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बदलता देश, बदलते तेवर

अनुपम त्रिवेदी राजनीतिक-आर्थिक विश्लेषक केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार पिछले कुछ माह से एक विज्ञापन दे रही है, जिसका मुख्य भाव है- ‘देश बदल रहा है’. अब देश में क्या बदला है और क्या नहीं, समर्थक और विरोधी उस पर भिन्न-भिन्न मत व्यक्त कर सकते हैं, पर एक बात तो तय है कि […]

अनुपम त्रिवेदी
राजनीतिक-आर्थिक विश्लेषक
केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार पिछले कुछ माह से एक विज्ञापन दे रही है, जिसका मुख्य भाव है- ‘देश बदल रहा है’. अब देश में क्या बदला है और क्या नहीं, समर्थक और विरोधी उस पर भिन्न-भिन्न मत व्यक्त कर सकते हैं, पर एक बात तो तय है कि आतंकवाद पर देश की नीति बदल गयी है. अब तय है कि यह देश हर आतंकी घटना के बाद सिर्फ ‘कड़ी निंदा’ नहीं करेगा. बीते 28/29 सितंबर की रात सीमापार हुई सैन्य-कार्रवाई इस बदली नीति का उदाहरण है. दरअसल, इस बदलाव के बीज बहुत पहले ही पड़ गये थे और देश की पहली ‘दक्षिणपंथी’ सरकार ने इसके संकेत भी दे दिये थे. इसकी बानगी है सोशल-मीडिया पर प्रचलित एक वीडियो, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल यह कहते दिख रहे हैं कि यदि पाकिस्तान ने मुंबई जैसा दुस्साहस फिर से किया, तो वह बलूचिस्तान को खो देगा. उन्होंने ऑफेंसिव-डिफेंस यानी ‘आक्रामक-सुरक्षा’ की बात कही, जो अब भारतीय कूटनीति का मूल-सिद्धांत बन गया लगता है.
यह बदलाव बहुत बड़ा है. दशकों से चली आ रही हमारी कूटनीति और राजनीतिक सोच को इस सरकार ने सिरे से पलट कर रख दिया है. भारत को जानने-समझनेवाले इस बदलाव से चकित हैं. इसीलिए जब 15 अगस्त को अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने बलूचिस्तान का जिक्र किया, तो कूटनीतिक हलकों में हड़कंप मच गया. पाक हुक्मरान भी हैरान हैं कि अब तक उनके हर दुस्साहस को ‘कड़ी निंदा’ से जवाब देकर शांत हो जानेवाला भारत अब कैसे उनसे उन्हीं की भाषा में बोल रहा है.
याद कीजिये, हमारी पाकिस्तान-नीति के तीन मूल-बिंदु, जिन्हें हम हमेशा दोहराते रहे हैं. पहला, कश्मीर का मुद्दा दो देशों के बीच का मुद्दा है और इसका अंतरराष्ट्रीयकरण न हो तथा इसका हल ‘शिमला-समझौते’ की भावना से किया जाये. दूसरा, एलओसी यानी ‘लाइन ऑफ कंट्रोल’ का सम्मान हो और तीसरा, एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न हो.
लेकिन, अब बदलते भारत में हमारी नीति बदल गयी है. मामले को अंतरराष्ट्रीय बनाने में हमें कोई गुरेज नहीं है. पाकिस्तान के न्यूक्लियर ब्लैकमेल और आतंकवाद की नीति को जगजाहिर कर उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करना हमारी नीति का हिस्सा बन गया है. रही बात शिमला समझौते की, तो वह तो पाकिस्तान कब का तोड़ चुका है, पर भारत एक तरफा ही इस समझौते की ‘मर्यादा’ का पालन करता रहा है. याद कीजिये, यह वही समझौता था, जिसमें भारत ने अपने बहादुर सैनिकों द्वारा जीता हुआ युद्ध, वार्ता की मेज पर गंवा दिया था. बिना कुछ बदले में लिये भारत ने पाकिस्तान के नब्बे हजार युद्ध-बंदी बिना शर्त लौटा दिये थे.
दूसरा मुद्दा है ‘लाइन ऑफ कंट्रोल’ का. दरअसल, यह 1971 के युद्ध की ‘लाइन ऑफ सीज फायर’ है, जिसे शिमला समझौते में ‘लाइन ऑफ कंट्रोल’ कह कर वैधता प्रदान कर दी गयी थी. कारगिल के युद्ध में भी हमारे जवानों ने इस तथाकथित ‘लाइन ऑफ कंट्रोल’ को पार नहीं किया था. इस लाइन के दूसरी तरफ भारत का हिस्सा है, जिस पर पाकिस्तान का कब्जा है. फिर यह लाइन हमारे लिए स्वीकार्य कैसे हो सकती है? दुर्भाग्य से हमारी पूर्ववर्ती सभी सरकारें इसी लाइन को स्थायी सीमा बनाने के विचार के इर्द-गिर्द समस्या का समाधान खोजने में लगी रहीं. मुशर्रफ और नवाज शरीफ से इसी मुतल्लिक बात भी हुई.
लेकिन, मोदी के नेतृत्व में भारत के नये रुख ने दशकों पुराने इस विचार को भी सिरे से खारिज कर दिया है. सरकार के मंत्रियों ने अपने बयान में कहा कि 28/29 की रात हमने पाकिस्तान पर कोई आक्रमण नहीं किया, हमने तो अपने इलाके में हो रही आतंकी गतिविधियों को रोकने के लिए कदम उठाया. कृत्रिम अंतरराष्ट्रीय सीमा या जिसे लाइन ऑफ कंट्रोल कहते हैं, के परे भी तो हमारा इलाका ही है. पूरे गुलाम कश्मीर के क्षेत्र पर भारत का अधिकार है! आज पाकिस्तान और पाकपरस्त लोग सकते में हैं कि ऐसा तो पहले नहीं हुआ था!
हमारा अब तक का तीसरा कूटनीतिक सिद्धांत था पाकिस्तान के साथ अपनी वार्ता को कश्मीर तक सीमित रखना. अब यह भी बदल गया है. भारत ने साफ कर दिया है कि मुद्दा भारत के कश्मीर का नहीं, बल्कि पाकिस्तान के अनधिकृत कब्जे वाला कश्मीर (पीओके) का है. और तो और, गिलगिट-बाल्टिस्तान, सिंध, बलूचिस्तान और अफगान-सीमा से लगे पश्तून इलाके में होनेवाले मानवाधिकार हनन को भी हमने मुद्दा बना दिया है. हमारे देश में हमेशा दखल करनेवाले पाकिस्तान को अब उसकी ही रणनीति से जवाब दिया जा रहा है. पाकिस्तान को उसी की चालों से उसी के घर में घेरने की मुहिम शुरू हो चुकी है. मतलब यह कि मियां की जूती अब मियां के सिर!
28/29 सितंबर की रात हुई सर्जिकल स्ट्राइक ने केवल भारत की कूटनीति को ही नहीं बदला है, देश में भी बहुत कुछ बदल गया है. हमेशा बचाव की मुद्रा में रहनेवाला देश आक्रामक मुद्रा में आ गया है. रातों-रात प्रधानमंत्री मोदी की छवि निखर गयी है. देशभर में देश-भक्ति का उबाल सा आया लगता है. सेना में भी नयी स्फूर्ति आ गयी है. मीडिया की तो पूछिये ही नहीं, हर चैनेल पर टीआरपी बटोरने के लिए बॉर्डर से रिपोर्टिंग की होड़ लग गयी है. वहीं भाजपा के राजनीतिक विरोधी पार्टी पर देश की इस उपलब्धि का चुनावी फायदा लेने के आरोप लगा रहे हैं. राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल के अनर्गल बयान भाजपा के विरोधियों की इसी बेचैनी को दर्शाते हैं.
देश में बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जो इस सब हल्ले-गुल्ले को अनावश्यक मान रहे हैं. उनका कहना है कि जो हमारे वीर सैनिकों ने किया उसकी सराहना हो, पर इतना ज्यादा हल्ला मचाने की क्या जरूरत है. दुर्भाग्य से अगर फिर कोई आतंकी हमला होता है, तो माहौल बिगड़ने में देर नहीं लगेगी. कुछ विशेषज्ञ सारे घटनाक्रम को अगले युद्ध की आहट भी मान रहे हैं.
युद्ध हो या न हो, पाकिस्तान के हुक्मरानों तक इतना पैगाम तो पहुंच ही गया है कि यह देश अब बदल गया है, और साथ ही बदल गये हैं उसके तेवर. अब प्रेम का जवाब प्रेम से देनेवाला देश गोली का जवाब गोली से देगा!

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