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बोकारो स्टील प्लांट में दिखती है पंडित नेहरू के सपनों की झलक

57 साल से राष्ट्र निर्माण में अपनी महत्ती भूमिका निभा रहा बोकारो स्टील प्लांट में आधुनिक भारत के निर्माता देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के सपने की झलक है.

57 साल से राष्ट्र निर्माण में अपनी महत्ती भूमिका निभा रहा बोकारो स्टील प्लांट में आधुनिक भारत के निर्माता देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के सपने की झलक है. भारत व रूस की मित्रता के प्रतीक सेल की महत्वपूर्ण इकाई बन चुके इस कारखाने की स्थापना के पीछे बड़ी रोचक दास्तान है. आज (14 नवंबर) पंडित नेहरू के जन्मदिन पर बीएसएल की स्थापना और इसके पीछे के इतिहास की चर्चा समसामयिक है.

आधुनिक भारत के निर्माण के लिए पं नेहरू ने की रूस की यात्रा

द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद दुनिया पूंजीवाद (अमेरिका) व साम्यवाद (रूस) के दो खेमों में बंट चुकी थी. भारत को तब नयी-नयी आजादी मिली थी. देश के विकास के लिए स्टील, एयरक्राफ्ट, ऑटो इंडस्ट्री, पनबिजली परियोजना आदि उद्योगों की जरूरत थी, जिससे बुनियादी ढांचा खड़ा किया जा सके. पं. नेहरू आधुनिक भारत के मंदिरों के निर्माण के इन्हीं सपनों को लिये 1955 में सोवियत रूस की यात्रा पर निकले थे.

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1955 में मास्को से लेनिनग्राद की वृहद यात्रा पर निकले पं नेहरू

तब पं. नेहरू दिल्ली से लगभग 5000 किलोमीटर दूर याकेतरिनबर्ग शहर में थे. उनके साथ थीं भारत की भावी प्रधानमंत्री व उनकी बेटी इंदिरा गांधी. पं. नेहरू ने सोवियत रूस की यात्रा सात जून 1955 को शुरू की थी. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत रूस के इस शहर में बड़े पैमाने पर लोहा गला कर स्टील बनाया जा रहा था. नेहरू मास्को से लेनिनग्राद की वृहद यात्रा पर निकले. इस दौरान उन्होंने स्टालिनग्राद, क्रीमिया, जॉर्जिया, अस्काबाद, ताशकंद, समरकंद, अल्टाई क्षेत्र, मैग्नीटोगोर्स्क व सवर्दलोव्स्क शहरों का भ्रमण किया.

उर्लमाश कारखाने में बनी बीएसएल के लिए भारी-भरकम मशीन

सवर्दलोव्स्क शहर का नाम बदल कर अब याकेतरिनबर्ग हो गया है. सोवियत रूस की स्टील राजधानी याकेतरिनबर्ग शहर में मौजूद हैवी इंजीनियरिंग प्लांट उर्लमाश से नेहरू काफी प्रभावित हुए. बाद में उर्लमाश कारखाने में ही बोकारो स्टील प्लांट के लिए भारी-भरकम मशीन बनायी गयी.

जरूरी सामान व तकनीक रूस से मिला तो अस्तित्व में आया बोकारो प्लांट

निकिता क्रुश्चेव के दौर के रूस ने भारत की जरूरतों का सम्मान किया. भारत में दो स्टील प्लांट बनाने के लिए जरूरी साजो-सामान व तकनीक देने पर राजी हो गया. रूस के इंजीनियर बोकारो (तत्कालीन बिहार) व भिलाई (तत्कालीन मध्य प्रदेश) आये. यहां पर उन्होंने भिलाई व बोकारो स्टील प्लांट को बनाने में पूरी मदद की. भिलाई भारत का पहला आधुनिक सरकारी स्टील प्लांट है. बोकारो का कारखाना इसके बाद अस्तित्व में आया.

इंदिरा ने पिता के सपना को किया पूरा

जब इंदिरा पीएम बनीं तो उनके पास इस विजन को पूरा करने का मौका व सामर्थ्य दोनों आया. 06 अप्रैल 1968 को इंदिरा गांधी ने बीएसएल की आधारशिला रखी. प्लांट का पहला ब्लास्ट फरनेंस 02 अक्तूबर 1972 को शुरू हुआ और स्टील का उत्पादन शुरू हो गया. बोकारो इस्पात कारखाना सार्वजनिक क्षेत्र में चौथा इस्पात कारखाना है. यह सोवियत संघ के सहयोग से 1965 में शुरू हुआ. शुरू में इसे 29 जनवरी 1964 को एक लिमिटेड कंपनी के तौर पर निगमित किया गया.

आधुनिक भारत का मंदिर बनते नहीं देख पाये पं. नेहरू

नेहरू अपने जीवन काल में बोकारो स्टील प्लांट को आधुनिक भारत का मंदिर बनते हुए देखने का सपना पूरा नहीं कर पाये. वह इस प्लांट की तैयारी में ही थे कि 27 मई 1964 को उनका निधन हो गया. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने बीएसएल की फाइल को आगे बढ़ाया. 25 जनवरी 1965 को भारत व रूस के बीच समझौते पर हस्ताक्षर हुआ.

दो आधुनिक स्टील प्लांट लगने का रास्ता खुला

पं. नेहरू की इस यात्रा से भारत में भिलाई व बोकारो में आधुनिक स्टील प्लांट लगने का रास्ता खुला. दूरदर्शी नेहरू का मानना था कि स्टील अर्थव्यवस्था की ताकत का प्रतीक है. तब भारत जैसे नये-नवेले देश को ये तकनीक कोई भी सक्षम देश सहृदयता से देने को तैयार नहीं था. नेहरू ने रूस की तत्कालीन सरकार से इस बाबत बात की. इस मिशन में उन्हें कामयाबी भी मिली.

रिपोर्ट : सुनील तिवारी, बोकारो

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