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रांची : ज्ञानी कब मूर्ख बन जाये, यह किसी को पता नहीं चलता : संगीता किशोरी

रांची : सुश्री संगीता किशोरी ने कहा कि ज्ञान प्राप्त करने के बाद मनुष्य को उसे संभाल कर रखना व सत्य की राह पर चलना भी कठिन कार्य है. भगवान शिव ने भी कहा है कि ज्ञानी कब मूर्ख बन जाये, इसका पता नहीं है. आज के समय मेें ज्ञानियों को मूर्ख बनते समय नहीं […]

रांची : सुश्री संगीता किशोरी ने कहा कि ज्ञान प्राप्त करने के बाद मनुष्य को उसे संभाल कर रखना व सत्य की राह पर चलना भी कठिन कार्य है. भगवान शिव ने भी कहा है कि ज्ञानी कब मूर्ख बन जाये, इसका पता नहीं है. आज के समय मेें ज्ञानियों को मूर्ख बनते समय नहीं लग रहा है. ऐसे में अपने-आप पर संयम रखना भी तपस्या की तरह है. वह श्रीशिव मंडल द्वारा पहाड़ी बाबा के 21वें वार्षिकोत्सव पर रातू राेड स्थित जैन स्मृति भवन में आयोजित श्रीराम कथा के दूसरे दिन प्रवचन कर रही थीं.
उन्होंने कहा कि जिससे शिव रूठ जाते हैं, उससे पूरा संसार रूठ जाता है. आपके साथ सबकुछ उलटा होने लगता है. इसलिए भगवान शिव की कृपा बनी रही और मां पार्वती का आशीर्वाद मिलता रहे, ऐसा काम करना चाहिए. मां ही ऐसी होती है, जो अपने बच्चे में कभी भेदभाव नहीं करती है. यहां तक कि भगवान को भी जब संसार का पालन करना होता है, तो वे मां की कोख से ही जन्म लेते हैं.
जब जीवन में श्रद्धा बलवान होने लगता है, तब अपने-आप भक्त के जीवन में संत का आगमन होने लगता है. वहीं, संत मनुष्य को शिव तक पहुंचाने का सही मार्ग बताते हैं. सुश्री संगीता किशोरी ने सती कथा के बाद पार्वती के जन्म, तप व विवाह के प्रसंग पर भक्तों को विस्तार से जानकारी दी.
शिक्षा व सतसंग से दूर-दूर तक नाता नहीं होने के बावजूद आप अध्यात्म से कैसे जुड़ गयीं?
हमारा गांव सुदूर क्षेत्र में है, जहां लड़कियों को शिक्षा प्राप्त करना विरले ही होता है. धर्म व अध्यात्म की पुस्तकों से उनका नाता नहीं हाेता है, लेकिन भगवान श्रीराम की कथा ने मुझे मेरे जीवन के महत्व को बता दिया. वर्ष 2008 में हमारे गांव में श्रीराम कथा का आयोजन किया गया था. मैं उस समय सातवीं कक्षा में थी. राज्य संपोषित उच्च विद्यालय में पढ़ाई करती थी.
हम भी शाम को प्रवचन सुनने गये थे, वहां जाकर बहुत अच्छा लगा. मेरे मन में भी अयोध्या भ्रमण करने का मन किया. इसके बाद अयोध्या से आये संत ने (परिवार से अनुमति मिलने के बाद) मुझे अपने साथ लेकर अयोध्या गये. वहां जाने पर मुझे भी सत्संग से जुड़ने का मन किया. वहां स्वामी शरण दास जी से दीक्षा ली. प्रवचन की शिक्षा शुरू की. धाम का भ्रमण किया. आठ माह तक धार्मिक व अाध्यात्मिक ज्ञान को जाना. इसकेे बाद गुरु कृपा से प्रवचन शुरू किया.
सांसारिक जीवन में रहते हुए भगवान को कैसे प्राप्त किया जा सकता है?
भगवान तो सब जगह हैं, आप उसे कहीं भी प्राप्त कर सकते हैं. मैं जब अयोध्या में अध्यात्म का प्रशिक्षण ले रही थी, तब मेरे पिता को ब्रेन हैम्ब्रेज हो गया. कुछ दिन बाद उनकी मौत हो गयी. मेरी मां भी छह माह के अंदर भगवान के पास चली गयी. घर में बड़ी बेटी होने के नाते मेरे ऊपर दो भाई व बहन की जिम्मेदारी आ गयी. इसके बाद भी मैं विचलित नहीं हुई. मैं प्रभु का सुमिरन करती रही और लोगों को उनके जीवन की महत्ता की जानकारी देती रही. भगवान तक पहुंचने की राह बताती रही. भगवान के होने का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है.
प्रभु तक पहुंचने का ज्ञान देनेवाले भी आज अपने रास्ते से भटक गये हैं, आप इसे किस रूप में लेती हैं?
मैंने अपने प्रवचन में भी स्पष्ट किया है कि ज्ञानी कब मूर्ख हो जाये, इसका पता भगवान तक को नहीं है. हमें आश्रम में संतों के माध्यम से अच्छी बातें बतायी जाती हैं. भगवान से जुड़ने की सही राह दिखायी जाती है. इसके बाद भी जब कोई राह बदल ले, तो क्या कहा जा सकता है.

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