35.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

बुंदेलखंड का सच कौन सुनेगा?

चंदन श्रीवास्तव एसोसिएट फेलो, कॉमनकॉज सोचिये कि अगले चौबीस घंटे में जब मतदाता बुंदेलखंड के सात जिलों महोबा, ललितपुर, झांसी, हमीरपुर, जालौन, चित्रकूट और बांदा के अपने-अपने मतदान केंद्रों पर वोट डालने के लिए खड़ा होगा, तो उसके मन में पहला सवाल क्या होगा? क्या वह यूपी की कैबिनेट में अपनी हिस्सेदारी के सवाल को […]

चंदन श्रीवास्तव
एसोसिएट फेलो, कॉमनकॉज
सोचिये कि अगले चौबीस घंटे में जब मतदाता बुंदेलखंड के सात जिलों महोबा, ललितपुर, झांसी, हमीरपुर, जालौन, चित्रकूट और बांदा के अपने-अपने मतदान केंद्रों पर वोट डालने के लिए खड़ा होगा, तो उसके मन में पहला सवाल क्या होगा?
क्या वह यूपी की कैबिनेट में अपनी हिस्सेदारी के सवाल को आगे करके वोट डालेगा? क्या वह सोचेगा कि अखिलेश यादव ने 2012 की अपनी सरकार में आठ बार मंत्रिमंडल का फेर-बदल किया, लेकिन एक बार भी अपने सात बुंदेलखंडी विधायकों की ओर नहीं देखा?
या फिर यह सोचेगा कि इलाके के लिए मायावती की सरकार ज्यादा बेहतर साबित हुई है, जिसने मंत्रिमंडल में आधा दर्जन मंत्री और एक दर्जन दर्जा प्राप्त मंत्री रखे? क्या वह उन राहत-पैकेजों को सोच कर वोट डालेगा, जिसकी याद राहुल गांधी ने दिलायी है, तो अमित शाह ने भी? क्या वह यूपी के विकास के उस सपने को वोट डालेगा, जिसके याद दिलाते अखिलेश-राहुल की जोड़ी जगह-जगह घूम रही है या वह अपनी वोटिंग के सहारे इस शिकायत का इजहार करेगा कि ‘यूपी में तो गुंडाराज है’ जैसा कि भाजपा या बसपा उसे समझाना चाह रही हैं?
दरअसल, मतदाता इन सवालों में से किसी को आधार बना कर वोट डाले और चुनावी दंगल में हार-जीत चाहे जिस पार्टी की हो- बुंदेलखंड का अपना सवाल हार जायेगा. बुंदेलखंड का अपना सवाल है सालों-साल से चला आ रहा सूखा, आत्महत्या करते किसान, दो जून की रोटी को तरसते लोग, चारे के अभाव में मरते हुए मवेशी और दुर्दशा की हालत में पलायन करने को मजबूर लोग! याद कीजिये, साल 2015 का स्वराज-अभियान के सर्वेक्षण के निष्कर्ष. तब इस इलाके में तकरीबन अकाल की हालत थी और सर्वेक्षण ने बताया कि 2015 के मार्च से अक्तूबर यानी आठ महीने में बुंदेलखंड के 53 प्रतिशत गरीब परिवारों ने दाल नहीं खायी, 69 प्रतिशत ने दूध नहीं पिया और हर पांचवां परिवार कम-से-कम एक दिन भूखा सोया.
होली के बाद से 60 प्रतिशत परिवारों में गेहूं चावल की जगह मोटे अनाज और कुछ आलू के भरोसे भूख मिटायी और हर छठवें घर ने फिकारा (एक प्रकार की घास) की रोटी खायी. इस अवधि में बुंदेलखंड में 40 प्रतिशत परिवारों ने अपने पशु बेचे, 27 प्रतिशत ने जमीन बेची या गिरवी रखी और 36 प्रतिशत गांव में 100 से अधिक गाय-भैंस को चारे की कमी के कारण छोड़ने की मजबूरी पेश आयी.
कल 23 फरवरी की वोटिंग में बुंदेलखंड का यही सवाल हार जायेगा, क्योंकिचुनावी लोकतंत्र बहुमत के गणित से चलता है और बहुमत का गणित छोटे-छोटे अंकों की ज्यादा परवाह नहीं करता.
बहुमत के गणित को प्रभावित करने लायक सीटें नहीं हैं बुंदेलखंड के पास. सीटों के अंकगणित में सोचें, तो यूपी विधानसभा की कुल सीटों में बस लगभग 5 प्रतिशत (19 सीट) की हिस्सेदारी है बुंदेलखंड की. और, पांच फीसदी विधानसभा सीटों वाला बुंदेलखंड यूपी के बीते दस साल के चुनावी इतिहास को देखते हुए बहुत मायने नहीं रखता पार्टियों के लिए.
एक वजह तो यही कि साल 2007 से यूपी में सरकार बनाने के लिए चुनाव बाद गंठबंधन करने की मजबूरी नहीं रही. जिस पार्टी की सरकार बनी उसे साफ-साफ जनादेश मिला है. चुनावी होड़ में लगी पार्टियां मान सकती हैं कि इस बार भी चुनाव बाद गंठबंधन करने की मजबूरी नहीं रहेगी. ऐसी मजबूरी रहती, तो विधानसभा की पांच फीसदी सीटों वाला बुंदेलखंड पार्टियों की नजर में मानीखेज हो सकता था.
दूसरे, बीते दस साल में यूपी में दो पार्टियों का राज रहा और दोनों ने बड़े कम वोट शेयर के बावजूद पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी. साल 2007 में मायावती की बहुजन समाजवादी पार्टी ने 30 फीसदी वोट शेयर के दम पर सरकार बनायी, तो 2012 में समाजवादी पार्टी ने अखिलेश की सरकार 29 फीसदी वोट शेयर पर ही बना ली. यह यूपी में आजादी के बाद से साल 2012 तक सबसे कम वोट शेयर वाली सरकार थी. छोटा इलाका- नया ज्यादा सीट, न वोटशेयर के लिहाज से ज्यादा मतदाता, ऐसे में बुंदेलखंड का दुख कितना भी बड़ा हो, यूपी विधानसभा में बड़ा सवाल बन कर नहीं गूंज सकता.
लोकनीति (सीएसडीएस) का सर्वे बुंदेलखंड की इसी नियति के संकेत बड़े विडंबनात्मक तरीके से करता है. सर्वे के मुताबिक, बुंदेलखंड के 21 फीसदी मतदाता चार प्रमुख पार्टियों के उम्मीदवारों की जगह किसी और को अपना वोट देना ज्यादा पसंद करेंगे. यह आंकड़ा बसपा को पसंद करनेवाले मतदाताओं के बराबर है और भाजपा को पहली पसंद बतानेवाले मतदाताओं की तुलना में महज दो फीसदी कम.
तो क्या यह मानें कि चुनावी होड़ की चार प्रमुख पार्टियां बुंदेलखंड के मतदाताओं की चिंता और सरोकार को दरकिनार करके चल रही हैं, सो वोटरों का एक बड़ा हिस्सा किसी और को अपने भरोसे के काबिल मान रहा है? शायद ‘हां’, लेकिन इस ‘हां’ के आगे समाधान का रास्ता बंद है!

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें