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अशोक घोष का राजकीय सम्मान के साथ होगा अंतिम संस्कार

शोक. दिवगंत फॉरवर्ड ब्लॉक नेता अशोक घोष को श्रद्धांजलि देने पहुंचीं सीएम ने जतायी इच्छा फॉरवर्ड ब्लॉक के दिवंगत नेता अशोक घोष का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जायेगा. उनको श्रद्धांजलि देने के लिए पीस हेवन पहुंची मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने फॉरवर्ड ब्लॉक के नेताआें से बातचीत की आैर श्री घोष को […]

शोक. दिवगंत फॉरवर्ड ब्लॉक नेता अशोक घोष को श्रद्धांजलि देने पहुंचीं सीएम ने जतायी इच्छा
फॉरवर्ड ब्लॉक के दिवंगत नेता अशोक घोष का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जायेगा. उनको श्रद्धांजलि देने के लिए पीस हेवन पहुंची मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने फॉरवर्ड ब्लॉक के नेताआें से बातचीत की आैर श्री घोष को पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई देने की इच्छा जतायी.
कोलकाता : मुख्यमंत्री ने फॉरवर्ड ब्लॉक नेताआें से उनके अंतिम संस्कार की योजनाआें की पूरी जानकारी भी ली आैर हरसंभव मदद का आश्वासन दिया. मुख्यमंत्री के साथ कोलकाता के मेयर शोभन चटर्जी व सांसद सुब्रत बक्सी भी थे. वयोवृद्ध नेता की इच्छा के अनुसार उनके शव को पुरुलिया के सुइसा गांव में दफन किया जायेगा. इससे पहले दोपहर के वक्त जैसे ही अशोक घोष की मौत की सूचना सामने आयी. मुख्यमंत्री ने फौरन अपने ट्वीटर अकाउंट पर शोक प्रकट करते हुए लिखा कि अनुभवी राजनीतिज्ञ अशोक घोष की मौत की खबर से काफी दुख पहुंचा है.
उनके परिवार व दोस्तों को मेरी तरफ से संवेदना. शुक्रवार को अशोक घोष का पार्थिव शरीर पीस हेवन में ही रहेगा. शनिवार सवेरे नौ बजे से उनके शव को हेमंत बसु भवन में रखा जायेगा, जहां आम लोग उन्हें श्रद्धांजलि देंगे. शनिवार को दोपहर एक बजे हेमंत बसु भवन से श्यामबाजार तक एक शोक रैली निकाली जायेगी. शनिवार रात उनका पार्थिव शरीर पुरुलिया के फॉरवर्ड ब्लॉक जिला दफ्तर में ले जाया जायेगा आैर शनिवार सवेरे सुइसा स्थित नेताजी आश्रम में उनकी वसीयत के अनुसार उनके शव को दफन कर दिया जायेगा.
अशोक घोष से संबंधित महत्वपूर्ण बातें
आजादी की लड़ाई में योगदान देने वाले फॉरवर्ड ब्लॉक के वयोवृद्ध नेता अशोक घोष के निधन से पूरे राजनीतिक क्षेत्र में जैसे शोक व्याप्त है. उनके निधन से केवल बंगाल ही नहीं, बल्कि देश की राजनीति का जैसे एक अध्याय समाप्त हो गया. दिवगंत नेता अशोक घोष के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें :
देश की आजादी की लड़ाई में अशोक घोष शामिल हुए थे. आजादी के पहले अशोक घोष को तीन दफा गिरफ्तार किया गया था.
1940 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आदर्शों से प्रभावित होकर उन्होंने पार्टी का दामन थामा.
1951 में फारवर्ड ब्लॉक के बंगाल इकाई के महासचिव चुने गये. करीब 65 वर्षों के लंबे समय तक वह उपरोक्त पद पर बने रहे. इतने लंबे समय तक किसी राजनीतिक दल का शीर्ष पद संभालने की वजह से अशोक घोष का नाम लिमका बुक ऑफ रिकार्ड्स में शामिल है.खाद्य आंदोलन समेत कई जन आंदोलनों में अशोक घोष की भूमिका महत्वपूर्ण थी.
करीब 94 वर्ष की आयु में उन्होंने अंतिम सांस ली.संक्षिप्त जीवन परिचय : सात साल की उम्र से राजनीति में रुचि
वयोवृद्ध नेता अशोक घोष का निधन से केवल फॉरवर्ड ब्लॉक ही नहीं, बल्कि लोकतंत्र व धर्मनिरपेक्षता के समर्थक तमाम लोगों के बीच शोक है. अशोक घोष का जन्म दो जुलाई 1923 में हुगली के बेगमपुर गांव में हुआ था. कार्य को लेकर अशोक घोष के पिता चारूचंद्र घोष हुगली के चुंचुड़ा आये थे. उनकी माता का नाम हरिमति देवी था. माता-पिता के तीन बेटों और तीन बेटियों में अशोक घोष तीसरी संतान थे.
महारैली में जाने पर घर में खायी थी डांट : बचपन से ही उनके मन में देशप्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी थी. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महज सात वर्ष की आयु में यानी 1930 में वह कांग्रेस की महारैली में शामिल हो गये. महारैली में शामिल होने की वजह से परिजनों की डांट भी खानी पड़ी थी.
वर्ष 1934 में हुगली कॉलेजियेट स्कूल में पांचवीं कक्षा में भरती के लिए होने वाली परीक्षा में आंखों की रोशनी कमजोर होने की वजह से उन्हें सोम ट्रेनिंग अकादमी में भरती होना पड़ा. वर्ष 1940 में कक्षा दसवीं की परीक्षा के समय श्रीरामपुर वाल्स अस्पताल में आंखों की जांच कराने के बाद से ही उन्हें चश्मा पहनना जरूरी हो गया. आंखों की रोशनी कमजोर होने की वजह से कक्षा दसवीं की परीक्षा उतीर्ण करने में काफी परेशानी हुई. वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आदर्शों से काफी प्रेरित थे.
विपल्वाचार्य ज्योतिषचंद्र घोष के संपर्क में आकर अशोक घोष नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आदर्शों को ग्रहण करते हुए फॉरवर्ड ब्लॉक में शामिल हो गये. जानकारों के अनुसार, पार्टी में शामिल होने के बाद दो बार नेताजी सुभाष चंद्र बोस से मिलने के बाद वे काफी उत्साहित हुए. जानकारों का कहना है कि यही ऐसा दौर था जब संभवत: अशोक घोष ने अपना पूरा जीवन देश और देशवासियों के प्रति समर्पित करने का जैसे मन बना लिया था.
19 मार्च, वर्ष 1940 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आह्वान पर अशोक घोष ने बिहार के रामगढ़ में आयोजित सम्मेलन में हिस्सा लिया.
गिरफ्तार भी हुए अशोक घोष : फॉरवर्ड ब्लॉक में शामिल होने के महज एक वर्ष बाद देश में पार्टी को अवैध करार दे दिया गया. ब्रिटिश सरकार की ओर से फॉरवर्ड ब्लॉक को अवैध करार दिये जाने के बाद भी अशोक घोष ने पार्टी कार्य नहीं छोड़ा. 22 जून वर्ष 1941 में उन्हें गिरफ्तार किया गया था. चुंचुड़ा थाने में करीब तीन दिनों तक रखे जाने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया. 1942 में ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में वह शामिल हो गये. आंदोलन में शामिल होने के बाद उन्हें एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया गया. वह करीब छह महीने तक दमदम सेंट्रल जेल में बंद रहे.
आये बड़े नेताओं के संपर्क में : ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन का हिस्सा बनने और गिरफ्तारी के बाद वे विपिन बिहारी गांगुली, हेमंत बसु जैसे दिग्गज नेताओं के साथ उनका परिचय हुआ. ऐसे दिग्गज नेताओं से संपर्क में आने के बाद देश की आजादी की लड़ाई को लेकर उनके मनोभाव को और मजबूती मिली.
नहीं थमा गिरफ्तारी का दौर :’भारत छोड़ो’ आंदोलन के दौरान गिरफ्तारी के करीब छह महीने बाद जेल से रिहा होने पर अशोक घोष कुछ दिनों तक छिपे हुए थे. किसी को उनके बारे में पता नहीं था. छिपे होने का यह मतलब नहीं था कि उन्होंने देश की आजादी की लड़ाई बंद कर दी थी. यही वजह है कि 1943 में उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया.
एक तरह से माने तो उनकी गिरफ्तारी का सिलसिला जैसे नहीं थम रहा था. इस बार गिरफ्तारी के बाद उन्हें प्रेसिडेंसी जेल में रखा गया. यहां भी उनके इरादे और भी मजबूत हुए. इसकी वजह है कि प्रेसिडेंसी जेल में वह प्रफुल्ल चंद्र सेन के संपर्क में आये. करीब दो वर्षों तक जेल में रहने के बाद वर्ष 1945 के नवंबर महीने में वह रिहा कर दिये गये. पुलिस की नजरों से बचने के लिए वे कोलकाता आ गये. वहां से पार्टी के निर्देश पर वे दक्षिण 24 परगना के इलाके में आ गये. इसके बाद मिर्जापुर मेस से वे पार्टी के कार्यों में जुट गये. उन्होंने विशेष तौर पर हुगली जिला के लोगों से संपर्क साधा था. वे आइएनए कैदियों की रिहाई के लिए होने वाले आंदोलन में भी शामिल रहे.
करीब 65 वर्षों तक महासचिव के पद पर रहे आसीन : पार्टी के कार्यों में अशोक घोष की भूमिका अहम रही है. 1946 में जबलपुर में आयोजित अखिल भारतीय सम्मेलन में उन्होंने हिस्सा लिया. आजादी के बाद 1951 में वह फारवर्ड ब्लॉक की बंगाल इकाई के महासचिव चुने गये. करीब 65 वर्षों के लंबे समय तक वह पार्टी की बंगाल इकाई के महासचिव के पद पर बने रहे थे. इस दौरान उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा. केवल सांगठनिक पद की जिम्मेदारी ही निभायी.
वामपंथी दलों की एकता के थे पक्षधर : जानकारों का कहना है कि अशोक घोष तमाम वामपंथी विचारधारा वाले दलों की एकजुटता व एकता के पक्षधर थे. 1957 में उन्होंने तमाम वामपंथी दलों की एकजुटता का कार्य शुरू किया. इसी का परिणाम हुआ कि वामपंथी निर्वाचनी कमेटी का गठन हुआ. वषज्ञ 1958 में पुरुलिया में अशोक घोष ने संगठन को मजबूत करने के कार्यों पर जोर दिया. उनके नेतृत्व में वहां कानून भंग आंदोलन भी चलाया गया.
कई आंदोलनों में उनकी भूमिका रही अहम : जनहितों से संबंधित कई बड़े आंदोलनों में फारवर्ड ब्लॉक के नेता अशोक घोष की भूमिका काफी अहम रही. 1959 में खाद्य आंदोलन के दौरान उनके नेतृत्व में राज्यव्यापी अभियान भी चलाया गया था. इसके अलावा ट्राम किराया वृद्धि आंदोलन, शिक्षक आंदोलन, बंग-बिहार संयुक्त विरोधी आंदोलन, महंगाई के खिलाफ हुए आंदोलन में भी उनका योगदान शीर्ष रहा.
वर्ष 1960 में नयी दिल्ली में विरोध सभा के दौरान उन्हें गिरफ्तार किया गया था. वर्ष 1966-1967 में वामपंथी ताकतों को एकजुट करने पर उन्होंने फिर जोर दिया. फलस्वरूप कांग्रेस विरोधी दलों की ओर से संयुक्त फ्रंट का गठन हुआ. इसके बाद वाममोरचा गठन में भी उनकी भूमिका काफी अहम रही. इस कार्य में दिवगंत माकपा नेता ज्योति बसु, प्रमोद दासगुप्ता, विश्वनाथ मुखर्जी, माखन पाल के साथ उन्होंने कंधे से कंधा मिला कर काम किया. 1977 के बाद भी राज्य में हुए कई वामपंथी आंदोलनों में फारवर्ड ब्लॉक के नेता अशोक घोष का योगदान महत्वपूर्ण रहा. तीन मार्च, 2016 को अशोक घोष के निधन से वामपंथी आंदोलनों को गहरा झटका लगा है.
राज्यपाल ने जताया शोक
फारवर्ड ब्लॉक के वयोवृद्ध नेता अशोक घोष के निधन पर राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी ने गहरा शोक व्यक्त किया है. गुरुवार को महानगर के एक निजी अस्पताल में श्री घोष का निधन हो गया. वे 94 वर्ष के थे. वे लगभग सात दशक से फारवर्ड ब्लॉक के साथ सक्रिय राजनीति से जुड़े हुए थे. नेताजी सुभाष चंद्र बोस से प्रभावित होने के बाद श्री घोष ने कांग्रेस पार्टी को छोड़कर फारवर्ड ब्लॉक का दामन थामा था और तब से फारवर्ड ब्लॉक पार्टी के साथ जुड़ कर नेताजी के आदर्शों व नीति पर पार्टी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी.
वामपंथी दलों ने जताया शोक
फॉरवर्ड ब्लॉक के वरिष्ठ नेता अशोक घोष के निधन पर वामपंथी दलों की ओर से शोक जताया गया है. फॉरवर्ड ब्लाॅक के नेता वरुण मुखर्जी ने कहा है कि जैसे वे स्वीकार ही नहीं कर पा रहे हैं कि अशोक घोष अब हमारे बीच नहीं हैं. यह पार्टी के लिए बहुत बड़ी क्षति है. उन्होंने अपना पूरा जीवन सांगठनिक व जनहित संबंधी कार्यों में लगा दिया.
माकपा के आला नेता रॉबिन देव ने कहा है कि आजादी की लड़ाई में शामिल होने वाले अशोक घोष के निधन से जनहित संबंधी आंदोलन से जुड़े व वामपंथी विचारधारा वाले हर व्यक्ति को अपूरणीय क्षति पहुंची है. वे वामदलों की एकता के पक्षधर थे.
एटक के प्रदेश सचिव व परिवहन श्रमिक आंदोलन से जुड़े नेता नवल किशोर श्रीवास्तव ने अशोक घोष के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि वे वाममोरचा के एक स्तंभ थे. केवल बंगाल ही नहीं बल्कि पूरे देश की मौजूदा विषम परिस्थिति में अशोक घोष जैसे अनुभवी नेता के निधन से केवल वामपंथी ही नहीं बल्कि आम लोगों को भी नुकसान पहुंचा है. अशोक घोष के निधन पर फॉरवर्ड ब्लॉक के नेता भोला सोनकर, युवा लीग कोलकाता के अध्यक्ष अमल देव राय, बड़ाबाजार युवा लीग के सचिव श्रीकांत सोनकर ने भी शोक जताया है.
भाकपा (माले) के प्रदेश सचिव पार्थ घोष ने अशोक घोष की मृत्यु पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि वामपंथियों के लिए यह बड़ी क्षति है. अराजकता के माहौल में ऐसे वामपंथी नेता के निधन चिंताजनक है. एसयूसीआइ की राज्य कमेटी की ओर से भी अशोक घोष के निधन पर दु:ख प्रकट किया गया है.
अस्पताल पहुंचे कई आला नेता
फॉरवर्ड ब्लॉक के वयोवृद्ध नेता अशोक घोष के निधन की सूचना मिलने के बाद से बाइपास स्थित निजी अस्पताल में पहुंच कर राज्य में वाममोरचा के चेयरमैन विमान बसु, माकपा राज्य कमेटी के सचिव डॉ सूर्यकांत मिश्रा, प्रदेश कांग्रेस के आला नेता मानस भुईंया, तृणमूल नेता व मंत्री साधन पांडेय, माकपा नेता रॉबिन देव, आरएसपी के नेता क्षिति गोस्वामी सहित कई नेता व कार्यकर्ता शोक व्यक्त किया.
वामपंथियों ने खो दिया एक अमूल्य नेता : विमान
फारवर्ड ब्लाॅक के वयोवृद्ध नेता अशोक घोष के निधन पर राज्य में वाममोरचा के चेयरमैन विमान बसु ने शोक जताया है. उन्होंने कहा कि अशोक घोष जैसे वरिष्ठ नेता के निधन से केवल वामपंथी ही नहीं बल्कि जन आंदोलनों को भी गहरा झटका लगा है. वामपंथियों ने एक अमूल्य नेता खो दिया है. उन्होंने अपना पूरा जीवन सांगठनिक व जनहित कार्यों में लगा दिया. घोष ने वामपंथी एकता बनाने में काफी मदद की. केवल एकता ही नहीं वामपंथी खेमे की कुछ त्रुटियों का विरोध करने के साथ ही इसे सुधारने में उनकी भूमिका काफी अहम रही.
घोष के निधन से हुई अपूरणीय क्षति : सूर्यकांत : फारवर्ड ब्लाॅक के वरिष्ठ नेता अशोक घोष के निधन पर माकपा के राज्य सचिव डॉ सूर्यकांत मिश्रा ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि पूरे देश में व्याप्त विषम परिस्थिति में अशोक घोष जैसे अनुभवी व वरिष्ठ नेता के निधन से अपूरणीय क्षति हुई है. यह क्षति केवल वामपंथियों की ही नहीं बल्कि जनहित के आंदोलन से जुड़े तमाम लोगों की है. खाद्य आंदोलन से लेकर घोष ने जनहित से संबंधित कई बड़े आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. वामपंथियों ने एक अनुभवी और वरिष्ठ नेता खो दिया है.

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