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भारत में क्याव : राष्ट्रपति क्याव के महत्वपूर्ण दौरे से भारत-म्यांमार रिश्तों में नया आयाम

भारत अपने पूर्वोत्तर में 1,643 किलोमीटर लंबी सीमा म्यांमार के साथ साझा करता है. इसके बावजूद यह पड़ोसी देश हमारी विदेश नीति में बहुत महत्वपूर्ण नहीं रहा था. लेकिन, अब म्यांमार की आंतरिक राजनीति में आमूल-चूल परिवर्तन के साथ वहां लोकतंत्र की बहाली और भारत सरकार का ध्यान पूर्वी एशिया पर केंद्रित होने से इस […]

भारत अपने पूर्वोत्तर में 1,643 किलोमीटर लंबी सीमा म्यांमार के साथ साझा करता है. इसके बावजूद यह पड़ोसी देश हमारी विदेश नीति में बहुत महत्वपूर्ण नहीं रहा था. लेकिन, अब म्यांमार की आंतरिक राजनीति में आमूल-चूल परिवर्तन के साथ वहां लोकतंत्र की बहाली और भारत सरकार का ध्यान पूर्वी एशिया पर केंद्रित होने से इस स्थिति में बदलाव की उम्मीद नजर आ रही है.

इस समीकरण में चीन की उल्लेखनीय उपस्थिति तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के बदलते कूटनीतिक परिदृश्य के कारण भी भारत-म्यांमार संबंधों की दशा और दिशा अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक विशिष्ट भूमिका निभा सकती हैं. म्यांमार के राष्ट्रपति यू थीन क्याव की चार-दिवसीय भारत यात्रा के परिप्रेक्ष्य में दोनों देशों के वर्तमान संबंध और भविष्य की संभावनाओं पर नजर डाल रहा है ‘इन-डेप्थ’…

म्यांमार के राष्ट्रपति यू थिन क्याव चार दिनों के दौरे पर भारत में हैं. सोमवार को राष्ट्रपति भवन में औपचारिक स्वागत के बाद वे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मिले. उसके बाद उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से विभिन्न द्विपक्षीय मुद्दों पर विचार-विमर्श किया. दोनों नेताओं की मौजूदगी में कई समझौतों पर हस्ताक्षर भी किये गये.

इससे पहले राष्ट्रपति क्याव ने बोधगया स्थित महात्मा बुद्ध के मंदिर में पूजा की और आगरा स्थित प्रसिद्ध ताजमहल को देखा. मंगलवार को उन्होंने अमर जवान ज्योति पर शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि दी. राष्ट्रपति क्याव और प्रधानमंत्री मोदी की बातचीत के बाद जारी संयुक्त बयान में कहा गया है कि द्विपक्षीय सहयोग मजबूत करने के साथ दोनों देश अपनी धरती का इस्तेमाल किसी उग्रवादी समूह को नहीं करने देंगे जो दूसरे पक्ष के प्रति शत्रुता रखता हो.

चार समझौते

– म्यांमार में 69 पुलों का निर्माण और विस्तार

– भारत-म्यांमार-थाईलैंड अंतरराष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण परियोजना में केलवा-यार्गी खंड का निर्माण

– अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग

– परंपरागत आयुष के क्षेत्र में सहयोग

शशांक

पूर्व विदेश सचिव

म्यांमार में अभी लोकतंत्र पूरी तरह से स्थापित नहीं हो पाया है, क्योंकि मौजूदा सरकार के पहले दशकों तक वहां सैन्य शासन रहा है. पिछले साल नवंबर में चुनाव के बाद म्यांमार में बनी नयी सरकार ने वहां कुछ-कुछ स्थितियां ठीक की है.

इस वक्त म्यांमार की आर्थिक जरूरतें ज्यादा हैं और वहां विदेशी निवेश की जरूरत है, तभी उसकी अर्थव्यवस्था मजबूत होगी. वहीं म्यांमार को अपने सभी पुराने मसलों-मुद्दों का हल निकालते हुए अपने भीतर नागरिक नेतृत्व की लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी मजबूत बनाना है. इन सब के लिए तो म्यांमार को अपने पड़ोसी देशों से अच्छे रिश्ते रखने ही होंगे. इसी एतबार से म्यांमार के राष्ट्रपति यू थीन क्याव की चार दिवसीय भारत यात्रा को देखा जा सकता है.

आंग सान सू की की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी की सरकार बनने के बाद म्यांमार और भारत के बीच यह पहली शीर्ष स्तरीय वार्ता है, जिसमें दोनों देशों में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहमति बनी है. जाहिर है, इस सहमति से निकट भविष्य में म्यांमार-भारत के रिश्तों में एक नया आयाम देखने को मिलेगा. इसके लिए दोनों देश

प्रयासरत हैं.

जहां तक म्यांमार के चीन से रिश्तों की बात है, तो म्यांमार और चीन अरसे से एक-दूसरे के काफी नजदीक रहे हैं. हालांकि, मौजूदा सरकार के पहले सैन्य शासन के आखिरी दिनों में चीन के कई प्रोजेक्ट को रोक दिया था. लेकिन, अब इस स्थिति में बदलाव आ रहा है और चीन ने कोशिशें तेज कर दी हैं कि म्यांमार में अब उसका कोई प्रोजेक्ट न रुकने पाये. म्यांमार भी यही चाहता है कि उसके रिश्ते किसी से भी खराब न हों और उसे पड़ोसी देशों से संस्थागत समर्थन तंत्र (इंस्टीट्यूशनल सपोर्ट मेकेनिज्म) का लाभ मिलता रहे.

इस मामले में भारत की गति थोड़ी-सी धीमी होती है चीन की अपेक्षा. लेकिन, भारत अब इस प्रयास में है कि वह भी अपनी गति बढ़ाये. इसीलिए भारत ने म्यांमार के साथ हर कदम पर अपना सहयोग देने को सुनिश्चित किया है. म्यांमार की अपनी कोशिश यही रही है कि वह संस्थागत समर्थन तंत्र को लेकर चीन और भारत दोनों को अपने ऊपर हावी न होने दे. इसलिए म्यांमार इन दोनों प्रमुख पड़ोसी देशों को किसी भी तरह से नाराज नहीं होने देता. ऐसे में भारत के लिए भी जरूरी हो जाता है कि अपने वादे के मुताबिक वह म्यांमार का खुल कर साथ दे. एक दूसरी बात यह भी है कि बौद्ध धर्म को लेकर भारत के साथ म्यांमार का जो संबंध है, वह उसका चीन के साथ हो ही नहीं सकता है.

म्यांमार जानता है कि चीन से उसे बाजार-व्यापार को लेकर अच्छा समर्थन तो मिल सकता है, लेकिन चूंकि उसकी आस्था बौद्ध धर्म है, इसलिए आध्यात्मिक समर्थन तो उसे भारत से ही मिलता है. इसलिए भी म्यांमार दोनों पड़ोसी देशों (भारत और चीन) से परस्पर सहयोग चाहता है.

(बातचीत पर आधािरत)

दोनों देशों के लिए यह एक ऐतिहासिक मौका है

यशवंत सिन्हा

पूर्व विदेश मंत्री

भारत को कई मुद्दों पर म्यांमार से बेहतर संबंध बनाने के प्रयास करने चाहिए. इसमें सीमाओं की सुरक्षा सबसे अहम है. लेकिन, भारत को सावधान रहने की भी जरूरत है. हमारे सुरक्षाबलों द्वारा म्यांमार की सीमा के भीतर कार्रवाई करने की खबरों का सार्वजनिक होना हितकर नहीं है.

भारतीय मीडिया समेत किसी को भी बड़बोलेपन से परहेज करना चाहिए. म्यांमार के विकास के लिए भारत बहुत संसाधन मुहैया करा सकता है. हमें वहां चल रहीं मौजूदा योजनाओं के साथ-साथ कुछ दिखनेवाली परियोजनाओं पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जैसा कि हम अफगानिस्तान में कर

रहे हैं.

यदि भारत के पूर्वोत्तर को एशिया का एक मजबूत आर्थिक केंद्र तथा अलग-अलग हिस्सों से जुड़ाव का स्थान बनाना है, तो म्यांमार, थाईलैंड और पूर्वी एशिया से परे स्थित देशों पर अधिक ध्यान देना होगा, और उन्हें भारत के साथ थलमार्ग से जुड़े हुए रूप में भी देखना होगा, न कि सिर्फ समुद्री मार्ग से.

बांग्लादेश के साथ बेहतर संबंधों की स्थिति में उसके रास्ते पूर्व एशिया पहुंचना एक संभावना है, जिस पर अक्तूबर में होनेवाली गोवा बैठक में विचार किया जाना चाहिए. नेपाल और भूटान के अलावा ब्रिक्स आउटरीच के देशों के साथ तटीय व्यापार पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए और भारत में ऐसे व्यापार के लिए हरसंभव सुविधाएं मुहैया कराया जाना चाहिए. भारत और म्यांमार के लिए यह ऐतिहासिक मौका है और इसका पूरा उपयोग किया

जाना चाहिए.

(एनडीटीवी की वेबसाइट पर जारी लेख का अंश. साभार)

उत्तर-पूर्व में उग्रवाद पर लगाम लगाने में

म्यांमार का सहयोग जरूरी

भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में उग्रवाद बढ़ाने में म्यांमार बड़ा कारक रहा है. लंबे समय से सत्ता पर काबिज रही सैनिक सैन्य सरकार शासन-काल में दोनों देशों के कूटनीतिक संबंध बहुत कमजोर हो गये थे. भारत के साथ खुली व्यापक सीमा का लाभ उठा कर उग्रवादी समूहों, विशेषकर नेशनल कॉन्सिल आफ नागालैंड (एनएससीएन) के खापलांग गुट और मणिपुर के कई संगठनों ने म्यांमार के जंगलों को अपना ठिकाना बना लिया था. माना जाता है कि अब भी वहां 200 से अधिक शिविर चल रहे हैं. भारत के निरंतर अनुरोध के बाद भी म्यांमार सरकार इनके विरुद्ध ठोस कार्रवाई के लिए तैयार नहीं थी. इसका एक कारण उग्रवादी संगठनों से स्थानीय प्रशासन को मिलनेवाली मोटी रकम थी. म्यांमार से हथियारों और नशीले पदार्थों की तस्करी भी भारत के लिए भारी सिरदर्द रहा है.

करीब एक दशक पहले तो पूर्वोत्तर के उग्रवादी गुटों ने म्यांमार के विद्रोही कचिन आर्मी के साथ मिल कर एक साझा मंच भी बनाया था. जानकारों का मानना है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में उग्रवाद पर अंकुश लगाने में म्यांमार बड़ी भूमिका निभा सकता है. लोकतंत्र समर्थक सू की के सत्ता में आने के बाद भारत के लिए यह काम अपेक्षाकृत आसान हुआ है. म्यांमार खापलांग गुट को शांति प्रक्रिया में शामिल होने के लिए उस पर दबाव बनाने की स्थिति में है.

सुषमा स्वराज ने अपने दौरे में म्यांमार सरकार को यह समझाने का प्रयास किया है कि उसके इस कदम से सीमा के दोनों ओर शांति व स्थिरता बहाल हो सकती है जो दोनों देशों के हित में है. कचिन विद्रोहियों से म्यांमार भी तबाह है. इस मसले पर म्यांमार में आंतरिक सुरक्षा को लेकर 31 अगस्त को होनेवाली बैठक महत्वपूर्ण है और भारत राष्ट्रपति के दौरे में अपनी चिंताओं को व्यक्त कर सकता है.

बढ़ता द्विपक्षीय व्यापार

– दोनों देशों के बीच व्यापार में निरंतर वृद्धि होती रही है. वर्ष 2013-14 में द्विपक्षीय व्यापार 2.18 िबलियन डॉलर से अधिक हो गया था, जो कि 1980-81 में मात्र 12.4 मिलियन डॉलर ही था. भारत म्यांमार से मुख्यः कृषि और वन उत्पाद आयात करता है तथा उसे स्टील और दवाइयां निर्यात करता है.

– वर्ष 2008 में निवेश प्रोत्साहन तथा दोहरे कराधान को हटाने संबंधी समझौते भी हुए थे. भारत और आसियान समूह के समझौते में भी दोनों देश शामिल हैं. भारत के शुल्क-रहित टैरिफ योजना का एक लाभार्थी म्यांमार भी है.

– वर्ष 1994 में दोनों देशों ने सीमा व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किया था जिसके तहत दो सीमावर्ती केंद्रों पर कारोबार होता है तथा एक अन्य केंद्र खोलने का प्रस्ताव है.

िनकटता के पहलू

‘एक्ट इस्ट’ नीति के साथ मजबूत हो रहे हैं संबंध

प्र धानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर, 2014 में म्यांमार की यात्रा की थी और आसियान को मजबूत बनाने का आह्वान किया था. अपनी ‘एक्ट इस्ट’ नीति की भावना के मुताबिक उन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत और म्यांमार की भूमिका को भी चिह्नित किया था. पिछले साल जुलाई के महीने में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज म्यांमार के दौरे पर गयी थीं. दोनों देशों के संयुक्त परामर्श आयोग के साझा बयान में द्विपक्षीय संबंधों पर संतोष व्यक्त करते हुए इन्हें मजबूत करने की बात हुई थी. इससे पहले म्यांमार के उपराष्ट्रपति यू साइ मौक खाम जनवरी, 2015 में भारत आये थे.

इस वर्ष 30 मार्च को आंग सान सू की के दल नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी द्वारा सत्ता संभालने के बाद म्यांमार का पहला महत्वपूर्ण दौरा विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने बीते 22 अगस्त को किया था और राष्ट्रपति यू थीन क्याव, स्टेट काउंसेलर सू की और विदेश मंत्री से विचार-विमर्श किया था. इस दौरे में उन्होंने बंगाल की खाड़ी में तकनीकी और आर्थिक सहयोग के साथ-साथ गोवा में आगामी अक्तूबर में होनेवाले ब्रिक्स के आउटरीच सम्मेलन पर बातचीत की थी. इस महीने के शुरू में दोनों देशों के अधिकारियों ने भी उच्च-स्तरीय यात्राओं, सुरक्षा, सीमा समेत अनेक विषयों पर बात की थी. इससे पहले वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमण मई में और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल प्रधानमंत्री के दूत के रूप में जून में म्यांमार गये थे. पिछले महीने आसियान देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल होने गये विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह ने भी सू की से मुलाकात की थी, जिसमें उन्होंने भारत आने की इच्छा व्यक्त की थी.

उल्लेखनीय है कि संवैधानिक पाबंदियों के कारण राष्ट्रपति नहीं बन सकीं सू की ने पिछले महीने बतौर स्टेट काउंसेलर और विदेश मंत्री अपने पहले विदेश दौरे के लिए चीन को चुना था. जानकारों का मत है कि वे भारत और चीन के साथ संबंधों में संतुलन साधने की कोशिश कर रही हैं.

म्यांमार के विकास में भारत का सहयोग

भारत लंबे समय से म्यांमार को इंफ्रास्ट्रक्चर, मानव संसाधन विकास और संस्थानिक क्षमता बढ़ाने के क्षेत्र में सहयोग करता आ रहा है. इस सिलसिले में सूचना तकनीक, कृषि अनुसंधान और जैव पार्क के संस्थान बनाये गये हैं तथा विभिन्न प्रशिक्षण संस्थाओं की स्थापना की गयी है. इसी कड़ी में सड़क और पुल निर्माण की कई परियोजनाओं के साथ-साथ भारत, म्यांमार और थाईलैंड को जोड़नेवाले एक राजमार्ग का निर्माण भी प्रस्तावित है.

डॉ मनमोहन सिंह के कार्यकाल में म्यांमार के सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास के लिए भारत ने पांच वर्ष तक हर साल पांच मिलियन डॉलर की सहायता देने के लिए सहमति दी थी. इस समझौते के तहत स्कूलों, स्वास्थ्य केंद्रों और पुलों का निर्माण हो रहा है. म्यांमार के छात्र भारत में अनेक तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग में भी प्रशिक्षण पाते हैं. म्यांमार के सांसद और कूटनीतिज्ञ भी भारत में प्रशिक्षण लेते हैं. सांस्कृतिक आदान-प्रदान के भी कई अवसर निर्मित किये गये हैं. भारत ने म्यांमार के विकास के लिए 500 मिलियन डॉलर से अधिक का ऋण उपलब्ध कराया है.

म्यांमार में भारतीय मूल के सवा चार लाख लोग

वर्ष 1983 की आधिकारिक जनगणना के अनुसार म्यांमार में भारतीय मूल के लोगों की संख्या 4,28,428 है. अनिवासी भारतीय शहरों में हैं जो व्यापार और बहुराष्ट्रीय कंपनियों में कार्यरत हैं, जबकि भारतीय मूल के अधिकतर परिवार कृषि कार्य में संलग्न हैं.

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