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एक लाख से कम आय वालों को मुफ्त मिलेगी कानूनी सलाह

मुजफ्फरपुर: राज्य विधिक सेवा प्राधिकार का काम अभिवंचित लोगों की सहायता करना है. इसके तहत महिला, बच्चे, एससी-एसटी, एक लाख से कम वार्षिक आय वाले लोग व दैवीय आपदा से पीड़ितों को आर्थिक व सामाजिक शोषण के शिकार लोगों को हक दिलाना है. जिले की आबादी 54 लाख की है, जिसमें 70 फीसदी लोग इस […]

मुजफ्फरपुर: राज्य विधिक सेवा प्राधिकार का काम अभिवंचित लोगों की सहायता करना है. इसके तहत महिला, बच्चे, एससी-एसटी, एक लाख से कम वार्षिक आय वाले लोग व दैवीय आपदा से पीड़ितों को आर्थिक व सामाजिक शोषण के शिकार लोगों को हक दिलाना है. जिले की आबादी 54 लाख की है, जिसमें 70 फीसदी लोग इस कैटेगरी में आते हैं, लेकिन राज्य विधिक सेवा प्राधिकार इतने लोगों तक नहीं पहुंच सकता. इसमें आप सब की भागीदारी जरू री है. ये बातें राज्य विधिक सेवा प्राधिकार के कार्यपालक अध्यक्ष न्यायमूर्ति वीएन सिन्हा ने कही. वे जिला परिषद् के सभागार में बुधवार को पंचायत प्रतिनिधियों को विधिक जागरू कता के लिए संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि देश भर में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूर भरे पड़े हैं. उनके लिए कई योजनाएं हैं, लेकिन उन्हें जानकारी नहीं है. उन्हें नहीं पता कि वे जो कार्य करते हैं, उसका निबंधन होता है. उसके बाद वे योजनाओं का लाभ उठा सकते हैं. इसके लिए आप सभी को सहयोग करना होगा. प्राधिकार एक बुकलेट बना रहा है, जिसमें योजनाएं व निबंधन सहित सभी प्रकार की कानूनी जानकारियां दी गयी है. इसे प्रत्येक पंचायतों में वितरित किया जायेगा. जिससे वहां के लोग विभिन्न योजनाओं की जानकारी ले सके. न्यायमूर्ति ने कहा कि हम कहते हैं कि भारत देश महान. लेकिन हमारा देश महान कैसे हुआ. यहां 120 करोड़ की आबादी में 46 करोड़ लोग असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे हैं. उन तक सरकारी योजनाएं नहीं पहुंच रही है. उन्होंने महिलाओं को शिक्षित होने की अपील की.
जिले में 80 हजार केस पेंडिंग
जिला व सत्र न्यायाधीश हरेंद्र नाथ तिवारी ने कहा कि जिले में 80 हजार केस पेंडिंग हैं. प्रतिदिन 200 मुकदमे आते हैं. यदि समाज में लोगों को जागरू क किया जाये. पंचायत स्तर पर ही विधिक शिविर लगाकर मुकदमों का निपटारा किया जाये तो काफी काम आसान हो सकता है. बहुत सारे मामले पंचायत स्तर पर ही निबट जायेंगे. विधिक जागरू कता कार्यक्रम चलाये जाने से कमजोर वर्ग के लोगों को मदद भी मिलेगी. हमारे पंचायत प्रतिनिधि इस कार्य में सहयोग करे तो इसका सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेगा.
समाप्त हो रही मिल जुल कर रहने की संस्कृति
आइजी पारसनाथ ने कहा कि समाज में मिल जुल कर रहने की सदियों से चली आ रही संस्कृति समाप्त हो रही है. लोग छोटी-छोटी बातों पर लड़ रहे हैं, जिससे मुकदमों का अंबार लग रहा है. ऐसी स्थिति में विधिक जागरू कता जरू री है. उन्होंने कहा कि बहुत सारी चीजें सिर्फ लड़ने से ही नहीं मिलती. कई चीजें सहने से भी मिलती है. एसएसपी रंजीत कुमार मिश्र ने कहा कि महिला सशक्तीकरण के लिए स्कूल कॉलेजों में लड़कियों को जागरू क किया गया है. मानव व्यापार को रोकने के लिए पुलिस की ओर से काम किये जा रहे हैं. कमजोर वर्ग के लोगों की पूरी मदद की जा रही है. शिविर को बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्षा निशा झा, महिला आयोग की अध्यक्षा अंजुम आरा, जिला व सत्र न्यायाधीश हरेंद्र नाथ तिवारी, बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकार के रजिस्ट्रार विपुल कुमार, यूनिसेफ के प्रतिनिधि अजय कुमार ने भी संबोधित किया. संचालन डीपीआरओ नागेंद्र गुप्ता ने किया.
तेजाब हमले व दुष्कर्म पीड़िता को तीन लाख का सहयोग
राज्य विधिक सेवा प्राधिकार के रजिस्ट्रार विपुल सिन्हा ने कहा कि देश की आबादी के 70 फीसदी लोग प्राधिकार का सहयोग पाने के कैटेगरी में शामिल हैं. प्राधिकार तेजाब के हमले से पीड़ित व दुष्कर्म पीड़िता को तीन लाख का सहयोग देती है. इसके अलावा दुर्घटना में गंभीर रूप से जख्मी लोगों को 50 हजार दिया जाता है. इसके लिए जिला विधिक प्राधिकार में आवेदन करना होता है, लेकिन जानकारी के अभाव में बहुत कम लोगों को इसका लाभ मिल पाता है. पंचायत प्रतिनिधि योजनाओं को लोगों तक पहुंचाये तो कमजोर वर्ग के लोग इसका लाभ उठा पायेंगे.
18 वर्ष तक शिक्षा, स्वास्थ्य व सुरक्षा करें सुनिश्चित
बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष निशा झा ने कहा कि 18 वर्ष तक बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य व सुरक्षा सुनिश्चित करना हमारा दायित्व है. तभी हमारा समाज आगे बढ़ पायेगा. इसके लिए पंचायत प्रतिनिधियों से लेकर सरकार तक एक चैनल बनाने की जरू रत है. हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी. जब तक हम नहीं बदलेंगे कोई भी एक्ट समाज में व्याप्त बुराइयों को खत्म नहीं कर सकता. उन्होंने कहा कि रेड लाइट एरिया को हम विशेष समुदाय कहे. यहां के बच्चों को उचित शिक्षा, स्वास्थ्य व सुरक्षा के लिए बाल संरक्षण आयोग काम कर रहा है.
वे इसके लिए एडवाइजरी कमेटी बना रही हैं. उन्होंने महिलाओं को कहा कि वे खुद को हाउस वाइफ भी नहीं कहें. वे हाउस मेकर हैं. पहले से चली आ रही परिभाषा को बदले.

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