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पेड़ों को बच्चा माना, बदली तसवीर

सुकेश चाईबासा : एक ओर तपती धूप, प्रचंड गर्मी और दूसरी ओर लहलहाते खेत और खेतों में छोटी-छोटी नालियों से झर-झर पहुंचता है पानी. यह दुर्लभ दृश्य है सदर प्रखंड के बरकुंडिया गांव का. जी हां! बढ़ते पारे की वजह से देश भर में सूखा और जल संकट के बीच बरकुंडिया गांव में खुशहाली है. […]

सुकेश

चाईबासा : एक ओर तपती धूप, प्रचंड गर्मी और दूसरी ओर लहलहाते खेत और खेतों में छोटी-छोटी नालियों से झर-झर पहुंचता है पानी. यह दुर्लभ दृश्य है सदर प्रखंड के बरकुंडिया गांव का. जी हां! बढ़ते पारे की वजह से देश भर में सूखा और जल संकट के बीच बरकुंडिया गांव में खुशहाली है.

इसकी वजह है यहां के ग्रामीणों की मेहनत. उनका दृढ़ निश्चय. पर्यावरण को संतुलित रखने के लिए यहां के ग्रामीणों ने बेहद कारगर मुहिम चला रखी है. इसके तहत गांव का हर व्यक्ति साल में कम से कम 12 पेड़ लगाता है. उनकी देखभाल अपने बच्चे की तरह करता है. खेतों को हरा-भरा रखने के लिए ग्रामीणों ने बरकुंडिया नदी से खेतों तक छोटी-छोटी नालियां बनायी हैं.

गांव की कुल आबादी 500 से अधिक है, जबकि लगभग 200 परिवार गांव में रहते हैं. कम साक्षरतावाले इस गांव के लोग कठिन से कठिन समस्या का हल ग्रामसभा के जरिये निकालते हैं. ग्रामीणों की मेहनत की बदौलत गांव की यह बदली तसवीर पूरे देश के लिए उदाहरण से कम नहीं.

बरकुंडिया गांव में वृक्ष की कटाई पूरी तरह से प्रतिबंधित है. इसके लिए मुंडा (साव बुड़ीउली) की अध्यक्षता में ‘वृक्ष समिति’ का गठन भी किया गया है. इसमें गांव के लोग ही सदस्य हैं. समिति के आदेश के बाद ही किसी पेड़ को काटा जा सकता है. विगत तीन वर्षों में गांव में सैकड़ों पेड़ लगाये जा चुके हैं.

अहम फसल : खीरा, पपीता, बरबट्टी, मिर्च, टमाटर, बैंगन, बीम.

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