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पाकिस्तान का आतंकवाद

लश्करे-तैय्यबा और हाफिज सईद को पूरा समर्थन देने की पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और सेनाध्यक्ष परवेज मुशर्रफ की स्वीकारोक्ति कोई अचंभित करनेवाली बात नहीं है. कश्मीर समेत भारत के अन्य हिस्सों में आतंक और अस्थिरता फैलाने के लिए पाकिस्तान दशकों से चरमपंथी हिंसक गिरोहों को शह और समर्थन दे रहा है. यह पाकिस्तानी सरकार और […]

लश्करे-तैय्यबा और हाफिज सईद को पूरा समर्थन देने की पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और सेनाध्यक्ष परवेज मुशर्रफ की स्वीकारोक्ति कोई अचंभित करनेवाली बात नहीं है. कश्मीर समेत भारत के अन्य हिस्सों में आतंक और अस्थिरता फैलाने के लिए पाकिस्तान दशकों से चरमपंथी हिंसक गिरोहों को शह और समर्थन दे रहा है.

यह पाकिस्तानी सरकार और सेना की आधिकारिक नीति और रणनीति का हिस्सा है. भारत कई बार पाकिस्तान को सीधे तौर पर और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इन खतरनाक करतूतों के सबूत दे चुका है. बीते दिनों जिस तरह से हाफिज सईद को रिहाई मिली है तथा मसूद अजहर को पनाह दिया जा रहा है, उससे किसी तरह के शक-ओ-सुबहा की गुंजाइश खत्म हो जाती है. चाहे पाकिस्तान में सैनिक शासन रहा हो या चुनी हुई सरकारें सत्ता में हों, उन्होंने बार-बार कश्मीर का राग अलापा है, जबकि पाकिस्तान के कब्जेवाले कश्मीर तथा गिलगिट-बाल्टिस्तान में शोषण और दमन बदस्तूर जारी है.

कुछ दिन पहले ही अफगानिस्तान में अमेरिकी और नाटो सेना के प्रमुख जॉन निकोल्सन ने कहा है कि पाकिस्तानी सेना की कुख्यात खुफिया इकाई आइएसआइ और हक्कानी नेटवर्क का गठजोड़ बरकरार है तथा तालिबान के शीर्ष नेतृत्व को पाकिस्तान में शरण मिली है. दक्षिणी एशिया के आतंकी गिरोहों को मिल रहे पाकिस्तानी समर्थन का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान मसूद अजहर पर पाबंदी के सुरक्षा परिषद प्रस्तावों को चीन के जरिये रोक देता है और अभी हाफिज सईद ने आतंकी सूची से अपना नाम हटाने के लिए संयुक्त राष्ट्र को पत्र लिखा है.

अमेरिका और रूस के साथ चीन और कुछ यूरोपीय देशों ने समय-समय पर पाकिस्तान की धरती से सक्रिय गिरोहों की बात उठायी है, पर विडंबना यह है कि भू-राजनीतिक हितों के कारण ये देश पाकिस्तान के विरुद्ध ठोस कार्रवाई करने में विफल रहे हैं. इतना ही नहीं, इन देशों ने लगातार पाकिस्तान को आर्थिक और सामरिक मदद भी की है.

जेनरल मुशर्रफ के बयान को सिर्फ एक पूर्व शासक के बयान की तरह ही नहीं, बल्कि पाकिस्तानी सेना की सोच के रूप में भी देखा जाना चाहिए. पिछले सप्ताह इस्लामाबाद में चरमपंथी संगठनों ने सरकार को सीधी चुनौती देते हुए अपनी मांगों को मनवाया है.

इन संगठनों को सेना का परोक्ष साथ भी मिला था. भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी सरकार के अस्तित्व पर भी सवालिया निशान हैं. ऐसे में सेना और भारत-विरोधी गुटों का दबदबा और बढ़ने की आशंका है. मुशर्रफ ने जिस बेबाकी से कश्मीर में आतंकवाद को प्रश्रय देने की बात कही है, वह भारत के खिलाफ सक्रिय तत्वों के आत्मविश्वास को भी दर्शाता है.

उम्मीद है कि शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इन मुद्दों को उठायेंगी. अब देखना यह है कि ताकतवर देश पाकिस्तानी करतूतों पर सिर्फ मुंहजबानी जमा-खर्च करते हैं या कोई मजबूत फैसला लेते हैं.

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