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बच्चों व भाई-बहनों को कंट्रोल करना बंद करें

दक्षा वैदकर स्मृति एक मध्यमवर्गीय परिवार की बड़ी बेटी थी. घर पर माता-पिता के अलावा उससे छोटी एक बहन और एक भाई था. स्मृति ने कड़ी मेहनत कर कॉलेज की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद एमसीए किया और सॉफ्टवेयर इंजीनियर बन गयी. उसे यह यकीन था कि कड़ी मेहनत से कुछ भी मुमकिन है. उसने […]

दक्षा वैदकर
स्मृति एक मध्यमवर्गीय परिवार की बड़ी बेटी थी. घर पर माता-पिता के अलावा उससे छोटी एक बहन और एक भाई था. स्मृति ने कड़ी मेहनत कर कॉलेज की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद एमसीए किया और सॉफ्टवेयर इंजीनियर बन गयी. उसे यह यकीन था कि कड़ी मेहनत से कुछ भी मुमकिन है. उसने अपने छोटे भाई-बहनों को भी खूब पढ़ने को कहा. वह दिन भर उन्हें पढ़ाई के लिए टोका करती. उनकी परीक्षा आती, तो इसकी रातों की नींद उड़ जाती.
इस बीच, स्मृति की शादी हो गयी और वह दूसरे शहर चली गयी. अब उसकी चिंता और बढ़ गयी कि भाई-बहनों को पढ़ने के लिए कौन टोकेगा. वह ससुराल से फोन कर उन्हें डांटती, पूछती कि दिन भर क्या-क्या पढ़ा? उसने अपनी छोटी बहन का एडमिशन उसी कोर्स में करवाया, जिसे उसने किया था. वह चाहती थी कि बहन उसकी तरह सॉफ्टवेयर इंजीनियर बने और खूब पैसा कमाये, लेकिन बहन को कुछ और ही पसंद था. उसने पढ़ाई बीच में छोड़ दी और पत्रकारिता का कोर्स चुन लिया. बड़ी बहन बहुत नाराज हुई.
पहली बार किसी ने उसका कहा नहीं माना था. उसने छोटी बहन को खूब कोसा और बात करना बंद कर दिया. अब उसने भाई का एडमिशन इंजीनियरिंग में करवाया. भाई ने भी दो साल जैसे-तैसे पढ़ाई की और तंग आ कर बी कॉम करने की इच्छा जाहिर की. आखिरकार उसे इजाजत देनी पड़ी. उसे लगा कि दोनों भाई-बहनों ने अपना जीवन बर्बाद कर लिया. कुछ साल बाद छोटी बहन ने नौकरी के लिए घर छोड़ दिया और दूसरे शहर शिफ्ट हो गयी. देखते-देखते तीन-चार साल गुजर गये. आज छोटी बहन अच्छे पद पर है.
सुखी है और भाई भी बड़ी कंपनी में मैनेजर के पद पर है. स्मृति को अब अहसास होता है कि उस दौरान उसने बेवजह अपने भाई-बहनों की जिंदगी को कंट्रोल करने की कोशिश की. ससुराल में बैठ कर चिंता में खुद का खून जलाया. अब उसने यह समझ लिया है कि हर इनसान अपना भाग्य खुद लिखवा कर अाता है. आप उसे कंट्रोल कर अपने मुताबिक बदल नहीं सकते.
daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in
बात पते की..
– अपने बच्चों व भाई-बहनों को लेकर हम हमेशा यह सोचते हैं कि वह अभी निर्णय लेने के काबिल नहीं हैं. जबकि यह हमारी गलतफहमी होती है.
– आप किसी की भी पढ़ाई में जबरदस्ती रुचि नहीं जगा सकते. इसलिए हर इंसान को अपनी पसंदीदा फील्ड चुनने का हक दें. उन्हें मोटिवेट करें.

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