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बच्चों के अंदर छिपे हुनर को पहचानें उसे निखारने में मदद करें

वीना श्रीवास्तव साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, फॉलो करें – फेसबुक : facebook.com/veenaparenting ट्विटर : @14veena एक बेटे का मेल है. उसने जेईई मेन परीक्षा दी और क्वालीफाई भी कर ली, लेकिन वह इंजीनियर नहीं, आर्किटेक्ट बनना चाहता है. वह बी.आर्क करना चाहता है और पेरेंट्स चाहते हैं कि वह बीटेक करे. उसने लिखा […]

वीना श्रीवास्तव
साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, फॉलो करें –
फेसबुक : facebook.com/veenaparenting
ट्विटर : @14veena
एक बेटे का मेल है. उसने जेईई मेन परीक्षा दी और क्वालीफाई भी कर ली, लेकिन वह इंजीनियर नहीं, आर्किटेक्ट बनना चाहता है. वह बी.आर्क करना चाहता है और पेरेंट्स चाहते हैं कि वह बीटेक करे. उसने लिखा है- वैसे फाइनआर्ट्स भी कर सकता हूं, लेकिन मेरे मम्मी-पापा कभी मानेंगे नहीं.
इसलिए बी.आर्क करना चाहता हूं. लेकिन मेरे पेरेंट्स को लगता है इंटरेस्ट नाम की कोई चीज ही नहीं होती. मैंने कई बार उनसे कहा कि पढ़ाई मुझे करनी है, जो मैं बेहतर कर सकता हूं मैं वही करना चाहता हूं, पर वे नहीं सुनते. यह भी कहते हैं कि अब तक तुमने जितने डिसीजन लिये, वे गलत रहे, यह भी गलत होगा. मैं कुछ कहना चाहता हूं, तो वे गुस्सा हो जाते हैं. अब बोलने का भी मन नहीं करता.
क्या आर्किटेक्चर का भविष्य अच्छा नहीं? आप गूगल कीजिए, बहुत से नामी-गिरामी आर्किटेक्ट मिल जायेंगे. आप यह क्यों नहीं सोचते कि जिसमें बच्चे की रुचि है, अगर हम उसे वही पढ़ने दें तो वह बेहतर और पूरी लगन से पढ़ाई करेगा. उसमें वह अपना बेस्ट दे सकेगा. सौ प्रतिशत बेहतर करेगा.
अभी कोटा के कई मामले सामने आये, जिसमें बच्चों ने अभिभावकों के दबाव के कारण, पढ़ाई के बढ़ते बोझ के कारण जान दे दी. अभिभावकों को बच्चों को सही दिशा दिखानी चाहिए. उन्हें कैरियर चुनने में मदद करनी चाहिए. अभिभावकों को उनकी रुचि, उनके नंबर और उसका स्कोप देख कर ही उन्हें सलाह देनी चाहिए. आप ध्यान रखिए, पढ़ाई आपको नहीं, आपके बच्चों को ही करनी है. अगर बच्चे हमसे कहें कि उन्हें फुटबॉल या क्रिकेट की प्रैक्टिस करनी है, हम उनके साथ खेलें, जिससे उनका अभ्यास हो सके, तो हम क्या कहेंगे कि ‘हमें तो क्रिकेट आता नहीं. थोड़ा-बहुत आने से प्रैक्टिस संभव नहीं’.
बच्चा जिद करे कि आप फुटबॉल सीख लीजिए, फिर मेरे साथ प्रैक्टिस कीजिए तो आप गुस्सा हो जायेंगे कि ‘दिमाग खराब है, अब पहले मैं खेल सीखूं फिर तुम्हारे साथ प्रैक्टिस करूं ! वैसे भी मुझे कोई रुचि नहीं और रुचि नहीं तो सीख भी नहीं पाऊंगा’. शायद इसी तरह का जवाब होगा आपका. जब आप रुचि न होने पर खेल नहीं सीख सकते, तो आप कैसे उम्मीद करेंगे कि बच्चा 4-5 वर्ष मन लगा कर पढ़ाई करेगा.
वैसे आजकल पेरेंट्स बच्चों की रुचि का ख्याल रखते हैं. यहां तक कि अगर उनमें गायन, वादन या फिर कोई भी कला हो, वे उन्हें उसे निखारने का पूरा मौका देते हैं. फिर भी बहुत से पेरेंट्स हैं, जो आज भी बच्चों की पढ़ाई के बारे में खुद निर्णय लेते हैं और बच्चों को उनकी बात माननी पड़ती है. क्या यह जरूरी है कि अगर माता-पिता डॉक्टर हैं, तो बेटा डॉक्टर बने या माता-पिता जो चाहें उनके बच्चों को वहीं पढ़ना पड़े. अगर आप चाहते भी हैं कि जो आप चाहें बच्चे वही पढ़ें, तो उसके लिए आप उन्हें समझाएं, कन्विंस करें, लेकिन बच्चे में रुचि ही नहीं है, तो उसका मन कैसे लगेगा पढ़ने में ?
आप जानते हैं उस बेटे ने अपनी दो पेंटिंग मेल भी की हैं. वह इतनी खूबसूरत हैं कि यकीन नहीं हुआ कि उसने बनायी हैं. मैंने उससे पूछा कि उसी ने बनायी हैं, तो उसने जवाब दिया- ‘हां मैम, मैंने ही बनायी हैं’.
वाकई उसने बहुत खूबसूरत पेंटिंग बनायी हैं. अगर वह इतनी कम उम्र में इतना अच्छा बना सकता है, तो उसकी बारीकी सीखने पर तो कमाल ही करेगा. मेरी सभी अभिभावकों से गुजारिश है कि अपने बच्चों के अंदर जो हुनर छुपा है, उसे पहचानें और निखारें. पता नहीं सूरज की किस किरण पर आपके बच्चों का नाम लिखा हो. अपने बच्चों की क्षमता पहचानिए, उनका हौसला बढ़ाइए. जहां उनके कदम डगमगाएं, वहां उन्हें बढ़ कर सहारा दीजिए. मैं एक वीडियो देख रही थी. वाइल्ड लाइफ का था.
उसमें कई सारी जंगली जानवर माएं अपने छोटे बच्चों के साथ थीं. वे अपने छोटे-छोटे बच्चों को चढ़ना, चलना सिखा रही थीं. बच्चों के डरने पर उन्हें जबरदस्ती आगे कर रही थीं. जब वे पशु होकर अपने बच्चों को इतना परफेक्ट बना सकते हैं, तो हम तो इनसान हैं. हम क्यों नहीं अपने बच्चों का साथ दे सकते ? क्यों नहीं उन्हें इतना मजबूत बनाते कि जीवन में किसी भी मुसीबत का सामना वे खुद आसानी से कर सकें?
बच्चों से आपको जो उम्मीदें हैं, या जो कुछ आप उनके लिए सोचते हैं, अगर आप उन्हें समझा सकें तो बेहतर होगा. लेकिन उन पर अपने निर्णय थोपिए नहीं, क्योंकि जीवन भर उन्हीं निर्णयों के बल पर उन्हें कमाना, खाना और आगे बढ़ना है. उसी में बेहतर करते हुए अपना भविष्य संवारना है. इसके लिए अभिभावकों को बच्चों की पढ़ाई पर खास ध्यान रखना होगा.
कोई भी निर्णय लेना हो, उसके विषय में ठीक से विचार करके ही लें. एक गलत निर्णय जीवन बिगाड़ भी सकता है. चाहे बच्चे अभिभावकों की राय पर कैरियर चुनें या माता पिता बच्चों की रुचि के अनुसार उन्हें कैरियर चुनने दें. जो भी हो, यह पूरे जीवन की खुशहाली, भविष्य का प्रश्न है. इसमें सुधार की गुंजाइश नहीं. जो समय बीत जाता है, वह दोबारा नहीं मिलता. कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जिन्हें यह समझ ही नहीं आता कि उनके लिए क्या बेहतर होगा. हमारे एक परिचित हैं, उनके बेटे को समझ नहीं आ रहा है कि वह क्या करे. उसको म्यूजिक में शौक है, अच्छा गाता है.
उतनी अच्छी ड्राइंग भी करता है. वह लॉ पढ़ना चाहता है, लेकिन उसके पापा का कहना है कि वकील बन कर क्या करेगा? ज्यादा से ज्यादा ज्यूडीशियल सर्विसेज की परीक्षा दे पायेगा. और वकालत के लिए तेज होना चाहिए, तर्क करने आना चाहिए, किसी भी तरीके से अपनी बात सही साबित करनेवाला हो.
क्रमश:

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