयोग हो रहा है।
वाइरस को आप साधारण सूक्ष्मदर्शी से नहीं देख सकते। इसके लिए इलेक्ट्रान सूक्ष्मदर्शी का इस्तेमाल होता है। इसे उस पर जब देखा गया तो इसकी आकृति मुकुट से मिलती जुलती मिली। लातिनी भाषा में ’कोरोना’ का अर्थ मुकुट होता है। इसी के आधार पर इसका नाम रखा गया। जैसा की सभी को पता है कि वाइरस स्तनधारी और पक्षियों को समान रूप से प्रभावित करते है। कोरोना,आरएनए निर्मित है। कुछ वाइरस डीएनए निर्मित भी होते है। कोरोना वाइरस श्वसन तंत्र को बुरी तरह प्रभावित करता है। ये परेशानी इतनी बढ़ सकती है कि पीड़ित की जान भी जा सकती है। इसी के चलते इसका खौफ सारी दुनिया पर है। वाइरस जब समान रूप से जानवर ,इंसान को प्रभावित करता है तब इससे एक दूसरे में फैलने की आशंका लगातार बनी रहती है। इसे चीन के वुहान शहर से फैला माना जा रहा है। जहां दिसंबर में ये देखा गया कि अचानक से लोंगो में निमोनिया का प्रकोप बढ़ गया है। बाद में जब इसकी जांच पड़ताल हुई तब पाया गया कि इनमें से अधिकतर लोग हुआन सी फूड मार्केट में कार्यरत है। उसमें भी ज्यादातर मछली बेचने के साथ जिंदा जानवरों के बेचने का भी कारोबार करते है। अभी तक ये आम धारणा है कि ये चमगादड़ से इंसानों में फैला है। इसके चलते अपने देश में भी ऐसी अफवाह फैली कि मांस मछली और चिकन का सेवन बंद कर देना चाहिए। क्योंकि इससे इसके फैलने की आशंका है। हांलाकि बाद में चिकन इंडस्ट्रीज को बचाने के लिए सरकार तक को आगे आकर कहना पड़ा कि भारतीय कुक्कुट उद्योग में इसका संक्रमण नहीं है। दरअसल ,ये वाइरस जब भैंस, सूअर को संक्रमित करता है तब उसे डायरिया की शिकायत हो सकती है। ऐसे में संक्रमित जानवर के मांस का सेवन किसी ने किया तो स्वाभाविक है कि वो प्रभावित होगा। ये, मुर्गे,मुर्गियों के श्वसन प्रणाली पर हमला करता है। इसी के चलते लोगे ने व्हाट्स एप पर तमाम मैसेजज फारवर्ड किए। जिसमें ऐसे मुर्गे,मुर्गियों की बीमारू और भयावह शक्लें दिखायी गयी थी जिनसे उन्हें खाना तो दूर लोंगो ने अंडा तक खरीदना बंद कर दिया। इसे देखकर लोगे को लगा कि इसे खानें से वो भी संक्रमित हो सकते है। जिसका परिणाम ये हुआ कि इस इंडस्ट्रीज को बहुत लंबा नुकसान उठाना पडा। तेलंगाना के भीतर एक गांव में एक पोल्ट्री फार्म ने ढ़ाई लाख के चिकन को फ्री में बांट दिया। ऐसा होने पर भी उसे बांटने में काफी दिक्कत हुई।
वाइरस का अंग्रेजी में शाब्दिक अर्थ विष होता है। डाक्टर एडवर्ड ने 1796 में दुनिया को बताया कि वाइरस कई जानलेवा बीमारियों का कारण हो सकता है। चेचक की वजह भी वाइरस है। इसका टीका भी इन्होंने ही खोजा। वाइरस सिर्फ नुकसानदायक नहीं होते। कुछ फायदेमंद भी होते है। जिन्हें बैक्टीरियोफेज़ या हिंदी में जीवाणुभोजी कहते है। दरअसल इस तरह के वाइरस न्यूक्लिक एसिड से बनते है। जिनके चारों तरफ प्रोटीन का घेरा होता है। ये किसी बैक्टीरिया के संक्रमण के समय बड़ी तेजी से उससे जुड़ जाते है। किसी कोशिका को बैक्टीरिया अपना आशियाना बनाता है। उसी प्रभावित कोशिका से जुड़ने के बाद ये बैक्टीरिया के सेलुलर तंत्र को अपने नियंत्रण में ले लेता है। एक बार ऐसा करने के बाद बैक्टीरियोफेज कोशिका को अपने हिसाब से चलाने लगता है। उसे अपने तरह के ही वाइरस बनाने का आदेश देता है। इसके चलते सारे बैक्टीरियों का दुष्प्रभाव रूक जाता है। इसके बारे में सर्वप्रथम दुनिया को फ्रेडरिक ट्वार्ट ने 1915में बताया। जो ब्रिटिश जीवाणु वैज्ञानिक थे। विषाणुओं को लेकर आज दुनिया काफी संवेदनशील है। इनके अध्ययन का क्षेत्र काफी व्यापक है। दरअसल ऐसा इसलिए हुआ कि इनकी वजह से दुनिया को काफी बीमारियां झेलनी पड़ी। जुकाम, इन्फुलएंजा, दस्त, खसरा, रेबीज, चेचक, पोलियो, हेपेटाइटिस, एड्स, येलो फीवर आदि है। आज भी एक डर इनका बना रहता है। इनसे फिलहाल दुनिया को इसलिए मौत वाला खौफ नहीं लगता क्योंकि इनका इलाज है। डर कोरोना से ही है। अभी तक दुनिया ने 5450 वाइरस की जन्मकुडंली तैयार की है। जिसकी प्रजाति 2000 के आस पास है। इंसान कशेरूकी प्राणी है। इसमें वो सभी प्राणी सम्मिलित आते है जिनमें रीढ़ की हड्डी पायी जाती है। इसमें लगभग 58000 तक के जीव जंतु है। अभी तक ज्ञात जंतुओं में कशेरूकियों की आबादी लगभग 5 फीसदी है। इसमें मछलियां, (जबड़ाविहीन), शार्क, सरीसृप, स्तनपायी, चिड़िया तक शामिल है। जब भी किसी कशेरूकीय प्राणी के शरीर का सामना किसी वाइरस से होता है तब उसका शरीर एंटीबाडी का निर्माण करता है। ये एंटीबाडी उस वाइरस को खत्म करने के लिए शरीर को तैयार करते है। इसी एंटीबाडी से टीका करण की शुरूआत होती है।जैसा कि कोरोना के मामलें में ही है। अभी भी इसके पहले रोगी की तलाश जारी है। क्योंकि उससे वैज्ञानिकों को काफी अहम जानकारी मिल सकती है। जैसे- उस व्यक्ति के शरीर नें इस वाइरस के खिलाफ किस तरह का व्यवहार किया। किस तरह का एंटीबाडी का निर्माण उसमें हुआ। ये तो सभी को पता है कि किसी भी रोग का टीका उसके विषाणुओं से शरीर मंे उत्पन्न हुए एंटीजन के अध्ययन के बगैर संभव नहीं है। ऐसे में जब टीका तैयार हो जाता है। तब उसे व्यक्तियों के शरीर में उसे पहलें ही डाल दिया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है कि विषाणु का हमला होने पर शरीर में मौजूदा एंटीजन की रोगरोधी प्रक्रिया स्वतः शुरू हो जाय। इसके अलावा भी और कई तमाम उपाय है जिनसे वाइरस को फैलने से रोका जाता है। कोरोना एक आरएनए वाइरस है। लिहाजा इसका इलाज खोजने में थोड़ा वक्त लग सकता है। फिर भी इतना नहीं कि जिसे देर माना जाय।
वैसे फिलहाल दुनिया कोरोना के आतंक की कहानी कह सुन रही है। ये अपने खानदान का नवोदित चेहरा है। लेकिन डर इसका उतना ही है जितना इसके पूर्वजों के आतंक का था। हैजा। ये वो नाम है जिसने दुनिया को अपने सात रूपों से खूब छकाया। शायद! इसने पूरी दुनिया को लंबे समय तक अपने कहर से कराहने पर मजबूर किया। फ्लू, इंफ्लुएंजा, प्लेग, एड्स वगैरह भी इनके सहोदर है। इनसे भी दुनिया कांपती रही हैं। वैसे देखा जाय तो एक तरह से इन सबने पूरी दुनिया को ये बताया है कि इस पृथ्वी पर अभी विज्ञान की बहुत जरूरत है। जीव विज्ञान में तमाम नए शोधों की जरूरत तब तक बनी रहेगी जब तक रोग भी लगातार अपना स्वरूप बदलते रहंगे।

