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डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे सरकारी अस्पताल

2011 की जनगणना के आधार पर राज्य में 20760 स्वास्थ्य उपकेंद्रों की आवश्यकता है. 18992 ही की स्वीकृति मिली है. राज्य के सरकारी अस्पतालों में मरीजों की संख्या तो बढ़ी, पर इंतजाम कम पड़ने लगे. अस्पतालों में अब भी डॉक्टरों की आदर्श स्थिति नहीं पहुंची है. दवाओं की आपूर्ति में सुधार बाकी है.11 हजार मरीज […]

  • 2011 की जनगणना के आधार पर राज्य में
  • 20760 स्वास्थ्य उपकेंद्रों की आवश्यकता है.
  • 18992 ही की स्वीकृति मिली है.
राज्य के सरकारी अस्पतालों में मरीजों की संख्या तो बढ़ी, पर इंतजाम कम पड़ने लगे. अस्पतालों में अब भी डॉक्टरों की आदर्श स्थिति नहीं पहुंची है. दवाओं की आपूर्ति में सुधार बाकी है.11 हजार मरीज हर माह एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर पहुंच रहे हैं, पर उसकी संख्या में न तो डॉक्टर हैं, न ही नर्स और आधुनिक सुविधाएं. संस्थागत प्रसव की व्यवस्था भी पूरी नहीं हो सकी है.
यह माना जा रहा है कि प्रति साल करीब 26-28 लाख प्रसव होते हैं, इनमें 16 लाख प्रसव ही संस्थागत कराये जाते हैं. शेष गर्भवती या तो निजी अस्पतालों में या अन्य सेवाएं प्राप्त कर रही हैं.संरचना स्तर पर भी अभी तक राज्य में बड़ा गैप बना हुआ है. 2011 की जनगणना के आधार पर राज्य में 20760 स्वास्थ्य उपकेंद्रों की आवश्यकता है. इनमें 18992 ही की स्वीकृति मिली है. कार्यरत स्वास्थ्य उपकेंद्रों की स्थिति खराब है. इसी तरह से 3460 अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की आवश्यकता है जिनमें 2792 की स्वीकृति है.
आयुष चिकित्सकों से यह केंद्र संचालित किया जा रहा है. इसी तरह से 865 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की आवश्यकता है जबकि 466 स्वीकृत हैं और महज 67 कार्यरत हैं. राज्य में 63 अनुमंडलीय अस्पतालों की आवश्यकता है जिनमें 55 की स्वीकृति है जबकि 38 ही कार्यरत हैं.
राज्य में आबादी के अनुसार 21 मेडिकल कॉलेजों की आवश्यकता है जिसमें निजी व सरकारी 13 मेडिकल कॉलेज स्वीकृत हैं और 10 कार्यरत हैं. अभी राज्य में आठ मेडिकल कॉलेजों की आवश्यकता है. इसी तरह से सरकारी अस्पतालों के लिए नियमित और कंट्रेक्ट डाक्टरों की संख्या करीब पांच हजार है.
बोले स्वास्थ्य मंत्री दूर होगी डॉक्टरों की कमी
स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने बताया कि राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं. अस्पतालों में बेडों की संख्या बढ़ायी जा रही है. सरकार द्वारा 11 नये मेडिकल कॉलेजों की स्वीकृति दी गयी है. साथ ही 3100 डॉक्टरों की नियुक्ति के लिए तकनीकी चयन आयोग को अनुशंसा भेजी जा रही है.
सीवान :67% पद रिक्त
सूबे के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय के गृह जिले के सरकारी अस्पतालों में 67 प्रतिशत डॉक्टरों के पद रिक्त हैं. इससे सहज अंदाज लगाया जा सकता है कि सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने आने वाले गरीब लोगों को किस प्रकार की सुविधाएं मिलती हैं. जिले में कुल 234 डॉक्टरों के पद रिक्त हैं. विभाग ने इसके लिए 77 डॉक्टरों का योगदान कराया है.
इनमें से चार डॉक्टर स्टडी लीव तथा सात डॉक्टर बिना सूचना दिये ही लंबी छुट्टी पर हैं. जो डॉक्टर उपलब्ध हैं, वे सरकारी अस्पतालों से अधिक अपने निजी क्लीनिकों में समय देते हैं. कुछ माह पहले जिलाधिकारी ने हसनपुरा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का रात में निरीक्षण किया तो मुख्य गेट पर ताला लगा हुआ पाया.
मुजफ्फरपुर : छह के बजाय, ढाई घंटे ही डॉक्टर करते हैं ड्यूटी
उत्तर बिहार के सबसे बड़े अस्पताल एसकेएमसीएच को एम्स का दर्जा दिलाने के लिए प्रयास चल रहा है, जबकि अस्पताल की स्थिति दिन-ब-दिन और खराब हो रही है. इसके मुख्य जिम्मेवार सीनियर डॉक्टर हैं. इनकी कर्तव्यहीनता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ओपीडी में इनकी ड्यूटी छह घंटे की होती है, लेकिन अधिकतर डॉक्टर ढाई से तीन घंटे ही ड्यूटी करते हैं.
इलाज नहीं होने के कारण अक्सर मरीज हंगामा भी करते हैं. यहां आने वाले मरीजों का इलाज जूनियर डॉक्टरों के ही भरोसे है. आेपीडी भी इन्हीं के सहारे चलता है. इमरजेंसी केस को भी यही देखते हैं. अस्पताल के ओपीडी में रोज दो हजार से अधिक मरीज आते हैं.
इन मरीजों को जूनियर डॉक्टर व इंटर्न ही देखते व भर्ती करते हैं. इनमें से प्रतिदिन सौ मरीज को भर्ती किया जाता है. ओपीडी में मरीजों के अधिक होने के कारण इंटर्न व जूनियर डॉक्टरों पर दबाव रहता है.
एसकेएमसीएच में 14 विभागों का ओपोडी चलता है. इनमें मेडिसिन, टीबी एंड चेस्ट, स्किन, पीएसएम, शिशु, सर्जरी, हड्डी, आंख, इएनटी, गायनिक, साइकेट्री, डेंटल, नेफ्रोलॉजी व न्यूरोलॉजी विभाग का ओपीडी चलता है. इन विभागों में प्राध्यापक, सह प्रध्यापक व सहायक प्राध्यापक के पद पर 60 डॉक्टर तैनात हैं.
लंबे इंतजार के बाद होता है ऑपरेशन
डॉक्टरों की कमी के कारण मरीजों को ऑपरेशन के लिए लंबे समय तक
इंतजार करना होता है.आर्थो विभाग में 15 डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन यहां आठ ही डॉक्टर कार्यरत हैं. मरीजों के अनुपात में डॉक्टर के नहीं होने के कारण मरीज एक महीने तक अस्पताल में अपनी बारी का इंतजार करते रहते हैं.
210 डॉक्टर के हैं पद
एसकेएमसीएच में डॉक्टरों के स्वीकृत पद 210 हैं, जिनमें 157 खाली हैं. इसके अलावा अस्पताल में तकनीशियन के लिए 222 पद स्वीकृत हैं, लेकिन 60 तकनीशियन ही कार्यरत है. इसमें से 28 नियमित व 32 संविदा पर तैनात हैं.
…वहीं स्टाफ नर्स के लिए 668 पद स्वीकृत हैं. इनमें 243 नर्स नियमित व 16 नर्स संविदा पर कार्यरत हैं. वहीं जूनियर डॉक्टर व सीनियर डॉक्टर के चार सौ से अधिक पद स्वीकृत हैं, लेकिन अस्पताल में बहुत ही कम कार्यरत हैंं.
157 पद खाली होगी कार्रवाई
डॉक्टर के आने व जाने की हाजिरी बनायी जा रही है. ड्यूटी पूरी नहीं करने वाले डॉक्टरों पर कार्रवाई की जायेगी.
– डॉ सुनील शाही, अधीक्षक ,एसकेएमसीएच
डॉक्टर की सौ फीसदी उपस्थिति के लिए सभी विभाग में बायोेमेट्रिक लगा दिया गया है. सभी डॉक्टर को मशीन से ही हाजिरी बनाने का निर्देश दिया गया है.
– डॉ विकास कुमार, प्राचार्य , एसकेएमसीएच
आरा :सुविधाओं का अभाव
जिले के एक मात्र बड़ा अस्पताल सदर अस्पताल है, जहां सुविधाओं का घोर अभाव है. 26 डॉक्टरों के भरोसे यह अस्पताल चल रहा है. जबकि 38 डॉक्टरों की सदर अस्पताल में प्रतिनियुक्ति है, जिसमें 12 डॉक्टर वर्तमान में छुट्टी पर हैं, जिसके कारण अस्पताल में मरीजों को समुचित इलाज का लाभ नहीं मिल रहा है.
बिहारशरीफ :डॉक्टरों की कमी से परेशानी
पीएचसी की बात तो छोड़िए, जिला मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल में भी डॉक्टरों की काफी कमी है. सदर अस्पताल में डॉक्टरों के 32 पद स्वीकृत हैं जिनमें महज 18 चिकित्सक ही फिलहाल कार्यरत हैं. इसी प्रकार जिले के पीएचसी,रेफरल ,अनुमंडलीय व एपीएचसी का हाल है.
यहां पर स्वीकृत पद के अनुसार डॉक्टर पदस्थापित नहीं हैं. इस तरह डॉक्टरों की कमी से यहां पर इलाज कराने आने वाले रोगियों हर दिन परेशानी झेलनी पड़ती है.
सदर अस्पताल में कई विशेषज्ञ रोगों के चिकित्सक पदस्थापित नहीं हैं. विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी के कारण इलाज पहुंचने वाले मरीजों को हर दिन फजीहत का सामना करना पड़ रहा है.
यहां पर ह्रदय रोग,किडनी व चर्म ,इएनटी आदि रोगों के विशेषज्ञ चिकित्सक पदस्थापित नहीं हैं. चर्म रोग के मरीज हर दिन अस्पताल में इलाज के लिए भटकते नजर आते हैं. सदर अस्पताल में इन दिनों अल्ट्रासाउंड की सुविधा नहीं है. पिछले करीब तीन साल से अधिक समय से यह सेवा रोगियों को नहीं मिल पा रही है.
बक्सर :अस्पताल में 31 में से 21 पद रिक्त
जिला अस्पताल में स्त्री रोग विशेषज्ञ एक भी नहीं है. सरकारी आंकड़ों पर गौर किया जाये तो पूरे जिले में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं हैं. जबकि जिला अस्पताल में केवल एक पुरुष सर्जन कार्यरत है. वहीं सरकार का साफ निर्देश है कि आउटडोर के समय सभी चिकित्सकों को अस्पताल आना अनिवार्य है, लेकिन सदर अस्पताल में रोस्टर के अनुसार कार्य करने वाले चिकित्सकों के अलावा अन्य चिकित्सक अस्पताल आने के बजाय अपने निजी प्रैक्टिस पर ज्यादा ध्यान देते हैं. एक तो अस्पताल में चिकित्सकों की कमी एवं दूसरी ओर समय से चिकित्सकों का नहीं आना, ऐसे में मरीजों का भरोसा अस्पताल प्रशासन से कम हो रहा है.
गया :समय पर मरीजों को उपचार नहीं मिल रहा
सदर, प्रभावती व प्रखंड के अस्पतालों में व्यवस्था एएनएम व चतुर्थ वर्गीय कर्मचारियों के भरोसे है. सभी अस्पतालों में समय पर चिकित्सकों की मौजूदगी नहीं होने से मरीजों को उपचार नहीं मिल पा रहा है. इन अस्पतालों में सुबह पहुंचे मरीजों को हर रोज कम से कम दो घंटे का इंतजार करना ही होता है.
गर्मी हो या ठंड का मौसम सुबह 10-11 बजे से पहले डाॅक्टर साहब अस्पताल पहुंचते ही नहीं. सभी को अपने प्राइवेट क्लिनिक की फिक्र पहले रहती है. मगध मेडिकल काॅलेज की स्थिति यह है कि अगर रात में कोई मरीज पहुंचे, तो उसका इलाज जूनियर चिकित्सकों के ही भरोसे होगा.
स्थिति गंभीर रहने पर भी कोई वरीय चिकित्सक देखने के लिए नहीं होंगे. अस्पताल के ही कर्मचारी के मुताबिक रात में वरीय चिकित्सकों की ड्यूटी तो रहती है, लेकिन वह नहीं रहते.
गोपालगंज :डॉक्टरों के आने का टाइम-टेबल नहीं
सदर अस्पताल में एक डॉक्टर को एसएनसीयू और इमरजेंसी करनी पड़ती है. महिला विशेषज्ञ डॉक्टरों की भी कमी है. महिलाओं के लिए पर्याप्त संख्या में महिला स्त्री रोग विशेषज्ञ नहीं है, जो है उनके आने-जाने का कोई टाइम-टेबल नहीं है.
सदर अस्पताल में करीब 35 डॉक्टरों की जगह 14 से 15 डॉक्टर हैं, जिनके भरोसे सदर अस्पताल चल रहा है. सदर अस्पताल में पैथोलॉजी विशेषज्ञ, रेडियोलॉजिस्ट, स्किन स्पेशलिस्ट, सर्जन चिकित्सक नहीं हैं.
दो फिजिशियन डॉक्टर का पद भी रिक्त पड़ा है. सिविल सर्जन डॉ अशोक कुमार चौधरी के मुताबिक तीन चिकित्सक दो माह पूर्व सेवानिवृत्त हो गये. चिकित्सकों का आधे से अधिक पद रिक्त हैं. जितने डॉक्टर हैं, उनसे काम लिया जा रहा है. सीएस ने कहा कि डॉक्टरों की ड्यूटी की लगातार मॉनिटरिंग की जा रही है. ड्यूटी की तसवीर हर रोज लेकर एप पर अपलोड की जा रही है.

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