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पाकिस्तान की बदहवासी

पाकिस्तान न तो भारत के साथ संबंधों को बेहतर करने में दिलचस्पी रखता है और न ही दक्षिण एशिया में शांति स्थापित करने में सहयोग की इच्छा रखता है.

अंतरराष्ट्रीय आतंक के स्थायी गढ़ बन चुके पाकिस्तान की सरकार और सेना भारत को अस्थिर और अशांत करने के लिए नये षड्यंत्रों को बढ़ावा दे रही हैं. जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद पर नियंत्रण करने की भारत सरकार की सफल व प्रभावी योजना ने पाकिस्तान को बदहवास कर दिया है. दूसरी ओर इमरान खान की सरकार और उस सरकार को संरक्षण दे रही सेना पर विपक्ष के लगातार प्रदर्शनों से दबाव बढ़ता जा रहा है. भारतीय खुफिया और सुरक्षा तंत्र ने पुख्ता जानकारी जुटायी है कि पाकिस्तानी सेना विभिन्न आतंकी और चरमपंथी गिरोहों के साथ मिलकर भारत को निशाना बनाने के लिए रणनीति बना रही है. यह कोई नयी बात नहीं है क्योंकि भारत को अस्थिर करना लंबे समय से पाकिस्तानी विदेश और रक्षा नीति की प्राथमिकता है.

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने सत्ता में आने के बाद विश्व समुदाय के सामने स्वीकार किया था कि उनके देश की धरती पर कई आतंकी समूह सक्रिय हैं तथा वे भारत और अफगानिस्तान के साथ पाकिस्तान के नागरिकों को भी निशाना बनाते हैं. उन्होंने यह भरोसा भी दिलाया था कि ऐसे गिरोहों पर अंकुश लगाया जायेगा. लेकिन वे स्वयं ही अपनी सत्ता के लिए सेना पर निर्भर हैं और उनकी सरकार में भारत-विरोधी तत्वों की भरमार है. यही वजह है कि वे अपने देश के भीतर मौजूद फिरकापरस्ती के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराकर अपना बचाव करने की कोशिश करते हैं. इसका दूसरा पहलू यह है कि वे पाकिस्तान की समस्याओं को समाधान में असफल रहे हैं.

इसलिए भी वे अपनी जनता का ध्यान भटकाने की कोशिशों में लगे हैं. लेकिन भारत को चौकस रहने की आवश्यकता है क्योंकि पाकिस्तान-समर्थित आतंकी गिरोह अफगानिस्तान में तालिबान और अन्य समूहों के संपर्क में भी हैं. उनकी कोशिश है कि अमेरिका, अफगान सरकार और तालिबान के बीच शांति वार्ता के लागू होने के बाद वहां के आतंकियों को भारत के विरुद्ध इस्तेमाल किया जाए. कुछ समय से कश्मीर घाटी में मारे गये आतंकियों की पहचान से यह भी इंगित होता है कि विभिन्न गुट मिल-जुलकर हमले कर रहे हैं तथा हमलावरों में पाकिस्तानी नागरिक भी शामिल हैं.

कुछ समय से पाकिस्तानी सरकार और सेना के मंत्रियों और अधिकारियों के बयान आ रहे हैं तथा उन बयानों पर इमरान खान की भी सहमति है, उसे देखते यह स्पष्ट कहा जा सकता है कि पाकिस्तान न तो भारत के साथ संबंधों को बेहतर करने में दिलचस्पी रखता है और न ही दक्षिण एशिया में शांति स्थापित करने में सहयोग की इच्छा रखता है. उसकी हिम्मत बढ़ाने में चीन की बड़ी भूमिका है, जो सैन्य आक्रामकता से भारत को दबाव में लाने की जुगत कर रहा है. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख से जुड़े भारत के आंतरिक मामलों पर दोनों पड़ोसी देशों की जुगलबंदी भी जगजाहिर है. ऐसे में भारत को सुरक्षा बंदोबस्त बढ़ाने के साथ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी पाकिस्तान को घेरते रहना होगा.

Posted by : Pritish Sahay

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