जाप अध्यक्ष ने पहाड़ की वर्तमान परिस्थितियों के लिए ममता सरकार को उत्तरदायी ठहराया
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सरकार की नीतियों के खिलाफ हर्कबहादुर ने कराया मुंडन
जाप अध्यक्ष ने पहाड़ की वर्तमान परिस्थितियों के लिए ममता सरकार को उत्तरदायी ठहराया कालिम्पोंग : राज्य सरकार की नीतियों के विरोध में जन आन्दोलन पार्टी (जाप) के अध्यक्ष हर्कबहादुर छेत्री सहित दल के शीर्षस्थ नेताओं ने शुक्रवार को पार्टी कार्यक्रम के अंतर्गत मुंडन कराया. पार्टी सूत्र के अनुसार, 105 दिनी बंद के दौरान हिंसक […]
कालिम्पोंग : राज्य सरकार की नीतियों के विरोध में जन आन्दोलन पार्टी (जाप) के अध्यक्ष हर्कबहादुर छेत्री सहित दल के शीर्षस्थ नेताओं ने शुक्रवार को पार्टी कार्यक्रम के अंतर्गत मुंडन कराया. पार्टी सूत्र के अनुसार, 105 दिनी बंद के दौरान हिंसक घटनाओं, बंद समर्थकों में आयी निराशा, बेनतीजा आंदोलन एवं राज्य सरकार के विभिन्न क्रियाकलापों को जाप ने ‘काली नीति’ की संज्ञा देते हुए सांकेतिक विरोधस्वरूप मुंडन करवाया है.
शुक्रवार को पार्टी कार्यालय में आयोजित पत्रकार सम्मलेन को सम्बोधित करते हुए जाप प्रमुख डॉ हर्क बहादुर छेत्री ने कहा कि जहां मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने सत्ता में रहते हुए गोर्खालैंड राज्य प्राप्ति की रणनीति के रूप में सिर मुंड़वाया था, वहीं हमने बंगाल सरकार की काली नीतियों के विरोध में मुंडन करवाया है. उन्होंने पहाड़ की वर्तमान परिस्थितियों के लिए राज्य सरकार को जिम्मेवार बताया.
हर्कबहादुर छेत्री के अनुसार, हाल के आन्दोलन की शुरुआत बांग्ला भाषा को पहाड़वासियों पर थोपने से हुई. नेपाली भाषा को 1961 में राज्य स्तर पर एवं 92 में राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिलने के बावजूद बांग्ला को तीसरी वैकल्पिक भाषा के रूप में अनिवार्य कराने का प्रयास हुआ. इस तरह से राज्य सरकार ने अपने द्वारा मंजूर जीटीए के समझौते के प्रावधानों का ही उल्लंघन किया है. यह सरकार का पहला अलोकतांत्रिक कदम था. हर्कबहादुर छेत्री ने भाषा के मसले को गोली की जगह बातचीत की जाती तो गोली चलाने की नौबत नहीं आती.
विनय गुट के लिए पुलिस कर रही प्रचार : हर्क
हर्कबहादुर छेत्री ने आरोप लगाया कि राज्य की पुलिस विनय गुट के लिए प्रचार कर रही है. इसलिए मुकदमा दायर किये जाने या फिर जेल जाने के डर से अनेक निर्वाचित चेयरमैन निष्क्रिय हो गये हैं. कमजोर दिलवाले दलबदल कर विनयगुट के पक्षधर हो गए. आखिर यह किस ब्रांड का लोकतन्त्र है? राज्य सरकार इसका स्पष्टीकरण दे. श्री छेत्री के अनुसार, पहाड़ के लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है. मोटर स्टैंड एवं शहर भर में माइक लगाकर विनयगुट वाले गोजमुमो को जनसभा करने दिया जाता है. लेकिन जब जाप राज्य सरकार के विरोध में सांकेतिक मुंडन कराती है तो गाड़ी में माइक के जरिये प्रचार करने की अनुमति भी हमें नहीं दी जाती. यह राज्य सरकार के अलोकतान्त्रिक होने का सबसे बड़ा सुबूत है. गोरखा समुदाय को जातियों और उपजातियों में विभाजित करने के मकसद से सरकार ने हिल एरिया डेवलपमेंट कमेटी का गठन किया है.
क्यों नहीं हुई त्रिपक्षीय वार्ता?
यदि राज्य ने सकारात्मक भावों के साथ त्रिपक्षीय वार्ता आयोजित करवाती, तो उसमें हम भी जाते और अपनी बात रखते. राज्य सरकार अपनी बात रखती. लेकिन यहां तो सारा खेल राज्य सरकार ने खुद ही बिगाड़ दिया. प्रत्येक वार्ता में जाप की एक ही मांग रही त्रिपक्षीय वार्ता. द्विपक्षीय वार्ता में भले ही सभी दलों को बुलाया गया, पर राज्य सरकार ने केवल विनयगुट से मिलकर जीटीए चलाने का निर्णय लिया वह उसका दूसरा अहम अगणतान्त्रिक कदम था.
गोरामुमो को छठी अनुसूची दोबारा पढ़ने का सुझाव : हर्कबहादुर छेत्री ने गोरामुमो के नेतृत्व को छठी अनुसूची ठीक से पढ़ने की सलाह दी. छठी अनुसूची के तहत स्वायत्तशासन दिये जाने का विरोध करने के सवाल पर जाप प्रमुख ने कहा कि छठी अनुसूची के तहत हुए समझौते के क्लॉज 2 का प्रावधान प्रस्तावित गोर्खा हिल काउंसिल में लागू नहीं माना गया था. इस तरह से असम, मिजोरम, त्रिपुरा एवं मेघालय में जो है वह यहां लागू नहीं हो सकता है. मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा में हस्तांतरित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार न्यस्त है. यहां तक कि राज्य सरकार के विधान को बायपास कर पूरी तरह नया कानून भी बनाया जा सकता है. लेकिन वह प्रावधान यहां लागू नहीं होने की बात समझौते में स्पष्ट है. अगर ये प्रावधान पहाड़ के लिये लागू नहीं होंगे तो छठी अनुसूची केवल कागज़ का टुकड़ा रह जाता है. छेत्री ने कहा कि सुभाष घीसिंग द्वारा प्रस्तावित छठी अनुसूची की व्यवस्था में ट्राइबल को 10 एवं नन ट्राइबल को 15 सीट आरक्षित था जिसका मतलब 30 प्रतिशत आबादी को 10 एवं 70 प्रतिशत को 15 सीट आरक्षित किया जाना न्यायसंगत नहीं है. इसके अलावा 6 कार्यकारिणी में, जेनरल वर्ग से प्रतिनिधत्व देने वाले 2 एवं 4 ट्राइबल वर्ग से चुना जाना था. जिसका मतलब 30 प्रतिशत आबादी से 4, 70 प्रतिशत से 2 प्रतिनिधियों का चुना जाना था. यह कहां का न्याय है. उस व्यवस्था में लीडर का बेटा लीडर के रुप में मनोनीत हो सकता है. ऐसी व्यवस्था से भाई-भाई में मारपीट एवं खून खराबा होने का अंदेशा रहेगा.
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