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बेकार पड़ी जमीन पर की मखाने की खेती, 1.80 लाख की लागत लगा कमाया 4.70 लाख

किसान अगर अपना नजरिया बदल लें और वैज्ञानिक तरीके से खेती करें, तो खुशहाल हो जायेंगे. खेती को बेकार तथा घाटे का सौदा मानते हों, तो ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के शोधार्थी धीरेंद्र से जरूर मिलें.

शिवेन्द्र शर्मा, कमतौल (दरभंगा) : किसान अगर अपना नजरिया बदल लें और वैज्ञानिक तरीके से खेती करें, तो खुशहाल हो जायेंगे. खेती को बेकार तथा घाटे का सौदा मानते हों, तो ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के शोधार्थी धीरेंद्र से जरूर मिलें. धारणा बदल जायेगी. इसके लिए धीरेंद्र ने बड़ा इंवेस्टमेंट नहीं किया. बस अपनी दृष्टि बदली. नतीजा हुआ कि जलजमाव की वजह से जो जमीन वर्षों से बेकार पड़ी थी, उससे अब तक इस साल ढाई लाख की आमदनी धीरेंद्र कर चुके हैं. अभी और 50 हजार लाभ की उम्मीद है. धीरेंद्र ने किसानों के साथ किसानी को बेकार कहनेवाले युवाओं के लिए भी एक नजीर पेश की है.

जो पानी था अभिशाप, वही बन गया वरदान :

धीरेंद्र सिंह जाले प्रखंड के बेलबाड़ा गांव के रहनेवाले हैं. उनकी सात बीघा खेती की जमीन में सालों भर जलजमाव रहता है. लिहाजा न तो धान की खेती सही से हो पाती थी और न ही पानी की वजह से रबी की बोआई ही संभव हो पा रही थी. यह जमीन बेकार पड़ी थी. इसमें धीरेंद्र ने मखाने की खेती की. अब तक उन्हें ढाई लाख की आमदनी हो चुकी है. कम से कम पचास हजार और आय होने की पूरी उम्मीद है. लनामिविवि से पीएचडी कर रहे धीरेंद्र ने बताया कि जलजमाव के कारण बड़की तेलियाही चौर में खेती करना फायदेमंद नहीं था. इसलिए लोगों ने खेती करनी छोड़ दी थी. हमारी भी जमीन बेकार ही पड़ी थी. इसके बाद धीरेंद्र ने मखाना अनुसंधान केंद्र के डॉ मनोज कुमार और कृषि विज्ञान केंद्र जाले के डॉ दिव्यांशु शेखर से संपर्क किया. उनके मार्गदर्शन में इस वर्ष सात बीघा खेत में मखाना की खेती की, जो वरदान साबित हुई. धीरेन्द्र ने बताया कि सात बीघा मखाना की खेती में एक लाख 80 हजार की लागत आयी थी. दो बार की बुहराई से 42 क्विंटल मखाना का उत्पादन हुआ, जो चार लाख 20 हजार में बिका है. अंतिम बुहराई में छह से सात क्विंटल मखाना और निकलने की उम्मीद है. उससे पचास से साठ हजार रुपये और मिलेंगे.

पांच बीघा में लगाया सिंघाड़ा, पहली तुड़ाई से ही निकल गयी लागत:

धीरेंद्र ने अपनी इसी तरह की पांच बीघा जमीन में सिंघाड़ा की खेती भी की है. पिछले ही सप्ताह एक बीघा खेत में पहली तुड़ाई हुई. उसकी बिक्री से लागत निकल गयी है. चार बीघा फसल की तुड़ाई होने पर कम से कम साठ हजार आमदनी होने का अनुमान है. जनवरी तक तुड़ाई का क्रम चलेगा. इससे लाखों की आमदनी होने की उम्मीद है. धीरेंद्र ने बताया कि अगले सीजन में मखान का पौधा रोपने तक मछली तैयार हो जाएगी. मखान रोपने से पहले मछली निकाल ली जाएगी.

वैज्ञानिकों का मिला पूरा साथ

धीरेंद्र ने इसके लिए 2019 के 28 दिसंबर को मखाना अनुसंधान केंद्र में एक दिन की ट्रेनिंग भी ली. नर्सरी के लिए मखाना अनुसंधान केंद्र और कृषि विज्ञान केंद्र जाले द्वारा पांच-पांच किलो मखान का बीज निःशुल्क उपलब्ध कराया गया. आवश्यकता अनुसार वैज्ञानिकों ने स्थल निरीक्षण कर जरूरी दिशा-निर्देश दिया. लॉकडाउन के दौरान वर्चुअल माध्यम से भी वैज्ञानिकों का मार्गदर्शन प्राप्त होता रहा.

posted by ashish jha

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