दक्षा वैदकर
इन दिनों मैं उड़ीसा साहित्य अकादमी से पुरस्कृत लेखिका सरोजिनी साहू का कहानी संग्रह ‘रेप’ पढ़ रही हूं. वैसे तो इस किताब में 12 कहानियां हैं, लेकिन यहां मैं ‘लोफर’ का जिक्र करूंगी. यह कहानी दो सहेलियों की है. इनमें से एक उम्र में बड़ी थी. वह रोजाना मॉर्निग वॉक के लिए जाया करती थी. पड़ोस की छोटी सखी ने एक दिन उसे वॉक से आते देखा, तो इच्छा जतायी कि वह भी अब उनके साथ जाया करेगी.
अब दोनों रोज सुबह बिना बंक मारे वॉक पर जाया करते. दोनों दोपहर में भी चाय के दौरान मिलते और खूब बातें करते. बीच में छोटी सखी एक महीने के लिए अपने मायके गयी, तो बड़ी सखी का अकेले वॉक पर जाने का मन ही नहीं हो रहा था. एक महीने बाद जब छोटी सखी लौटी, तो दोनों ने दोबारा वॉक शुरू कर दी. एक सुबह दोनों ने वॉक के दौरान रास्ते में सांप देख लिया. उस दिन डर के मारे दोनों अधूरा वॉक छोड़ कर घर आ गयीं.
दूसरे दिन दोनों जब वॉक के लिए निकली, तो सांप की बात याद आ गयी. उन्होंने रास्ता बदल लिया. वे दोनों कुछ आगे बढ़ीं तो किसी लोफर ने छोटी सखी को गर्दन के नीचे वाले हिस्से में थपकी मारी और भाग गया. सखी कुछ बोलती उसके पहले वह लोफर साइकिल से दूर जा चुका था.
जिसके साथ यह घटना हुई थी, उसने पूरे दिन इसी घटना पर बात की. बड़ी सखी उसे समझाती रही कि भूल जाओ, लेकिन सब बेकार. बड़ी सखी से नाराज हो कर वह घर चली गयी. दूसरे दिन सुबह बड़ी सखी अकेली वॉक पर निकल गयी. जब वापस लौटी, तो छोटी सखी ने पूछा, ‘आप वॉक पर गयी थीं? आपको डर नहीं लगता? बड़ी सखी ने कहा, ‘संसार में मृत्यु है, यह सोच कर क्या हम जीना छोड़ देंगे? दुर्घटनाएं तो जीवन का हिस्सा हैं. इसके लिए मैं अपने रोज के व्यायाम को क्यों छोड़ दूंगी?’ छोटी सखी ने कहा, ‘अगर वह लोफर दोबारा आ जाता तो?’ बड़ी सखी ने कहा, ‘अब अगर आयेगा, तो मैं तैयार हूं. उसकी हड्डी-पसली तोड़ दूंगी. मैं वॉक पर गयी ताकि मैं अपना डर दूर कर सकूं. अगर मैं नहीं जाती, तो यह डर मुङो सदा के लिए डस लेता.
daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in
बात पते की..
जीवन में तरह-तरह की घटनाएं होती हैं. घटनाएं न हो, इस डर से हम अपनी दिनचर्या में अगर बदलाव करेंगे, तो खुद का नुकसान करेंगे.
जब आपको किसी काम को करने से डर लगे, तो सबसे पहले उसी काम को पूरा करें. अपने डर को जितना जल्दी हो सके, खत्म कर लें.
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